Gautam Buddha Biography in Hindi : भगवान गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
Gautam Buddha Biography in Hindi : इस भारतवर्ष में अनेक ऐसे महात्मा हुए हैं जिनका आदर्श आज पूरी दुनिया अपना रही है। उन्होंने दिखाए हुए मार्ग पर चलकर लाखों लोगों ने अपने जीवन में सुधार लाया है। संपूर्ण विश्व को शांति का संदेश देने वाले गौतम बुद्ध आप सभी को परिचित हैं। उनका नाम सिद्धार्थ था, लेकिन उन्हें पूरी दुनिया में गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध के नाम से पहचाना जाता है। आज पूरे विश्व में उनके लाखों अनुयायी हैं और उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलकर अपना जीवन जी रहे हैं।
उनके अनुयायी को बौद्ध के रूप में जाना जाता है। प्राचीन भारत में उन्हें शाक्यभिक्षु कहा जाता था। बौद्ध का मतलब है प्रबुद्ध, जिन्होंने सत्य को जानकर मोह माया के बंधन से मुक्ति प्राप्त कर ली।
Gautam Buddha Biography in Hindi
नीचे लेख मे हमने भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के जन्म से लेकर मृत्यु तक का सफर दिया है। उनकी जीवनी और उनका मानवकल्याण प्रति कार्य के बारे मे जानकारी देने का प्रयास किया है। उनकी जीवन से जुड़ी अनसुनी बाते जानने के लिये इस लेख को पूरा पढे।
प्रारंभिक जीवन
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में हुआ था। लुंबिनी प्रांत उनका जन्मस्थान था। यह स्थान दक्षिणी नेपाल में स्थित है। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था और माता का नाम महामाया था। पिता शुद्धोधन शाक्य कुल के राजा थे और माता कोलीय वंश की राजकुमारी थीं। लेकिन सिद्धार्थ की जन्म के सात दिन बाद माता महामाया का देहांत हो गया। शुद्धोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती ने सिद्धार्थ के पालन पोषण की जिम्मेदारी ली।
ऐसा बताया जाता है कि बुद्ध के जन्म के बाद राजदरबार के ज्योतिषियों द्वारा ऐसी भविष्यवाणी की गई थी कि यह बालक आगे चलकर एक बड़ा महात्मा बनेगा।राजपरिवार से होने के कारण सिद्धार्थ को उनके घरवालों ने लाड प्यार से पाला। उनका जीवन ऐशो-आराम से गुजर रहा था। अपनी नौजवानी में भी उन्होंने महल के बाहर की दुनिया नहीं देखी थी।
एक दिन सिद्धार्थ रथ में अपने सारथी के साथ राज्य का चक्कर लगाने के लिए निकले थे। सड़कों पर से गुजरते समय उनकी नजर एक बुजुर्ग आदमी, एक व्याधिग्रस्त शरीर, और एक प्राणरहित देह पर पड़ी। यह सब देखकर गौतम बुद्ध बहुत दुखी हो गए। उन्होंने सारथी से प्रश्न किया, “यह सब क्या है?” तो सारथी ने जवाब दिया, “युवराज, यह मनुष्य के शरीर की स्थिति है। मनुष्य को इन सभी स्थितियों से गुजरना पड़ता है और इसका अंत मौत से होता है। दुनिया में कोई भी व्यक्ति हो, आज तक मृत्यु से कोई नहीं बच सका है।”
यह सुनने के बाद वे और निराश हो गए। उनका मन खिन्न हो गया। लौटते समय उन्हें एक साधु दिखाई दिया। उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिला: “इन दर्द और दुःख भरे जीवन से यदि मुक्ति पानी हो, तो सबका त्याग करके हमें ईश्वर के मार्ग पर चलना होगा।”
उनका विचार पक्का हो गया और परिवार को बिना बताए 29 साल की आयु में, पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़कर, वे अपने जीवन का उत्तर खोजने निकल पड़े।
ज्ञान की प्राप्ति
दुःख भरे जीवन का उत्तर खोजने के लिए अपने परिवार और संसार को त्यागकर बुद्ध सादा भेष लेकर जंगल की ओर चल पड़े। जंगल में उनकी मुलाकात आलार कलाम और उद्दक रामपुत्र से हुई। ऐसा कहा जाता है कि आलार कलाम उनके प्रथम गुरु थे। उन्होंने सिद्धार्थ को सिखाया कि मन को शून्यता की अवस्था में कैसे लाया जा सकता है। उद्दक रामपुत्र से उन्होंने सीखा कि चित्त को एकाग्र कैसे किया जा सकता है और योग साधना के साथ समाधि अवस्था में जाने का ज्ञान प्राप्त किया।
लेकिन उन्हें अभी तक मुक्ति का मार्ग नहीं मिला था। वे वहाँ से निकलकर उरुवेला आ गए और वहाँ तपस्या में लीन रहने लगे।
