शिवपूजन सहाय का जीवन परिचय – Shivpujan Sahay Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए शिवपूजन सहाय का जीवन परिचय (Shivpujan Sahay Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। शिवपूजन सहाय हिंदी साहित्य जगत के आधुनिक युग के प्रमुख लेखक थे। मुख्य रूप से वे हिंदी और भोजपुरी साहित्य की रचनाओं का सृजन करने वाले कथाकार और उपन्यासकार थे।
इसके अलावा, उन्होंने अपने कार्यकाल में संपादक के रूप में भी कार्य किया। अपने जीवनकाल में उन्होंने हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा को समृद्ध करने का प्रयास किया। हिंदी साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए भारत में उन्हें तीसरा सबसे बड़ा नागरी सम्मान, पद्म भूषण पुरस्कार, देकर सम्मानित किया गया।
बता दें कि हिंदी साहित्य जगत में प्रमुख कथाकार और उपन्यासकारों की सूची में शिवपूजन सहाय का नाम आता है। हिंदी साहित्य में वे आचार्य के रूप में जाने जाते हैं। उनके द्वारा रचित साहित्य रचनाओं के आधार पर बहुत से शोधकर्ताओं ने पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। देश के अनेक विद्यालयों और महाविद्यालयों में उनके द्वारा रचित रचनाओं का पाठ पढ़ाया जाता है। तो आइए, शिवपूजन सहाय का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान की विस्तृत जानकारी पर नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
---|---|
नाम | शिवपूजन सहाय |
जन्म | 09 अगस्त 1893, भोजपुर, बिहार |
पिता का नाम | वागेश्वरी दयाल |
माता का नाम | राजकुमारी देवी |
शिक्षा | प्रारंभिक शिक्षा गाँव में, उच्च शिक्षा आरा के हाईस्कूल में |
पहली नौकरी | बनारस के दीवानी अदालत में नकलनवीस |
संपादक के रूप में कार्य | “मारवाड़ी सुधार,” “मतवाला,” “समन्वय,” “गंगा,” “जागरण,” “बालक,” “हिमालय,” और “साहित्य” |
स्वतंत्रता आंदोलन में भाग | 1920 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय भागीदारी |
प्रमुख रचनाएँ | “मतवाला माधुरी,” “देहाती दुनिया,” “तूती मैना,” “रंगभूमि” (संपादकीय) |
पुरस्कार | 1960 में पद्म भूषण, 1962 में डी.लिट. (भागलपुर विश्वविद्यालय) |
मृत्यु | 21 जनवरी 1963, आयु 69 वर्ष |
निधन स्थान | पटना, बिहार |
Contents
शिवपूजन सहाय का प्रारंभिक जीवन
हिंदी साहित्य के आधुनिक युग के प्रमुख कथाकार और उपन्यासकार शिवपूजन सहाय का जन्म 09 अगस्त 1893 को बिहार राज्य के भोजपुर जिले के उनवास नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम वागेश्वरी दयाल और माता का नाम राजकुमारी देवी था। उनके पिता गाँव के कायस्थ जमींदार थे। भगवान शिव के प्रति उनके परिवार की विशेष श्रद्धा थी, इसलिए शिवपूजन सहाय जी को उनके परिवार वाले बचपन में भोलेनाथ नाम से पुकारते थे।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में हुई। आगे की शिक्षा के लिए उन्हें भोजपुर जिले के आरा नगर के एक हाईस्कूल में दाखिल किया गया। वहाँ से उन्होंने अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई द्वितीय श्रेणी से पास करके पूरी की।
शिवपूजन सहाय का कार्यक्षेत्र
अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपनी नौकरी की शुरुआत बनारस के दीवानी अदालत से की। यहाँ पर उन्होंने नकलनवीस के रूप में काम किया। नकलनवीस का मतलब होता है मुहर्रिर, जिसका काम दूसरों के लेखों की नकल करना होता है। इसके बाद उन्होंने आरा के एक हाईस्कूल में हिंदी भाषा के शिक्षक के रूप में नौकरी की।
1921 में उन्होंने शिक्षक की नौकरी का इस्तीफा दे दिया और इसके बाद उनका संपादक के रूप में प्रवास शुरू हुआ। उन्होंने अपने संपादक का कार्य मारवाड़ी सुधार पत्रिका से आरंभ किया। वहाँ पर एक साल तक काम करने के बाद, 1924 में उन्होंने “मतवाला,” जो कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका थी, के लिए संपादक के रूप में कार्य करना शुरू किया।
