महाकवि भूषण का जीवन परिचय – Mahakavi Bhushan Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए महाकवि भूषण का जीवन परिचय (Mahakavi Bhushan Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। हिंदी साहित्य जगत में रीतिकाल के प्रमुख कवियों की सूची में महाकवि भूषण का नाम अग्रणी है। इस रीतिकाल को हम हिंदी साहित्य का मध्यकाल भी कहते हैं।
देखा जाए तो रीतिकाल के लगभग सभी हिंदी कवियों ने शृंगार रस का उपयोग करके अपनी साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया, लेकिन कवि भूषण इस संदर्भ में अपवाद थे। उन्होंने अपनी सभी रचनाओं में वीर रस का प्रयोग किया। उनकी रचनाओं ने उस समय के कई राजाओं को मोहित किया। छत्रपति शिवाजी महाराज और पन्ना के महाराज छत्रसाल के प्रति उनके मन में विशेष आदर था। मुग़ल सल्तनत के खिलाफ खड़े होकर स्वराज की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा है, “तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर, त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं।”
कवि भूषण ने अपने कार्यकाल में ‘शिवराज भूषण’, ‘शिवा बावनी’, ‘छत्रसाल दशक’ जैसे कई काव्य ग्रंथों का सृजन किया। उनकी रचनाएं साहित्य प्रेमियों द्वारा आज भी बड़े उत्साह के साथ पढ़ी जाती हैं। उनकी वीर रस में लिखी कविताओं को पढ़ने के बाद साहित्य प्रेमियों में देशभक्ति का एक अलग जज्बा जागृत होता है। तो आइए, महाकवि भूषण के जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके योगदान पर एक नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
---|---|
नाम | महाकवि भूषण |
जन्म | 1613 में, टिकवापुर गाँव, कानपुर, उत्तर प्रदेश |
असली नाम | मनीराम (कुछ विद्वानों के अनुसार) |
उपाधि | भूषण (चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्र द्वारा दी गई) |
पिता का नाम | रत्नाकर त्रिपाठी |
भाई | चिंतामणि, मतिराम (दोनों प्रसिद्ध कवि) |
प्रमुख काव्य ग्रंथ | शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक, भूषण उल्लास, भूषण हजारा, दूषण उल्लास |
काव्यशैली | कवित्त, सवैया, दोहा छंद |
निधन | 1705 में, आयु 92 वर्ष |
Contents
महाकवि भूषण का जन्म और परिवार
महाकवि भूषण का जन्म 1613 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के टिकवापुर गाँव में हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार, उनका असली नाम मनीराम था, लेकिन वे अपनी कविताएँ भूषण नाम से लिखते थे। उन्हें “भूषण” यह उपाधि चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्र द्वारा दी गई थी। उनके पिता का नाम रत्नाकर त्रिपाठी था, और उनके भाई चिंतामणि और मतिराम भी प्रसिद्ध कवि थे।
भूषण जी को राजा रुद्र ने उनकी कविताओं से प्रभावित होकर “भूषण” उपाधि दी थी। उनकी कविताएँ उत्कृष्टता के लिए जानी जाती हैं। भूषण जी की काव्यशैली और भावनात्मक गहराई ने उन्हें उस समय के महान कवियों में स्थान दिलाया।
महाकवि भूषण ने राजाश्रय में रची कई रचनाएँ
उस समय आधे से ज्यादा भारत में मुग़ल सल्तनत का राज था। देश और धर्म की रक्षा के लिए कई राजा, पहाड़ों की तरह मजबूती से मुग़ल सल्तनत का सामना कर रहे थे। कवि भूषण के मन में इन राजाओं के प्रति गहरा आदर था। इनमें छत्रपति शिवाजी महाराज, चित्रकूट के महाराजा हृदयराम सोलंकी, महाराज छत्रसाल, और महाराज जयसिंह शामिल थे।
इन राजाओं के आश्रय में रहकर भूषण जी ने उनकी प्रेरणा से कई रचनाएँ कीं। उनकी अधिकांश रचनाएँ छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराज छत्रसाल पर आधारित हैं। “शिवराज भूषण” और “शिवा बावनी” में उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के गुणों और पराक्रम का वर्णन किया है। वहीं, “छत्रसाल दशक” में महाराज छत्रसाल के रूप-रंग, दानशीलता, और पराक्रम का जीवंत चित्रण किया है।
महाकवि भूषण का साहित्यिक परिचय
महाकवि भूषण ने अपनी रचनाओं का सृजन ब्रजभाषा में किया। उनकी काव्य रचनाओं में उन्होंने कवित्त, सवैया और दोहा छंद का उपयोग किया। रीतिकाल के लगभग सभी कवियों ने श्रृंगार रस का उपयोग करके अपनी रचनाओं का सृजन किया, लेकिन कवि भूषण ने अपना अलग मार्ग चुना। उनके मन में देश और धर्म के प्रति प्रेम और आदर था।
इस देश की रक्षा के लिए खड़े हुए राजाओं के प्रति उनके मन में बड़ा सम्मान था। राजाओं के आश्रय में रहकर उनकी प्रशंसा करना और धन कमाना कभी उनका उद्देश्य नहीं था, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में देश और धर्म की रक्षा के लिए खड़े हुए राजाओं को अन्य देशवासियों का भी साथ मिले, और यह देश आज़ाद हो, यही उनके मन और हृदय की भावना थी।
