जगदीश चंद्र माथुर का जीवन परिचय – Jagdish Chandra Mathur Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों! इस लेख में हम Jagdish Chandra Mathur Ka Jivan Parichay देखने जा रहे हैं। प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकारों की सूची में जगदीश चंद्र माथुर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। माथुरजी एक महान लेखक थे। उनकी कल्पनाशील बुद्धि और अप्रतिम लेखनी से उन्होंने अनेकों एकांकी और नाटकों का सृजन किया। हिंदी साहित्य जगत में उन्हें प्रमुख नाटककार और एकांकीकार के रूप में जाना जाता है। आधुनिक युग में हिंदी भाषा की लोकप्रियता बढ़ाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्योंकि वे अपने कार्यकाल में आकाशवाणी में कार्यरत थे, उन्होंने हिंदी भाषा को दुनिया में एक अलग पहचान दिलाने के लिए आधुनिक युग के प्रसिद्ध साहित्यकारों को रेडियो पर लाने का कार्य किया।
स्पर्धा परीक्षा में भाग लेने वाले छात्रों से अक्सर जगदीश चंद्र माथुर के साहित्यिक परिचय के बारे में प्रश्न पूछे जाते हैं। उनकी जीवनी के बारे में अधिक जानने के लिए, इस लेख में प्रस्तुत जगदीश चंद्र माथुर का जीवन परिचय अवश्य पढ़ें। तो चलिए, उनके जीवन और साहित्यिक परिचय को विस्तार से जानते हैं।
विवरण | जानकारी |
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नाम | जगदीश चंद्र माथुर |
जन्म तिथि | 16 जुलाई 1917 |
जन्म स्थान | खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | लक्ष्मी नारायण माथुर |
शिक्षा | बी.ए. (1933), एम.ए. (1939) |
प्रमुख पद | बिहार के शिक्षा सचिव, भारतीय सिविल सर्विस परीक्षा में सफलता |
प्रमुख कार्यक्षेत्र | ऑल इंडिया रेडियो, बिहार राज्य में कमिश्नर |
प्रमुख रचनाएँ | ‘चाँद’, ‘भोरे का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘जिन्होंने जीना जाना’ |
प्रसिद्ध एकांकी | ‘कोणार्क’ |
प्रसिद्ध रचना | ‘दस तस्वीरें’, ‘पहला राजा’ |
पुरस्कार और सम्मान | विद्या वर्धि उपाधि, कालिदास अवार्ड, बिहार राजभाषा पुरस्कार |
मृत्यु तिथि | 14 मई 1978 |
Contents
जगदीश चंद्र माथुर का प्रारंभिक जीवन
हिंदी साहित्य जगत के प्रमुख नाटककार और एकांकीकार जगदीश चंद्र माथुर का जन्म 16 जुलाई 1917 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के खुर्जा नामक गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम लक्ष्मीनारायण माथुर था, और वे एक स्कूल में अध्यापक के रूप में कार्यरत थे। जगदीश चंद्र माथुर जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव में ही हुई। वे बचपन से ही शिक्षा के प्रति बड़े गंभीर थे, और उनके पिता भी अध्यापक होने के कारण घर में पढ़ाई का माहौल था।
आगे स्नातक की पढ़ाई के लिए वे क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद (अब प्रयागराज) आए, और साल 1933 में उन्होंने बी.ए. की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद, साल 1939 में उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी विषय में एम.ए. की डिग्री हासिल की। उनके मन में सीखने की चाह हमेशा बनी रही। एम.ए. पूरा करने के बाद, उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा दी और साल 1941 में वे बिहार के शिक्षा सचिव के पद पर नियुक्त हुए। आज भी यह परीक्षा छात्रों के लिए बहुत कठिन मानी जाती है, लेकिन उन्होंने पहली ही बार में इसमें सफलता प्राप्त की।
जगदीश चंद्र माथुर का कार्यक्षेत्र
बिहार राज्य में शिक्षा सचिव के पद पर नियुक्त होने के बाद उन्होंने 6 साल तक इस पद पर कार्य किया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने बिहार के शिक्षा क्षेत्र में काफी बदलाव लाने का प्रयास किया और इसमें वे सफल भी रहे। साल 1955 से 1962 तक उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में आकाशवाणी के महासंचालक के रूप में कार्य किया, और इसका लाभ उन्होंने हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए उठाया। आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों को वे रेडियो स्टेशन पर आमंत्रित करते थे और आकाशवाणी के माध्यम से हिंदी साहित्य का प्रचार और प्रसार करते थे।
इसके बाद उन्हें तिरहुत प्रमंडल (बिहार राज्य में गंगा नदी के उत्तरी क्षेत्र) में कमिश्नर के पद पर नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने 1 साल तक कार्य किया। फिर, साल 1963-64 के दौरान उन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका में विजिटिंग फैलो बनने का अवसर मिला। अमेरिका से लौटने के बाद उन्होंने भारत सरकार के विभिन्न पदों पर कार्य किया। साल 1971 में उन्होंने भारत सरकार में हिंदी सलाहकार के रूप में भी कार्य किया।
