विष्णु प्रभाकर का जीवन परिचय – Vishnu Prabhakar Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए विष्णु प्रभाकर का जीवन परिचय (Vishnu Prabhakar Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक युग के प्रमुख साहित्यकारों में विष्णु प्रभाकर का नाम लिया जाता है। उन्होंने अपने कार्यकाल में उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक, जीवनी, बाल साहित्य आदि विधाओं में अपनी रचनाओं का सृजन किया। विष्णु जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे।
उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत नेहरू लैंड पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। ‘ढलती रात’, ‘आदि और अंत’, ‘हत्या के बाद’, ‘जाने अनजाने’ जैसे दर्जनभर से ज्यादा साहित्यिक रचनाओं का सृजन उन्होंने किया। हिंदी साहित्य क्षेत्र में उनका योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
उनके द्वारा रची गई रचनाओं की एक लंबी सूची तैयार हो जाएगी। ‘मुंशी प्रेमचंद‘ और ‘अज्ञेय‘ जैसे प्रमुख हिंदी साहित्यकारों का साथ उन्हें मिला। तो आइए, हम प्रभाकर का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके योगदान पर एक नजर डालते हैं।
पूरा नाम | विष्णु प्रभाकर |
जन्म तिथि | 21 जून 1912 |
जन्म स्थान | मीरापुर, मुजफ्फरनगर, मध्यप्रदेश |
पिता का नाम | श्री दुर्गा प्रसाद |
माँ का नाम | श्रीमती महादेवी |
शादी की तिथि | 30 मई 1938 |
पत्नी का नाम | सुशीला देवी |
संतान | दो बेटे (अतुल प्रभाकर, अमित प्रभाकर), दो बेटियाँ (आर्चना, अनीता) |
प्रारंभिक शिक्षा | मीरापुर, हिसार (आर्यसमाजी विद्यालय) |
उच्च शिक्षा | संस्कृत में प्रज्ञा, अंग्रेजी में बी.ए. |
प्रारंभिक नौकरी | सरकारी नौकरी (18 रुपये प्रति माह) |
प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ | ‘ढलती रात’, ‘आदि और अंत’, ‘हत्या के बाद’, ‘जाने अनजाने’, ‘आवारा मसीहा’ आदि |
प्रमुख पुरस्कार | पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत नेहरू लैंड पुरस्कार, मूर्तिदेवी सम्मान, शलाका सम्मान |
साहित्यिक क्षेत्र में योगदान | उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक, जीवनी, बाल साहित्य, संस्मरण, आत्मकथा, यात्रा वृतांत आदि |
सार्वजनिक योगदान | गांधी जी के विचारों से प्रेरित, स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी |
मृत्यु तिथि | 11 अप्रैल 2009 |
मृत्यु कारण | मूत्र संक्रमण और निमोनिया |
Contents
विष्णु प्रभाकर का प्रारंभिक जीवन
विष्णु प्रभाकर जी का जन्म 21 जून 1912 को भारत के मध्यप्रदेश राज्य के मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर नामक एक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री दुर्गा प्रसाद था, जो बहुत ही धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे, और माता का नाम श्रीमती महादेवी था। उस समय ज्यादा महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं होती थीं, फिर भी विष्णु प्रभाकर जी की माँ ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी और वे सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय थीं।