सिद्धार्थ ने अपने पाँच साथियों के साथ केवल चावल के दाने खाकर और बाद में बिना कुछ खाए तपस्या की। उनका शरीर पूरी तरह से सुख गया था। तपस्या करते समय उनके कानों में एक श्लोक पड़ा, जिससे उन्हें ज्ञात हुआ कि बिना खाए-पिए तपस्या करना उचित नहीं है। उन्होंने तपस्या का त्याग करना उचित समझा। इस निर्णय से उनके साथ जो लोग थे, उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया।
अपना परिवार छोड़कर ज्ञान की प्राप्ति की खोज में सिद्धार्थ के 6 साल गुजर चुके थे। तरह-तरह की तपस्या करने के बाद भी उन्हें अभी तक सफलता नहीं मिली थी। उनकी आयु अब 35 साल हो चुकी थी। वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ पीपल के पेड़ के नीचे बैठे थे। वहाँ पास के गाँव की सुजाता नामक स्त्री आ गई। सुजाता ने संतान प्राप्ति के लिए पीपल के पेड़ से मन्नत मांगी थी और वह मन्नत पूरी हो गई थी। इसलिए, सुजाता मन्नत के अनुसार सोने की थाली में खीर लेकर आई थी। वृक्ष के नीचे उसे एक तपस्वी दिखाई दिया, जिसे देखकर उसने सोचा कि पीपल के पेड़ के नीचे साक्षात वृक्षदेवता बैठे हैं।
सुजाता को ऐसा आभास हुआ। उसने बड़े आदर सत्कार के साथ खीर सिद्धार्थ को दे दी और कहा, “मेरी मनोकामना पूरी हो गई है। आपकी भी मनोकामना जल्द ही पूरी होगी।” ऐसा कहकर सुजाता वहाँ से चली गई। उसी रात सिद्धार्थ को सच्चाई का ज्ञान हुआ, और उस क्षण से सिद्धार्थ बुद्ध बन गए। जिस पीपल के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, वह वृक्ष बोधिवृक्ष के नाम से प्रचलित हुआ और समीपवर्ती गांव को बोधगया के नाम से जाना जाने लगा।
धर्म-चक्र-प्रवर्तन
उस समय ज्यादातर लोग व्यवहार में पाली भाषा का उपयोग करते थे। संस्कृत भाषा का भी उपयोग किया जाता था, लेकिन वह सामान्य लोगों को समझ नहीं आती थी। इसलिए, बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार और प्रसार पाली भाषा में करना शुरू किया। ज्ञान प्राप्त होने के बाद बुद्ध अपने प्रथम गुरु को खोजने निकले, लेकिन उनकी मृत्यु हो चुकी थी।
उसके बाद वे उन पाँच लोगों को खोजने निकले, जो बुद्ध के निर्णय के बाद उन्हें छोड़कर चले गए थे। वे पाँच लोग उन्हें सारनाथ में मिले। बुद्ध ने उन्हें मिले हुए ज्ञान के बारे में बताया और उन्हें उपदेश दिया। इसके बाद उन्होंने उन पाँच लोगों को धर्म का प्रसार करने के लिए भेज दिया।
बुद्ध ने 49 वर्ष तक धर्म का प्रसार किया। वे भारत और भारत के बाहर यात्रा करते रहे। अपने जीवन के अंतिम वर्ष तक, अर्थात 80 वर्ष की आयु तक, वे घूमते रहे।
मृत्यू
गौतम बुद्ध की मृत्यु तब हुई जब वे 80 वर्ष के थे। कुंडा नामक एक लोहार ने भेंट के रूप में उन्हें भोजन दिया। यह भोजन करने के बाद बुद्ध बीमार पड़ गए। जब वे मृत्यु से जूझ रहे थे, तब उन्होंने अपने शिष्यों को समझाया कि वे कुंडा को गलत न समझें। यह तो मात्र एक निमित्त था। मेरा कार्य अब समाप्त हो चुका है। जल्द ही मेरा महापरिनिर्वाण होगा।
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सारांश
आज इस लेख में हमने भगवान गौतम बुद्ध का जीवन परिचय (Gautam Buddha Biography in Hindi) संक्षिप्त रूप में जानने का प्रयास किया है। हमें पता है कि गौतम बुद्ध का जीवन एक लेख में आपको बताना असंभव है। इसलिए उनके जीवन के कुछ पहलू हमने यहाँ आपके लिए दिए हैं। आपको यह जानकारी कैसी लगी, यह कृपया हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं। अगर इस लेख के बारे में आपके पास और जानकारी हो, तो आप हमें मेल कर सकते हैं। और यदि यह लेख आपको अच्छा लगा हो, तो आप सोशल मीडिया के माध्यम से अपने प्रियजनों के साथ शेयर करना न भूलें। धन्यवाद।
FAQ’s
गौतम बुद्ध के गुरु का क्या नाम है?
गौतम बुद्ध के प्रमुख गुरु अलार कलाम थे। उनके द्वारा बुद्ध को मन की शून्यता और ध्यान की अनुभूति का ज्ञान मिला था।
बुद्ध किस जाति के थे?
बुद्ध का जन्म शाक्य वंश में हुआ था, जिसे शाक्य जाति कहा जाता है। इसलिए वे शाक्य कुल के थे। इसी कारण उन्हें शाक्यमुनि भी कहा जाता है।
बौद्ध धर्म का जनक कौन है?
बौद्ध धर्म का जनक या संस्थापक गौतम बुद्ध हैं। उन्होंने अपने उपदेशों और जीवन जीने के तरीके के माध्यम से बौद्ध धर्म की आधारशिला रखी।