देव का जीवन परिचय – Dev Ka Jivan Parichay

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नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए देव का जीवन परिचय (Dev Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। रीतिबद्ध काव्य के प्रमुख कवियों की सूची में कवि देव का नाम आता है। उनके समकालीन कवि मतिराम, कवि भूषण जैसे महान कवियों की तरह देव भी थे, लेकिन उन्हें उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली जितनी उनके समकालीन कवियों को मिली।

वीररस में काव्य रचना करने वाले एक-दो कवियों को छोड़ दिया जाए, तो रीतिबद्ध काव्य के अधिकांश कवि ब्रजभाषा में और श्रृंगाररस का उपयोग करके अपनी काव्य रचनाएँ करते थे। देव जी की काव्य रचनाएँ भी ब्रजभाषा और श्रृंगाररस में देखने को मिलती हैं। उन्होंने काव्य और सवैये की रचनाएँ कीं। ‘रसविलास’, ‘भावविलास’, ‘भवानीविलास’ जैसी कई काव्य रचनाएँ उनके द्वारा रचित हुईं।

कुछ विद्वानों का मानना है कि तुलसीदास के बाद अगर किसी सर्वश्रेष्ठ कवि का नाम आता है, तो वह कवि देव हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि अगर कवि बिहारी और देव की काव्य रचनाओं की तुलना की जाए, तो रीतिबद्ध काव्य के अग्रणी कवि देव ही होंगे। तो आइए, देव का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके योगदान पर एक नजर डालते हैं।

विवरणजानकारी
नामदेवदत्त द्विवेदी (कवि देव)
जन्म वर्ष1673
जन्म स्थानइटावा जिला, उत्तर प्रदेश
परिवारकान्यकुब्ज द्विवेदी ब्राह्मण परिवार
पिता का नामबिहारीलाल
प्रमुख काव्य रचनाएँरसविलास, भावविलास, भवानीविलास, कुशलविलास, प्रेमचंद्रिका, सुजानविनोद, सुखसागर तरंग
प्रमुख आश्रयदातामुग़ल सम्राट आज़म शाह, भवानीदत्त वैश्य, कुशलसिंह, राजा भोगीलाल
काव्य रचनाओं की संख्या52 से 72 (18 ग्रंथों के नाम उपलब्ध)
साहित्यिक शैलीरीतिकाव्य, ब्रजभाषा, श्रृंगाररस
जीवन का अंतिम वर्ष1767
योगदानहिंदी साहित्य में रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक, साहित्य प्रेमियों के बीच हमेशा जीवित

देव का जन्म और परिवार

रीतिबद्ध काव्य के सर्वश्रेष्ठ कवि देव का जन्म 1673 में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कान्यकुब्ज द्विवेदी ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम बिहारीलाल था। उनका मूल नाम ‘देवदत्त द्विवेदी’ था, लेकिन अपनी सभी रचनाओं में उन्होंने ‘देव’ नाम का उल्लेख किया है। हिंदी साहित्य जगत में भी उन्हें कवि देव के नाम से जाना जाता है।

उनके जन्मस्थान के बारे में एक पंक्ति उनकी काव्य रचनाओं में मिलती है: “द्यौसरिया कवि देव का नगर इटावो बास।” इसी पंक्ति से यह अंदाजा लगाया जाता है कि वे इटावा में रहते थे। उनके जीवन के बारे में ज्यादा ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन जितनी जानकारी मिल पाई है, उसे हमने यहाँ साझा किया है।

कवि देव ने आश्रयदाताओं के लिए की काव्य रचनाएँ

रीतिकाव्य के अधिकांश कवि उस समय के राजाओं के आश्रय में रहकर काव्य रचना करते थे। कवि देव भी अपने समय में कई आश्रय दाताओं के पास रहे। इनमें मुख्य नाम मुग़ल सम्राट आज़म शाह का आता है, जो औरंगजेब के पुत्र थे। औरंगजेब के निधन के बाद, वे दिल्ली के गद्दी पर बैठे थे। देव का प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ ‘भावविलास’ आज़म शाह के आश्रय में रहते हुए लिखा गया था।

