दोस्तों, इस लेख में हम द्विवेदी युग के प्रमुख हिंदी साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय लेकर आए हैं। हिंदी साहित्य को चार युगों में बाँटा गया है: रीतिकाल, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, और शुक्ल युग। इनमें महावीर प्रसाद द्विवेदी जी आधुनिक हिंदी साहित्य के द्विवेदी युग का प्रारंभ करने वाले महान साहित्यकार, पत्रकार, अर्थशास्त्री और इतिहासकार थे। उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक माना जाता है। आधुनिक हिंदी साहित्य को वैभवशाली बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। हिंदी साहित्य की सेवा करते हुए उन्होंने पत्रकारिता का भी कार्य जारी रखा और ‘सरस्वती’ नामक हिंदी मासिक पत्रिका का संपादन किया।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा देने में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके जीवन के बारे में अधिक जानने के लिए इस लेख में दिया गया आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय जरूर पढ़ें ताकि आप उनके योगदान और हिंदी साहित्य में उनके महत्वपूर्ण कार्यों को बेहतर तरीके से समझ सकें।
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Contents
विवरण | जानकारी |
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नाम | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी |
जन्म तिथि | 9 मई 1864 |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश, रायबरेली जिला, दौलतपुर गाँव |
पिता का नाम | पं. रामसहाय द्विवेदी |
प्रारंभिक शिक्षा | गाँव दौलतपुर में |
अध्ययन | हिंदी, मराठी, गुजराती, संस्कृत |
आजीविका | रेलवे में नौकरी (25 वर्ष की आयु से) |
संपादकीय कार्य की अवधि | ‘सरस्वती’ मासिक पत्रिका का संपादक 1903 से 1920 तक |
प्रमुख रचनाएँ | ‘कविता कलाप’, ‘सहज भूषण’, ‘शिवराज विजय’ |
साहित्यिक शैली | आलोचनात्मक, विचारात्मक, परिचयात्मक |
भाषा | खड़ीबोली हिंदी |
साहित्यिक योगदान | कविता, कहानी, निबंध, अनुवाद, जीवनी, समाज और राष्ट्रीय जागरूकता में योगदान |
संपादकीय योगदान | हिंदी भाषा के व्याकरण में सुधार और भाषा की शुद्धता बढ़ाने का प्रयास |
उपाधि | आचार्य (काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा) |
मृत्यु तिथि | 21 दिसंबर 1938, रायबरेली |
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय
द्विवेदी युग के प्रारंभिक साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 9 मई 1864 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. रामसहाय द्विवेदी था। उनके बचपन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, पर कहा जाता है कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव दौलतपुर में हुई थी।
हालांकि, घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे बचपन में ठीक से पढ़ाई नहीं कर सके। कुछ विद्वानों के अनुसार, द्विवेदी जी के परिवार वाले उन्हें महावीर मानते थे, इसी कारण उनका नाम महावीर रखा गया था। बता दें कि उन्हें स्कूल में दाखिल करते समय स्कूल के प्राध्यापक ने महावीरसहाय लिखने के बजाय महावीर प्रसाद लिखा, जिसके कारण आज हम उन्हें महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम से जानते हैं।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के कार्यक्षेत्र
उन्होंने 25 वर्ष की आयु में रेलवे में नौकरी करना प्रारंभ किया। भारतीय रेल में उन्होंने विभिन्न पदों पर सेवाएँ दीं। नौकरी के दौरान उन्होंने हिंदी, मराठी, गुजराती, और संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया। वर्ष 1904 के दौरान, वे झाँसी के रेल विभाग में कार्यरत थे, जहाँ एक अधिकारी से उनकी बहस हो गई थी। स्वाभिमानी होने के कारण, द्विवेदी जी ने अपनी नौकरी का इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद, उन्होंने ‘सरस्वती’ नामक हिंदी मासिक पत्रिका का संपादकीय कार्य शुरू किया।
रेलवे में सेवा करते समय उन्हें 200 रुपये का अच्छा-खासा वेतन मिलता था, लेकिन अपने स्वाभिमान के कारण उन्होंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी और 20 रुपये मासिक वेतन पर संपादकीय कार्य शुरू किया। 1903 से 1920 तक, उन्होंने 17 वर्षों तक ‘सरस्वती’ साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया। इसी दौरान वे किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे, जिसके कारण उन्हें संपादकीय कार्य बीच में ही छोड़ना पड़ा। हालांकि, शरीर की स्थिति ठीक न होने के बावजूद, जब तक ‘सरस्वती’ पत्रिका को नया संपादक नहीं मिला, तब तक उन्होंने यह कार्य जारी रखा।
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आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया, जिनमें कविता, कहानी, निबंध, अनुवाद, और जीवनी शामिल थे। उनके साहित्य में सामाजिक और राष्ट्रीय जागरूकता का भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने अंग्रेज़ी और संस्कृत में रचित रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया और हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे न केवल एक साहित्यकार थे, बल्कि उन्होंने अर्थशास्त्र, इतिहास, विज्ञान, और अन्य विषयों पर भी लेखन किया। अपने साहित्यिक काल में उन्होंने द्विवेदी युग के अन्य लेखकों को भी लेखन के लिए प्रोत्साहित किया, इसी कारण हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग को विशेष माना जाता है।