“मतवाला” के लिए कुछ महीने काम करने के बाद, उन्होंने 1925 में “समन्वय,” “मौजी,” और “गोलमाल” के लिए संपादन कार्य करना शुरू किया। फिर 1931 में “गंगा,” 1932 में “जागरण,” 1934 में “बालक,” और 1946 में “हिमालय” इस साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए उन्होंने कार्य किया। अंत में, 1950 से लेकर 1962 तक उन्होंने “साहित्य” के लिए कार्य किया। इस तरह उनका कार्यक्षेत्र बहुत ही विस्तृत रहा।
शिवपूजन सहाय का स्वतंत्रता आंदोलन में सहभाग
शिवपूजन सहाय जी ने केवल हिंदी साहित्य को ऊंचाई तक पहुँचाने का कार्य नहीं किया, बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर देश को आजाद करने के लिए भी प्रयास किए। उनके कार्यकाल में हमारा देश ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था। अनेक क्रांतिकारी सशस्त्र और अहिंसक मार्ग से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए प्रयासरत थे।
20वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में महात्मा गांधी जी ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन की सूत्रधारिता की। अनेक लोग उनसे प्रभावित होकर उनके द्वारा शुरू किए गए देशव्यापी आंदोलनों में भाग ले रहे थे। शिवपूजन सहाय जी ने भी देश के प्रति अपना दायित्व निभाने के लिए 1920 में गांधी जी द्वारा पुकारे गए असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। उसके पहले, विद्यालय में अध्यापन कार्य करते समय उन्होंने काशी नागरी प्रचारिणी सभा में हिस्सा लेना प्रारंभ किया था।
शिवपूजन सहाय का साहित्यिक परिचय
शिवपूजन सहाय जी ने विद्यालय में अध्यापन करते समय अपनी साहित्यिक रचनाओं का सृजन करना शुरू किया था। हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक युग के कथाकार और उपन्यासकार के रूप में उन्हें जाना जाता है। उन्होंने संपादकीय क्षेत्र में भी अनमोल भूमिका निभाई। “मतवाला माधुरी,” “देहाती दुनिया,” और “तूती मैना” उनकी प्रारंभिक कृतियाँ थीं। अपनी साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित होने से पहले भी उनके लेख “लक्ष्मी,” “मनोरंजन,” और “पाटलीपुत्र” जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे।
उनके साहित्यिक रचनाओं की भाषा बहुत सहज थी; साहित्यप्रेमियों को उनकी कृतियाँ पढ़ने के बाद सहजता से अर्थ समझ में आ जाता था। उन्होंने गद्य रचना करते समय उसे पद्य की छटा देने का प्रयास किया। अपनी रचनाओं में रंग भरने के लिए उर्दू, फारसी भाषा और उस समय के प्रचलित मुहावरे का उपयोग किया। उनकी ज्यादातर रचनाएँ लोक जीवन और लोक संस्कृति पर आधारित हैं। हिंदी पत्रकारिता में उनका विशेष योगदान रहा।
उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादकीय कार्य किया। हिंदी साहित्य जगत में प्रमुख उपन्यास के रूप में जाने जाने वाले मुंशी प्रेमचंद की “रंगभूमि” का संपादकीय कार्य और उनकी कुछ कहानियों का संपादन भी शिवपूजन सहाय जी ने किया।
आज़ादी के बाद, हिंदी साहित्य के प्रति उनके योगदान और प्रसिद्धता को देखते हुए, 1950 में सहाय जी को बिहार राष्ट्र भाषा परिषद के संचालक पद पर नियुक्त किया गया। उन्होंने अनेक साप्ताहिक, मासिक, और त्रैमासिक पत्रिकाओं के लिए काम किया, लेकिन वे एक स्वतंत्र पत्रकार थे, इसलिए उनका संपादकीय क्षेत्र विस्तृत रहा।
शिवपूजन सहाय की साहित्यिक रचनाएँ
आचार्य शिवपूजन सहाय जी ने अपने कार्यकाल में अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया, जिसमें विशेष रूप से कथा, उपन्यास, निबंध, संस्मरण आदि का समावेश था। उनके साहित्यिक रचनाओं के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।