उसके बाद, उन्हें भवानीदत्त वैश्य जी ने आश्रय दिया। उनके लिए देव ने ‘भवानीविलास’ नामक काव्य रचनाएँ कीं। फिर वे फफूँद के निवासी कुशलसिंह के संपर्क में आए, और उनके आश्रय में रहते हुए कवि देव ने ‘कुशलविलास’ नामक काव्य रचनात्मक ग्रंथ लिखा। कुछ समय वे राजा भोगीलाल के आश्रय में भी रहे, और उनके आश्रय में रहते हुए देव ने ‘रसविलास’ नामक काव्य रचनाएँ कीं।

कहा जाता है कि राजा भोगीलाल को देव की काव्य रचनाएँ इतनी पसंद आईं कि उन्होंने खुश होकर उन्हें लाखों की संपत्ति उपहार में दी। उनके सभी काव्य ग्रंथ उस समय के अपने विभिन्न आश्रय दाताओं को समर्पित थे। उदाहरणस्वरूप, राव उद्योतसिंह को समर्पित ‘प्रेमचंद्रिका’, सुजानमणि के लिए ‘सुजानविनोद’, और बादशाह अली अकबर खान के लिए ‘सुखसागर तरंग’ रचनाएँ कीं।

अपने जीवन में, वे कई राजाओं, धनवान व्यक्तियों, मुग़ल बादशाहों, और सरदारों के आश्रय में रहे। बाद में, इस तरह की जीवनशैली को ठीक न पाकर, उन्होंने आश्रय दाताओं के आश्रय में रहना छोड़ दिया और अकेले रहकर काव्य रचनाएँ करने की शुरुआत की।

कवि देव का साहित्यिक परिचय

कवि देव रीतिकाल के प्रमुख कवि थे। उन्होंने अपनी साहित्यिक रचनाएँ ब्रज भाषा में लिखी। उनकी रचनाओं के मुख्य विषय प्रेम और श्रृंगार थे। देव जब भी कोई रचना करते थे, उसका सजीव वर्णन करते थे। उनकी रचनाएँ पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे वह घटना हमारे सामने ही घटित हो रही हो।

किसी रूप, वस्तु, चित्र, या घटना का वर्णन करते समय किस प्रकार के शब्दों का उपयोग करना है, इसका उन्हें गहरा ज्ञान था। उनके शब्दों में एक जादू था; वे अपने शब्दों से कविता में जान डाल देते थे। सवैया और घनाक्षरी के क्षेत्र में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। अगर किसी ने उनकी काव्य रचनाओं की नकल करने का प्रयास किया, तो उनकी रचना को छिपा पाना असंभव था।

यही उनकी विशेषता थी, जो उन्हें अन्य साहित्यकारों से अलग करती है। इसी वजह से उन्हें हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि का दर्जा प्राप्त हुआ। अपने जीवनकाल में शायद उन्हें वैसी प्रसिद्धि नहीं मिली, जैसी उन्हें मिलनी चाहिए थी, लेकिन आज हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनका स्थान ध्रुव तारे की तरह अडिग और स्थिर है।

कवि देव की साहित्यिक रचनाएँ

कवि देव ने अपनी साहित्यिक रचनाओं का सृजन करने की शुरुआत अपनी सोलह वर्ष की आयु में ही की थी। विद्वानों का मानना है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में 72 काव्य ग्रंथों का सृजन किया, जबकि कुछ विद्वान यह मानते हैं कि उनके काव्य ग्रंथों की संख्या 52 है।

लेकिन इनमें से केवल 18 ग्रंथों के नाम ही उपलब्ध हैं। नीचे हमने उनकी साहित्यिक रचनाओं के नाम दिए हैं।

काव्य संग्रह

  • भावविलास
  • अष्टयाम
  • भवानीविलास
  • रसविलास
  • प्रेमचंद्रिका
  • राग रत्नाकर
  • सुजानविनोद
  • जगद्दर्शन पचीसी
  • आत्मदर्शन पचीसी
  • तत्वदर्शन पचीसी
  • प्रेम पचीसी
  • शब्दरसायन
  • सुखसागर तरंग
  • प्रेमतरंग
  • कुशलविलास
  • जातिविलास
  • देवचरित्र
  • देवमायाप्रपंच