अपनी माँ के विचारों और घर के धार्मिक वातावरण का असर विष्णु जी के बालमन पर पड़ा। इसलिए, आगे चलकर उन्होंने अच्छी शिक्षा प्राप्त की और अपना नाम हिंदी साहित्य जगत में रोशन किया। वैसे उनका नाम विष्णु दयाल था, लेकिन उस समय वे विष्णु प्रभाकर नाम से लिखते थे और सभी लोग उन्हें विष्णु प्रभाकर नाम से ही जानते थे।
विष्णु प्रभाकर की शिक्षा
उनकी माँ, श्रीमती महादेवी, विष्णु जी की शिक्षा को लेकर बहुत ही गंभीर थीं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव मीरापुर से प्राप्त की। आगे की पढ़ाई के लिए मीरापुर में उस समय कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। इसलिए, उनकी माँ ने उन्हें अपने मामा के गाँव हिसार भेजा, जो उस समय (स्वतंत्रता के पूर्व) पंजाब में था और स्वतंत्रता के बाद हरियाणा में शामिल कर लिया गया।
हिसार में उन्होंने आर्यसमाजी विद्यालय से अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की। लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनकी शिक्षा में रुकावटें आ रही थीं। हालांकि, शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा उनके मन में दृढ़ थी, इसलिए उन्होंने नौकरी करने का निर्णय लिया ताकि शिक्षा पूरी कर सकें और खर्चों के लिए भी पैसे मिल सकें।
उस समय उन्हें एक सरकारी नौकरी मिली, जिसमें उन्हें प्रति माह 18 रुपये मिलते थे। मेहनत और लगन से विष्णु जी ने सफलतापूर्वक संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की।
विष्णु प्रभाकर का कार्यक्षेत्र
विष्णु प्रभाकर जी को जो सरकारी नौकरी मिली थी, उसमें उन्होंने केवल शिक्षा पूरी करते समय ही कार्य किया। उसी दौरान, उन्होंने हिंदी साहित्यिक रचनाओं का सृजन करना प्रारंभ किया। सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने एक नाटक मंडली के साथ कार्य किया और साहित्य सृजन भी जारी रखा, जिससे उन्हें कुछ आर्थिक सहायता मिलती रही।
देश को आज़ादी मिलने के बाद वे नई दिल्ली आ गए और 1955 में उन्हें आकाशवाणी केंद्र में नाट्य निर्देशक के पद पर कार्य करने का अवसर मिला। आकाशवाणी में उन्होंने दो साल तक कार्य किया। इसके अतिरिक्त, ‘अखिल भारतीय आयुर्वेद महामंडल’ में भी उन्होंने लेखाकार के रूप में कुछ समय तक कार्य किया।
विष्णु प्रभाकर का स्वतंत्रता आंदोलन में सहभाग
उस समय भारत देश ब्रिटिशों के अधीन था। सभी क्रांतिकारी, सशस्त्र और अहिंसक मार्ग से देश को आज़ाद करने के प्रयास कर रहे थे। 20वीं सदी के प्रारंभ में, महात्मा गांधी जी ने अहिंसक मार्ग से अनेक देशव्यापी आंदोलन खड़े किए। देश में उन्हें मानने वाला और उनके विचारों पर चलने वाला एक बड़ा वर्ग तैयार हो गया था। विष्णु प्रभाकर भी गांधी जी के विचारों से बहुत प्रेरित हुए। उन्होंने अनेक आंदोलनों में सक्रिय हिस्सा लिया।
आंदोलनों में हिस्सा लेने वाले क्रांतिकारियों की आवाज़ दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार उन्हें पकड़कर जेल में डाल देती थी। विष्णु प्रभाकर भी गांधी जी द्वारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किए गए कई आंदोलनों में शामिल हुए, और इस कारण उन्हें भी कई बार जेल जाना पड़ा। इसके अलावा, वे अपने लेखन के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के विरोध में लिखकर लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रहे थे।
विष्णु प्रभाकर का वैवाहिक जीवन
