जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय – Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। जयशंकर प्रसाद जी हिंदी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। वे एक सुप्रसिद्ध कवि के साथ-साथ एक उत्कृष्ट कहानीकार, नाटककार और उपन्यासकार भी थे। उनकी रचनाएँ इतनी सरल और सुंदर हैं कि पाठक को उनका अर्थ सहजता से समझ में आता है और जीवन में नई प्रेरणा मिलती है।
उनकी रचनाएँ आज भी कई स्कूल और कॉलेज की पाठ्यपुस्तकों में देखने को मिलती हैं। तो आइए, जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके योगदान पर एक नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
---|---|
नाम | जयशंकर प्रसाद |
जन्म | 30 जनवरी 1889, काशी (वाराणसी), उत्तर प्रदेश |
पिता | श्री देवी प्रसाद |
माता | मुन्नी देवी |
शिक्षा | आठवीं कक्षा तक |
शादियाँ | 1. पहली पत्नी: विंध्यवासिनी देवी (1909-1916) 2. दूसरी पत्नी: सरस्वती देवी (1917-1919) 3. तीसरी पत्नी: कमला देवी (1922) |
संतान | पुत्र: रत्नशंकर प्रसाद |
प्रमुख कृतियाँ | “चन्द्रगुप्त”, “स्कंदगुप्त”, “कंकाल”, “गुनाह”, “कामायिनी” |
पुरस्कार | मंगलाप्रसाद पुरस्कार |
मृत्यु | 15 नवंबर 1937, आयु: 48 वर्ष |
विशेषता | कवि, कहानीकार, नाटककार, उपन्यासकार |
योगदान | हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान, नाटक विधा को नई पहचान |
Contents
जयशंकर प्रसाद जी का प्रारंभिक जीवन
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के काशी (वाराणसी) शहर में एक समृद्ध परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री देवी प्रसाद और माता का नाम मुन्नी देवी था। जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण कवियों और नाटककारों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने नाटक विधा को नई पहचान दी। उनकी प्रमुख कृतियों में “चन्द्रगुप्त”, “स्कंदगुप्त”, “कंकाल” और “गुनाह” शामिल हैं।
दानशीलता के लिए जाने जाने वाले जयशंकर प्रसाद के पिता, श्री देवी प्रसाद, को काशीवासी काशी नरेश के बाद एक उच्च स्थान देते थे। गरीबों और कलाकारों की सहायता करने की परंपरा उनके दादा, शिवरतन साहू, से चली आ रही थी, जो स्वयं भी एक प्रतिष्ठित दानशील व्यक्ति थे।
जयशंकर प्रसाद जी का वैवाहिक जीवन
जयशंकर प्रसाद जी की कुल तीन शादियाँ हुई थीं। उनकी पहली पत्नी का नाम विंध्यवासिनी देवी था, विंध्यवासिनी देवी की शादी प्रसादजी के साथ 1909 में हुई थी। लेकिन उनका साथ प्रसादजी को 1916 में काफी कम मिला क्योंकि विंध्यवासिनी देवी क्षयरोग के कारण चल बसी।
इसके बाद, उन्होंने दूसरी शादी कर ली। उनकी दूसरी पत्नी का नाम था सरस्वती देवी और 1917 में उनकी शादी सरस्वती देवी के साथ हुई। लेकिन यह शादी भी लगभग दो साल तक टिकी क्योंकि सरस्वती देवी का देहांत प्रसूती के दौरान हो गया।
फिर उन्होंने तीसरी शादी की, उनके तिसरी पत्नी का नाम कमला देवी था। प्रसादजी से कमला देवी को 1922 में एक पुत्र हुआ, जिसका नाम था रत्नशंकर प्रसाद।
जयशंकर प्रसाद जी की शिक्षा
हम आपको यहाँ बताना चाहते हैं कि, जयशंकर प्रसाद जी प्रसिद्ध कथाकार, नाटककार और कवि थे। लेकिन ज्यादा सीखना शायद उनके भाग्य में नहीं था। उनके पिता और भाई की अनायास मौत होने के कारण उन्हें बचपन में ही स्कूल छोड़ना पड़ा। आठवीं कक्षा में सिख रहे जयशंकर को स्कूल छोड़कर नन्ही उम्र में घर की आई जिम्मेदारी को अपने कंधे पर लेना पड़ा। लेकिन सीखने की सुप्त इच्छा उनके मन में कायम थी।
उन्होंने व्यवसाय को संभालकर घर पर ही सीखना शुरू किया। हिंदी, संस्कृत, उर्दू और पाली भाषा पर अपनी पकड़ मजबूत करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने इन भाषाओं में लिखी गई साहित्य का पाठन करना शुरू कर दिया। इसके साथ साथ, उन्होंने भारत के वेद पुराणों का भी ज्ञान संग्रहीत करना शुरू किया था। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। उन्होंने अमरकोश, लघुकौमुदी जैसे साहित्य को बड़ी सहजता से कंठगत किया था। खेलने की उम्र में ही उन्होंने कथाएं और कविताएं लिखना शुरू किया था।
जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक रचनाएँ