विभिन्न सरकारी पदों पर कार्य करते समय भी उन्होंने हिंदी साहित्य का लेखन कार्य नहीं छोड़ा और वे निरंतर लेखन करते रहे। इस प्रकार, उनका कार्यकाल बेहद विस्तृत और समृद्ध रहा।
जगदीश चंद्र माथुर का साहित्यिक परिचय
साहित्यिक लेखन की रुचि उनके अंदर बचपन से ही थी। विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते समय उन्होंने साहित्यिक रचनाओं का सृजन करना शुरू कर दिया था। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने अनेक नाटकों में हिस्सा लिया था। शुरुआती दौर में, जगदीश चंद्र माथुर जी द्वारा लिखित नाटक ‘चाँद’ जब ‘रुपाभ’ नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ, तब वे प्रसिद्धि के प्रकाश में आ गए। उन्होंने अपनी शुरुआती रचनाओं का सृजन प्रयाग में ही किया।
1946 में प्रकाशित उनका प्रमुख नाटक ‘भोर का तारा’ भी प्रयाग में ही लिखा गया था। वे अपनी साहित्यिक कर्मभूमि के रूप में प्रयाग को ही मानते थे। उनकी अधिकांश साहित्यिक रचनाओं में विभिन्न व्यक्तियों, घटनाओं और ऐतिहासिक स्थलों का वर्णन मिलता है। मानवीय जीवन की संवेदनाओं का जीवंत चित्रण उनकी एकांकियों में देखा जा सकता है। नाटक और एकांकी के माध्यम से वे समाज को कोई न कोई संदेश देने का प्रयास करते थे।
मध्यमवर्गीय लोग उनके नाटक और एकांकियों से अत्यधिक प्रभावित होते थे, क्योंकि उनके जीवन का यथार्थ चित्रण उनकी रचनाओं में देखने को मिलता था। उनके संवाद इतने सजीव होते थे कि मानो यह सब हमारे सामने घटित हो रहा हो। उनके कथोपकथन दर्शकों के दिल और दिमाग तक गहराई से पहुंचते थे। ‘भोर का तारा,’ ‘ओ मेरे सपने,’ और ‘जिन्होंने जीना जाना’ उनके प्रमुख और प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियाँ हैं।
जगदीश चंद्र माथुर की साहित्यिक रचनाएँ
जगदीश चंद्र माथुर मुख्य रूप से नाटककार और एकांकीकार थे। अपने साहित्यिक जीवनकाल में उन्होंने अनेक रचनाओं का सृजन किया। उन्होंने ऐतिहासिक विषयों के साथ-साथ लोगों के जीवन में आने वाली समस्याओं का चित्रण भी अपनी साहित्यिक रचनाओं में किया। उनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाओं के बारे में नीचे जानकारी दी गई है।
नाटक और एकांकी
- भोर का तारा
- कोणार्क
- ओ मेरे सपने
- शारदीया
- दस तस्वीरें
- परंपराशील नाट्य
- पहला राजा
- जिन्होंने जीना जाना
- नीलम देश की राजकन्या
- एक था राजा
- मुकुटधारी चूहा
- नई दूब
- संधि-स्थल
- यमघट
- शांति का तीर
जगदीश चंद्र माथुर के पुरस्कार और सम्मान
हिंदी साहित्य जगत में उनके कार्य की सराहना करते हुए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्हें मिले कुछ प्रमुख पुरस्कारों के नाम नीचे दिए गए हैं।
- हिंदी साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए, उन्हें ‘विद्या वारिधि’ की उपाधि प्रदान की गई।
- उनके नाटक और एकांकियों की उत्कृष्टता के लिए उन्हें ‘कालिदास अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।
- इसके अतिरिक्त, बिहार सरकार ने भी उन्हें ‘बिहार राजभाषा पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
जगदीश चंद्र माथुर का निधन
जगदीश चंद्र माथुर जी ने हिंदी साहित्य को देश और दुनिया में एक नई पहचान दिलाने का कार्य किया। 14 मई 1978 को उनका हृदय रोग के कारण निधन हुआ। उनके कार्यक्षेत्र की व्यापकता देखते हुए, भारत सरकार द्वारा उन्हें जिस भी पद पर नियुक्त किया गया, उन्होंने उस पद को पूरी निष्ठा से निभाया।
आज वे हमारे बीच शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनके साहित्यिक योगदान के रूप में वे आज भी साहित्य प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं।
FAQ’s
जगदीश चंद्र माथुर की एकांकी का नाम क्या है?
जगदीश चंद्र माथुर की एक प्रसिद्ध एकांकी का नाम “कोणार्क” है।
जगदीश चंद्र माथुर कौन थे ?
जगदीश चंद्र माथुर (1909-1978) हिंदी के प्रमुख नाटककार और एकांकीकार थे। उन्होंने समाज की विविधताओं को नाटकों और एकांकी रचनाओं के माध्यम से उजागर किया।
दस तस्वीरें किसकी रचना है?
“दस तस्वीरें” जगदीश चंद्र माथुर की रचना है।
जगदीश चंद्र माथुर का पिता का नाम क्या है?
जगदीश चंद्र माथुर के पिता का नाम लक्ष्मीनारायण माथुर था।
पहला राजा किसकी रचना है?
“पहला राजा” जगदीश चंद्र माथुर की रचना है।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में दिया गया Jagdish Chandra Mathur Ka Jivan Parichay आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ शेयर करना न भूलें ताकि वे भी जगदीश चंद्र माथुर जी के साहित्य और उनके महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जान सकें।
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