कथा एवं उपन्यास
- तूती-मैना
- देहाती दुनिया – 1926
- विभूति – 1935
- वे दिन वे लोग – 1965
- बिम्ब: प्रतिबिम्ब – 1967
- मेरा जीवन – 1985
- स्मृतिशेष – 1994
- हिन्दी भाषा और साहित्य – 1996 में
- ग्राम सुधार – 2007
- शिवपूजन सहाय साहित्य समग्र (10 खंड) – 2011
- शिवपूजन रचनावली (4 खंड) – 1956-59
संपादन कार्य
- द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ – 1933
- जयन्ती स्मारक ग्रन्थ – 1942
- अनुग्रह अभिनन्दन ग्रन्थ – 1946
- राजेन्द्र अभिनन्दन ग्रन्थ – 1950
- हिंदी साहित्य और बिहार (खंड 1-2, 1960, 1963)
- अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रन्थ – 1960
- बिहार की महिलाएं – 1962
- आत्मकथा (ले. डॉ. राजेंद्र प्रसाद) – 1947
- रंगभूमि – 1925
संपादित पत्र-पत्रिकाएँ
- मारवाड़ी सुधार – 1921
- मतवाला – 1923
- माधुरी – 1924
- समन्वय – 1925
- मौजी – 1925
- गोलमाल – 1925
- जागरण – 1932
- गंगा – 1931
- बालक – 1934
- हिमालय – 1946-47
- साहित्य – 1950-62
शिवपूजन सहाय के पुरस्कार और सम्मान
आचार्य शिवपूजन सहाय जी को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें प्राप्त हुए कुछ पुरस्कारों की जानकारी नीचे दी गई है:
- आचार्य शिवपूजन सहाय जी को 1960 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 1962 में, भागलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि देकर सम्मानित किया।
- उनके प्रति आदरांजलि अर्पित करने के लिए भारतीय डाक विभाग ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया।
शिवपूजन सहाय का निधन
आचार्य शिवपूजन सहाय जी ने अपने पूरे जीवनकाल को हिंदी साहित्य जगत को ऊंचाई पर ले जाने के लिए प्रयास किया। उनके कार्यकाल में उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को भी एक अलग पहचान दी। 21 जनवरी 1963 को इस महान लेखक ने दुनिया को अलविदा कहा। मृत्यु के समय उनकी आयु 69 वर्ष थी। जीवन के अंतिम समय में आचार्य बिहार (पटना) में रह रहे थे, और वहीं उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
उनके जाने से हिंदी साहित्य जगत को बड़ा नुकसान हुआ। आज आचार्य हमारे बीच शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनकी साहित्यिक रचनाओं में वे साहित्यप्रेमियों के मन में आज भी जिंदा हैं और रहेंगे।
FAQs
शिवपूजन सहाय का असली नाम क्या है?
आप सही हैं। शिवपूजन सहाय का असली नाम “भोलानाथ” था। वे “शिवपूजन सहाय” नाम से प्रसिद्ध हुए, जो उनका साहित्यिक नाम है।
देहाती दुनिया किसका उपन्यास है?
“देहाती दुनिया” आचार्य शिवपूजन सहाय का उपन्यास है। यह ग्रामीण जीवन और संस्कृति पर आधारित एक महत्वपूर्ण रचना है।
वे दिन वे लोग किसकी रचना है?
“वे दिन वे लोग” आचार्य शिवपूजन सहाय की रचना है। यह उपन्यास उनके साहित्यिक योगदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें उन्होंने अपने समय के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश को दर्शाया है।
शिवपूजन सहाय बनारस में कौन सी नौकरी कर रहे थे?
शिवपूजन सहाय बनारस में दीवानी अदालत में नकलनवीस के रूप में नौकरी कर रहे थे।
शिवपूजन सहाय की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी हैं?
तूती-मैना, देहाती दुनिया, विभूति, वे दिन वे लोग, बिम्ब: प्रतिबिम्ब, मेरा जीवन, स्मृतिशेष, ग्राम सुधार। इनके अलावा, उन्होंने कई संपादित पत्रिकाएं और ग्रंथ भी लिखे हैं।
सारांश
हमें विश्वास है कि हमने इस लेख में प्रस्तुत शिवपूजन सहाय का जीवन परिचय (Shivpujan Sahay Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी शिवपूजन सहाय जी के जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।
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