संपादकीय कार्य करते समय, उन्होंने हिंदी भाषा के व्याकरण में सुधार लाने के प्रयास किए और भाषा की शुद्धता बढ़ाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘कविता कलाप’, ‘सहज भूषण’, और ‘शिवराज विजय’ शामिल हैं। इसके अलावा, उनके निबंध लेखन में समाज, राजनीति, और संस्कृति की सुंदर झलक मिलती है। द्विवेदी जी की शैली तीन प्रकार की थी: आलोचनात्मक शैली, विचारात्मक शैली, और परिचयात्मक शैली। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की साहित्यिक रचनाओं की भाषा खड़ीबोली हिंदी थी।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक रचनाएँ
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की साहित्यिक रचनाएँ विस्तृत और विविध थीं। उनके जीवनकाल में उन्होंने कई साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया, जिनमें निबंध, आलोचना, इतिहास लेखन, कविता आदि शामिल थे। नीचे हमने महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।
कविता संग्रह:
- कविता कलाप
- कवितावली
- सृजन सुमन
- नवीन कविता
- सुदर्शन
निबंध:
- हिंदी भाषा और उसका विकास
- साहित्य सौरभ
- निबंध संग्रह
- भारतीय संस्कृति और समाज
- राष्ट्र और भाषा
- विविध प्रसंग
- धर्म और नीति
- संसार और सत्य
- लोकमत और समाज
- साहित्य और समाज
आलोचना:
- साहित्यालोचना
- नाटक
- कविता और जीवन
- साहित्य और समाज
- रसालोचना
अनुवाद:
- मेघदूत (कालिदास की रचना का हिंदी अनुवाद)
- शकुंतला (कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ का हिंदी अनुवाद)
- हितोपदेश (संस्कृत से हिंदी अनुवाद)
- कथासरित्सागर (संस्कृत से हिंदी अनुवाद)
- रामायण का हिंदी अनुवाद
- सुभाषित रत्नावली
- हितोपदेश
- विक्रमोर्वशीयम्
व्याकरण और भाषा शास्त्र:
- सहज भूषण
- हिंदी शब्दानुशासन
- शब्दमाला
- हिंदी भाषा का इतिहास
- व्याकरण का परिचय
- शब्दार्थ प्रकाश
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति और विकास
- शुद्ध भाषा
- हिंदी भाषा का व्याकरण
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ये रचनाएँ हिंदी साहित्य और भाषा को समृद्ध करने के साथ-साथ समाज में सुधार और जागरूकता लाने का कार्य करती हैं। उनकी लेखनी में समाज, संस्कृति, और राष्ट्रीयता की गहरी समझ झलकती है।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का निधन
सरस्वती साहित्यिक पत्रिका का संपादकीय कार्य करते समय, वर्ष 1920 के दौरान, महावीर प्रसाद द्विवेदी जी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गए। बीमार होने के बावजूद, जब तक नया संपादक कार्यभार नहीं संभालता, उन्होंने संपादकीय कार्य जारी रखा। इसके बाद, वे अपने गाँव लौट आए और कुछ वर्षों तक वहीं रहे।
21 दिसंबर 1938 को महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने रायबरेली में अपने शरीर को त्याग दिया। द्विवेदी युग का अंत हो गया, लेकिन उनके नाम से हिंदी साहित्य जगत में द्विवेदी युग को अमर बना दिया गया। आज भी हिंदी साहित्य का इतिहास महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के बिना पूरा नहीं हो सकता।
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FAQ’s
द्विवेदी जी के पिता का क्या नाम था?
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के पिता का नाम पं. रामसहाय द्विवेदी था।
अशोक के फूल के लेखक कौन हैं?
अशोक के फूल के लेखक महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। यह उनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाओं में से एक है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी को आचार्य की उपाधि कहाँ से मिली?
महावीर प्रसाद द्विवेदी को आचार्य की उपाधि काशी हिंदू विश्वविद्यालय से मिली थी। यह उपाधि उन्हें उनके साहित्यिक और शैक्षिक योगदान के सम्मान में दी गई थी।
द्विवेदी युग के जनक कौन थे?
द्विवेदी युग के जनक महावीर प्रसाद द्विवेदी माने जाते हैं। वे आधुनिक हिंदी साहित्य के द्विवेदी युग की शुरुआत करने वाले प्रमुख साहित्यकार थे और हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं।
द्विवेदी युग की भाषा क्या थी?
द्विवेदी युग की भाषा खड़ीबोली हिंदी थी। इस युग में हिंदी भाषा के विकास और सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण काम हुआ, और खड़ीबोली हिंदी को साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित किया गया। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इस भाषा के प्रचार और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सारांश
हमें पूरा यकीन है कि इस लेख में दिया गया आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय आपको बहुत पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें, ताकि वे भी महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के साहित्य और उनके महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जान सकें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के और भी लेख मिलेंगे। यदि आप हमसे जुड़े रहना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं, जहां आपको रोजाना नए अपडेट मिलते रहेंगे। धन्यवाद।