विष्णु प्रभाकर जी ने 30 मई 1938 को सुशीला देवी नामक लड़की से शादी की। उस समय विष्णु जी की आयु लगभग 26 वर्ष की थी। तब शादी करने की उम्र काफी कम मानी जाती थी, लेकिन परिवार की परिस्थितियों के कारण उन्होंने देर से शादी की। उनकी चार संतानें थीं, जिनमें दो बेटे और दो बेटियाँ शामिल थीं।
बेटों का नाम अतुल प्रभाकर और अमित प्रभाकर था, और बेटियों का नाम आर्चना और अनीता था। उनकी पत्नी सुशीला देवी कैंसर जैसी घातक बीमारी से ग्रस्त हो गईं और 8 जनवरी 1990 को 60 वर्ष की आयु में उन्होंने प्राण त्याग दिए।
विष्णु प्रभाकर का साहित्यिक परिचय
विष्णु प्रभाकर जी ने हिंदी साहित्य क्षेत्र में किशोरावस्था में ही पदार्पण किया। साल 1931 में दीवाली के दिन उनकी पहली कहानी हिंदी मिलाप नामक साहित्यिक पत्रिका में छपकर आई थी। लंबे समय बाद, साल 1945 में उनका कहानी संग्रह “आदि और अंत” प्रकाशित हुआ। इसके बाद उनके द्वारा रची गई साहित्यिक रचनाओं का प्रकाशित होने का सिलसिला जारी रहा।
हत्या के बाद, “नव प्रभात”, “डॉक्टर” जैसे कई प्रसिद्ध नाटक उन्होंने लिखे। वे विशेष रूप से बाल साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते हैं। “मोटे लाल”, “कुंती के बेटे”, “रामू की डोली” जैसे कई बाल साहित्य की रचनाएं उन्होंने कीं। इसके अलावा, “जाने अनजाने”, “कुछ शब्द, कुछ रेखाएँ”, “यादों की तीर्थयात्रा” जैसे संस्मरण, “ढलती रात”, “निशिकांत”, “तट के बंधन” जैसे प्रसिद्ध उपन्यास, जीवनी, निबंध, आत्मकथा, यात्रा वृतांत आदि साहित्यिक रचनाओं का सृजन भी उनके हाथों हुआ।
साल 1974 में प्रकाशित उनकी रचना “आवारा मसीहा” ने उन्हें हिंदी साहित्य क्षेत्र में एक अलग पहचान दी। उस समय उनकी यह रचना इतनी प्रसिद्ध हुई कि लोगों की जुबान पर केवल विष्णु प्रभाकर जी द्वारा रचित “आवारा मसीहा” के चर्चे सुनने को मिलते थे।
विष्णु प्रभाकर की साहित्यिक रचनाएँ
विष्णु प्रभाकर जी ने सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। उनके द्वारा रचित साहित्यिक रचनाओं के बारे में नीचे हमने जानकारी दी है।
उपन्यास
- ढलती रात
- स्वप्नमयी
- अर्धनारीश्वर
- धरती अब भी घूम रही है
- क्षमादान
- दो मित्र
- पाप का घड़ा
- होरी
नाटक
- हत्या के बाद
- नव प्रभात
- डॉक्टर
- प्रकाश और परछाइयाँ
- बारह एकांकी
- अशोक
- अब और नहीं
- टूटते परिवेश
कहानी संग्रह
- संघर्ष के बाद
- धरती अब भी घूम रही है
- मेरा वतन
- खिलोने
- आदि और अन्त
आत्मकथा
- पंखहीन – (तीन भागों में)
जीवनी
- आवारा मसीहा
- अमर शहीद भगतसिंह
- सरदार वल्लभभाई पटेल
- काका कालेलकर
यात्रा वृतान्त्
- ज्योतिपुंज हिमालय
- जमुना गंगा के नैहर में
बाल साहित्य
- मोटे लाल
- कुंती के बेटे
- रामू की डोली
- दादा की कचहरी
- जब दीदी भूत बनी
विष्णु प्रभाकर को प्राप्त पुरस्कार और सम्मान
विष्णु प्रभाकर जी को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। नीचे हमने उन्हें प्राप्त हुए पुरस्कारों के बारे में जानकारी देने की कोशिश की है।
- भारत का सर्वोच्च तीसरा नागरिक सम्मान, पद्मभूषण पुरस्कार, उन्हें प्रदान किया गया।
- हिंदी साहित्य क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार देकर उनका गौरव किया गया।
- अर्धनारीश्वर इस प्रसिद्ध उपन्यास के लिए, उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ की तरफ से मूर्तिदेवी सम्मान प्रदान किया गया।