कवि देव के साहित्यिक रचनाओं के कुछ अंश

कवि देव ने रीतिकाल में अनेक काव्य संग्रह और सवैये की रचना की। उनके कुछ कविताओं के अंश नीचे दिए गए हैं। इनसे आप यह समझ सकेंगे कि उन्हें रीतिकाल में सर्वश्रेष्ठ कवि का दर्जा क्यों मिला।

राधिका कान्हा को ध्यान धरैं, तब

राधिका कान्ह को ध्यान धरैं
तब कान्ह ह्वै राधिका के गुन गावै।

त्यों अँसुवा बरसै बरसाने को
पाती लिखै लिखि राधिकै ध्यावै।

राधे ह्वै जाइ तेही छिन देव
सु प्रेम की पाती लै छाती लगावै।

आपु ते आपुही मैं उरझै
सुरझै बिरझै समुझै समुझावै॥ - कवि देव

धार में धाय धँसी निरधार ह्वै

धार में धाय धँसी निरधार ह्वै,
जाय फँसी उकसीं न अबेरी।

री! अंगराय गिरीं गहरी,
गहि, फेरे फिरीं औ घिरी नहिं घेरी॥

देव कछू अपनो बस ना, रस,
लालच लाल चितै भयीं चेरी।

बेगि ही बूड़ि गयीं पँखिया,
अँखियां मधु की मखियाँ भयीं मेरी॥ - कवि देव

झहरि-झहरि झीनी बूँद है परति मानो

झहरि-झहरि झीनी बूँद है परति मानो,
घहरि-घहरि घटा घिरी है गगन में।

आनि कह्यो स्याम मो सों, चलो झूलिबे को आजु,
फूली ना समानी, भयी ऐसी हौं मगन मैं॥

चाहति उठ्योई, उड़ि गयी सो निगोड़ी नींद,
सोय गये भाग मेरे जागि वा जगन में।

आँखि खोलि देखौं तो मैं घन हैं न घनस्याम,
वेई छायी बूंदें मेरे आँसू ह्वै दृगन में॥ - कवि देव

कवि देव की मृत्यु

कवि देव ने 1767 में अपने जीवन की आख़िरी साँस ली। हिंदी साहित्य जगत को अपने कार्यकाल में एक नई पहचान देने का कार्य उन्होंने किया। देव आज हमारे बीच शरीर रूप में नहीं हैं, लेकिन उनकी साहित्यिक रचनाओं में वे साहित्य प्रेमियों के बीच हमेशा के लिए जीवित हैं।

रीतिकाव्य के क्षेत्र में हिंदी साहित्य के लिए उनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदी साहित्य जगत उनका ऋण हमेशा याद रखेगा।

FAQs

  • देव का पूरा नाम क्या है?

    कवि देव का पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। वे रीतिकाव्य के प्रमुख कवि थे और हिंदी साहित्य में कवि देव के नाम से प्रसिद्ध हुए।

  • देव कैसे कवि हैं?

    कवि देव रीतिकाव्य के प्रमुख कवि थे, जिन्होंने ब्रज भाषा में प्रेम और शृंगार रस की रचनाएँ लिखीं। उनकी कविताओं में सजीव वर्णन और चित्रात्मकता थी। उन्होंने सवैया और घनाक्षरी में अपनी पहचान बनाई और हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

  • रीतिकाल के कवि कौन थे?

    रीतिकाल के प्रमुख कवियों की सूची में कवि देव, कवि बिहारी, कवि भूषण, मत्तिराम, कवि सूरदास, राजा शिवसिंह और धनराज मिश्र के नाम आते हैं।

  • भावविलास किसकी रचना है?

    भावविलास कवि देव की रचना है। यह काव्य ग्रंथ रीतिकाव्य की महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है।

  • कवि देव के आश्रयदाता कौन थे?

    कवि देव के आश्रयदाता: आज़म शाह, भवानीदत्त वैश्य, कुशलसिंह, राजा भोगीलाल, राव उद्योतसिंह, सुजानमणि, बादशाह अली अकबर ख़ाँ, और इसके अलावा कई अन्य राजा, बादशाह और उस समय के धनवान व्यक्ति उनके आश्रयदाता रहे।

सारांश

हमें विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत देव का जीवन परिचय (Dev Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी सर्वश्रेष्ठ कवि देव जी की जीवनी और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।

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Team Hindi Words

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