उनकी काव्य रचनाओं में उन्होंने ब्रज भाषा के अलावा फारसी और अरबी शब्दों का भी उपयोग किया। उनके काव्य का एक-एक शब्द साहित्य प्रेमियों के मन में देश और धर्म के प्रति एक नई ऊर्जा उत्पन्न करता है। आज भी यदि आपने उनके काव्य पढ़े, तो आपके अंदर एक नया चैतन्य प्रकट होगा। उनकी रचनाओं में आपको उस समय का राजनीति, समाजशास्त्र और उनके कार्यकाल के राजाओं का जीवंत वर्णन देखने को मिलेगा। अपनी काव्य की भाषा पर उनका अधिकार था। किसी चीज का वर्णन करते समय चेतना जगाने वाले शब्दों का वे बखूबी उपयोग करते थे।
महाकवि भूषण की काव्य रचनाएँ
महाकवि भूषण जी मुख्य रूप से एक कवि थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई काव्य ग्रंथों का सृजन किया। उनके द्वारा रचित रचनाओं के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है:
- शिवराज भूषण
- शिवा बावनी
- छत्रसाल दशक
- भूषण उल्लास
- भूषण हजारा
- दूषण उल्लास
महाकवि भूषण की काव्य रचनाओं के कुछ अंश
महाकवि भूषण ने वीररस का उपयोग करके अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। उनकी रचनाएँ देश और धर्म के प्रति नवचेतना जगाने वाली थीं। नीचे हम आपको उनकी कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं के अंश प्रस्तुत कर रहे हैं:
इन्द्र जिमि जंभ पर, वाडव सुअंभ पर।
रावन सदंभ पर, रघुकुल राज है।
पौन बरिबाह पर, संभु रतिनाह पर।
ज्यों सहसबाह पर, राम द्विजराज है।
दावा द्रुमदंड पर, चीता मृगझुंड पर।
भूषण वितुण्ड पर, जैसे मृगराज है।
तेजतम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर।
त्यों म्लेच्छ बंस पर, शेर सिवराज है। – महाकवि भूषण
चढ़त तुरंग, चतुरंग साजि, सिवराज चढ़त प्रताप, दिन-दिन अति अंग में।
भूषण चढ़त मरहट्ठ-चित्त, चाउ चारु खग्ग, खुली चढ़त है अरिन कै अंग में।
भ्वैसिला के हाथ, गढ़-कोट है चढ़त, अरि-जोट है चढ़त, एक मेरुगिरि-सृंग में।
तुरकान-गन ब्योमजान है, चढ़त बिन मान है, चढ़त बदरंग अवरंग में। – महाकवि भूषण
कुम्भकर्न असुर, औतारी अवरंगज़ेब, कीन्ही कत्ल मथुरा।
दोहाई फेरी रबकी, खोदि डारे देवी देव सहर।
मोहल्ला बांके लाखन, तुरुक कीन्हे छूट गई तबकी। – महाकवि भूषण
भूषण भनत, भाग्यो कासीपति बिस्वनाथ।
और कौन गिनती, मै भूली गति भव की।
चारौ वर्ण धर्म छोडि, कलमा नेवाज पढि।
सिवाजी न होतो, तौ सुनति होत सबकी। – महाकवि भूषण
महाकवि भूषण का निधन
महाकवि भूषण जी ने सन 1705 में अपने जीवन की आखिरी सांस ली। जब उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, तब उनकी आयु 92 साल थी। वे अपने जीवनकाल में अनेक राजाओं के आश्रय में रहे और उनके लिए काव्य रचनाएँ करके अपना गुजारा किया।
उनकी पत्नी और बच्चों के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कई काव्य ग्रंथों का सृजन किया, लेकिन उनमें से केवल तीन काव्य ग्रंथ ही आज हमारे पास उपलब्ध हैं। इतिहास के पन्नों में अमर हुए इस महान कवि को हिंदी साहित्य जगत की ओर से शत-शत प्रणाम। उनका योगदान साहित्य और संस्कृति में हमेशा जीवित रहेगा।
FAQs
महाकवि भूषण का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
महाकवि भूषण का जन्म ईस्वी सन 1613 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के घाटमपुर तहसील के टिकवापुर गाँव में हुआ।
कवि भूषण का मूल नाम क्या था?
कवि भूषण का मूल नाम मनीराम था, ऐसा कुछ विद्वानों का मानना है। “भूषण” उन्हें दी गई उपाधि थी, और वे अपनी रचनाएँ “कवि भूषण” के नाम से लिखते थे।
भूषण के कितने भाई थे?
कवि भूषण के दो भाई थे, जिनमें से एक का नाम चिंतामणि और दूसरे का नाम मतिराम था। दोनों भी उस समय के महान कवियों में से एक माने जाते थे।
शिवराज भूषण किसकी रचना है?
“शिवराज भूषण” इस रचना का सृजन कवि भूषण ने किया है। इस काव्य में उन्होंने शिवराज की महिमा, वीरता और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा का सुंदर चित्रण किया है।
भूषण हजारा यह काव्य ग्रंथ किसने रचा?
“भूषण हजारा” यह काव्य ग्रंथ कवि भूषण ने रचा है। इस रचना में उन्होंने वीरता, देशभक्ति और धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष का अद्भुत चित्रण किया है।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत महाकवि भूषण का जीवन परिचय (Mahakavi Bhushan Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी महाकवि भूषण जी की जीवनी और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।
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