- साहित्य क्षेत्र में उनके कार्य को सम्मानित करते हुए, उन्हें सोवियत नेहरू लैंड पुरस्कार भी दिया गया।
- इसके अलावा, उन्हें शलाका सम्मान और महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
विष्णु प्रभाकर के जीवन से जुड़ी कुछ विशेष बातें
- विष्णु प्रभाकर जी ने उन्हें प्राप्त हुआ पद्मभूषण पुरस्कार 2005 में वापस कर दिया था, क्योंकि राष्ट्रपति भवन से कुछ दुर्व्यवहार के बारे में उन्हें जानकारी मिली थी। इसका विरोध करने के लिए उन्होंने यह पुरस्कार वापस किया था।
- ‘मुंशी प्रेमचंद’, ‘जैनेंद्र’, ‘यशपाल’ और ‘अज्ञेय’ जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों के साथी होने के बावजूद, उन्होंने हिंदी साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान छोड़ी थी।
- उनकी इच्छा थी कि मरने के बाद उनके शरीर के अंग दान किए जाएं, इसलिये उनके शरीर का अंतिम संस्कार नहीं किया गया। उन्होंने अपने शरीर के अंगों का दान किया।
विष्णु प्रभाकर की मृत्यु
आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी ने 11 अप्रैल 2009 को इस दुनिया को अलविदा कहा। मृत्यु के अंतिम समय में वे मूत्र संक्रमण और निमोनिया से पीड़ित थे। इलाज के लिए उन्हें महाराजा अग्रसेन अस्पताल में भर्ती किया गया था, लेकिन शरीर ने साथ न देने के कारण उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
आज विष्णु जी शारीरिक रूप से हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा रचित साहित्यिक रचनाओं के रूप में वे आज भी हमारे बीच जीवित हैं। हिंदी साहित्य क्षेत्र में उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने इस क्षेत्र को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाया। उनके इस योगदान के लिए हिंदी साहित्य जगत उनका हमेशा ऋणी रहेगा।
FAQs
विष्णु प्रभाकर का जन्म और मृत्यु कब हुई थी?
विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून 1912 को हुआ था, और उन्होंने 11 अप्रैल 2009 को उनकी मृत्यु हो गई।
आवारा मसीहा किसकी रचना है?
आवारा मसीहा विष्णु प्रभाकर की रचना है। यह उनकी एक प्रसिद्ध काव्य रचना है, जो 1974 में प्रकाशित हुई, और इसी रचना ने उन्हें ज्यादा प्रसिद्धि दिलाई।
हत्या के बाद किसकी रचना है?
“हत्या के बाद” विष्णु प्रभाकर की रचना है। यह उनके द्वारा रचा गया पहला प्रसिद्ध नाटक है।
आदि और अंत कहानी संग्रह के लेखक कौन हैं?
आदि और अंत कहानी संग्रह के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। यह संग्रह 1945 में प्रकाशित हुआ था और विष्णु प्रभाकर की साहित्यिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
विष्णु प्रभाकर के समकालीन साहित्यकार कौन थे?
मुंशी प्रेमचंद, अज्ञेय, फणीश्वरनाथ रेणु, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, राजेंद्र यादव, रामवृक्ष बेनीपुरी, चित्रा मुदगल यह कुछ उनके समकालीन और प्रमुख हिंदी साहित्यकार थे।
निष्कर्ष
हमें विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत विष्णु प्रभाकर का जीवन परिचय (Vishnu Prabhakar Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें, ताकि वे भी विष्णु प्रभाकर जी की जीवनी और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।
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