जयशंकर प्रसाद जी ने अनेक साहित्य की रचना की। उनके द्वारा रची गई रचनाएँ भारत के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति को बयां करती हैं क्योंकि यह रचनाएँ इतिहास और संस्कृति से प्रेरित होकर रची गई थीं। उनमें “कामायिनी” यह उनकी मशहूर रचना थी, जिसके लिए उन्हें मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
काव्य-संग्रह
जयशंकर प्रसाद जी ने अपने कार्यकाल में अनेक कविताएँ रची। उन्होंने काव्य को लिखने की शुरुआत ब्रज भाषा से की और उसके बाद वे अपनी मूल भाषा में लिखने लगे। इन कविताओं को पढ़ने में इतनी सरलता है कि आपको उसका अर्थ सहजता से समझ में आ सकता है। आप इन कविताओं को पढ़कर उसका आनंद ले सकते हैं। यहां से कुछ कविताएं हमने नीचे दी हैं। आप इन कविताओं को ज़रूर पढ़ सकते हैं।
- कामायिनी
- जवाब
- ज्यों कि त्यो
- गीत संगीत
- कोकिला
- स्वर
- अच्छूत
- कुंज
- उषा
- समीर
- मधुआ
- सारंग
- चित्रलेखा
- स्वप्न सुधा
कथा-संग्रह
जयशंकर प्रसाद जी ने अनेक कथाएं रची। इन कथाओं में ऐसे शब्दों का उपयोग किया गया है जो आपको सहजता से समझ में आ सकते हैं। इन कथाओं को पढ़कर आपको आनंद मिलेगा। उसमें से कुछ कथाओं के नाम हमने नीचे दिए हैं। आप इन कथाओं को जरूर पढ़ सकते हैं।
- बहुधा नाटक
- चंदा
- पुरस्कार
- वीरांगना
- चंदना
- भीख में
- साज़
- अरण्य
- अग्निपथ
- काली आंखें
ये कथाएं उनके शैली और कला का प्रतीति हैं और भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
नाटक
जयशंकर प्रसाद यह एक बड़ा नाम था क्योंकि उन्होंने रचित कथाएं, कविताएं और नाटकों की वजह से भारतीय साहित्य क्षेत्र को एक बड़ी ऊंचाई पर पहुंचाने का काम किया है। उनकी कथाएं जब आप पढ़ेंगे तो आपको हर एक शब्द के पीछे का भाव तुरंत समझ आएगा। उन्होंने हर कविता, कथा और नाटक को मीठी भाषा में लिखा है। उनकी द्वारा रची हुई कुछ कथाएँ के नाम हम नीचे देखेंगे।
- चंद्रलेखा
- स्कन्धगुप्त
- सरोजिनी
- अग्निकुंड
- विश्वमित्र
- कान्हा कुंवरी
- कालिदास
- धर्मवीर
- अशोक
- मधुशाला
- नागमानि
- नंदिनी
- किरणबला
- दीपक
- अभिन्न
- अग्निपथ
- प्रियदर्शिका
- ज्वालामुखी
- सीताहरण
- वीरांगना
- निर्मला
- दीपावली
- चिरहरण
- जगन्मोहिनी
- बहुरूपिया
- बाल विवाह
- विद्रोही
- गगन
- प्रतिबिम्ब
- प्रिया
- विवाह-वाद
जयशंकर प्रसाद जी का निधन
बहुत ही कम उम्र में जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी अंतिम सांस ली, मृत्यु समय में उनकी आयु केवल 48 वर्ष थी। 15 नवंबर 1937 को उनका देहांत हुआ। उनके मृत्यु का कारण वह कुछ दिनों से किसी बीमारी से झूझ रहे थे, यह बताया गया। वे बीमार थे, उस समय उनके दोस्तों ने उन्हें वाराणसी के बाहर जाकर इलाज लेने की सलाह दी लेकिन वे वाराणसी न छोड़ने के अपने प्रण पर अड़े रहे।
उनका अंत्यसंस्कार काशी की हरिश्चंद्र घाट पर हुआ। उनके अंतिम दर्शन लेने के लिए घाट पर बड़ी पैमाने में भीड़ जमा हो गई थी।
FAQs
जयशंकर प्रसाद का जन्म कब और कहाँ हुआ?
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को काशी (वाराणसी), उत्तर प्रदेश में हुआ था।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कृतियाँ कौन-कौन सी हैं?
उनकी प्रमुख कृतियों में “चन्द्रगुप्त”, “स्कंदगुप्त”, “कंकाल”, “गुनाह” और “कामायिनी” शामिल हैं।
जयशंकर प्रसाद के माता-पिता का नाम क्या था?
उनके पिता का नाम श्री देवी प्रसाद और माता का नाम मुन्नी देवी था।
जयशंकर प्रसाद को किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
जयशंकर प्रसाद को मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई और उनकी आयु क्या थी?
जयशंकर प्रसाद की मृत्यु 15 नवंबर 1937 को हुई, और उस समय उनकी आयु केवल 48 वर्ष थी।
जयशंकर प्रसाद को हिंदी साहित्य में क्यों जाना जाता है?
जयशंकर प्रसाद को हिंदी साहित्य में एक प्रमुख कवि, कहानीकार और नाटककार के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने नाटक विधा को नई पहचान दी।
जयशंकर प्रसाद की सबसे प्रसिद्ध रचना कौन-सी है?
“कामायिनी” उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसे बहुत सराहा गया है और इसके लिए उन्हें पुरस्कार भी मिला था।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी जयशंकर प्रसाद जी के जीवनी और हिन्दी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।
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