मोहन राकेश का जीवन परिचय – Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम हिंदी साहित्य जगत के प्रमुख लेखक मोहन राकेश का जीवन परिचय देखने जा रहे हैं।आधुनिक हिंदी साहित्य में मोहन राकेश का नाम अग्रणी माना जाता है। उन्होंने 20वीं सदी के मध्य और उत्तरार्ध मे अपने साहित्यकाल में हिंदी साहित्य को एक नई पहचान दी। हिंदी साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों के बीच उनके द्वारा लिखित कहानी संग्रह, उपन्यास, नाटक, एकांकी और डायरी आज भी प्रसिद्ध हैं। उन्हें हिंदी साहित्य में बहुमुखी साहित्यकार के रूप में जाना जाता था।
मोहन राकेश ने किसी भी विषय पर नाटक, उपन्यास या कथा सहजता से लिखी। उनके कार्य की सराहना करते हुए उन्हें विभिन्न पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। हालांकि, समय के साथ उनका नाम समय के परदे के पीछे छिप गया। मोहन राकेश का जीवन परिचय उजागर करने वाले इस लेख को जरूर पढ़ें ताकि आप उनके साहित्यिक योगदान और जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में विस्तार से जान सकें। यदि लेख पसंद आए, तो इसे अपने दोस्तों के साथ अवश्य साझा करें।
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Contents
विवरण | जानकारी |
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वास्तविक नाम | मदन मोहन गुगलानी |
उपनाम | मोहन राकेश |
जन्म तिथि | 8 जनवरी 1925 |
जन्म स्थान | अमृतसर, पंजाब |
पारिवारिक पृष्ठभूमि | सिंधी परिवार, पिता: कर्मचंद गुगलानी (वकील), माता: बचन |
भाई-बहन | एक बड़ी बहन (कमला), एक छोटा भाई (वीरेंद्र) |
शिक्षा | प्रारंभिक शिक्षा: हिंदू विश्वविद्यालय; बी.ए.: ओरिएंटल कॉलेज, लाहौर; एम.ए.: पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ |
पेशेवर जीवन | 21 वर्ष की उम्र में नौकरी की शुरुआत, दिल्ली विश्वविद्यालय में लेक्चरर, ‘सारिका’ पत्रिका के संपादक |
वैवाहिक जीवन | तीन विवाह (सुशीला, पुष्पा, अनिता आलोक), सभी असफल |
मृत्यु तिथि | 3 दिसंबर 1972, नई दिल्ली |
आयु | 48 वर्ष |
मोहन राकेश का जीवन परिचय
मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। वे एक सिंधी परिवार से थे, और उनके पिता, कर्मचंद गुगलानी, एक वकील होने के साथ-साथ साहित्य और संगीत में गहरी रुचि रखते थे। उनकी माता का नाम बचन था, जिन्हें उनके बच्चे प्यार से ‘अम्मा’ कहकर बुलाते थे। मोहन राकेश अपने परिवार में दूसरे नंबर के संतान थे, उनकी एक बड़ी बहन कमला और एक छोटा भाई वीरेंद्र था।
जब मोहन राकेश केवल 16 वर्ष के थे, उनके पिता का निधन हो गया, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस कठिन परिस्थिति के बावजूद, उन्होंने साहित्य में अपनी गहरी रुचि को बनाए रखा और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। मोहन राकेश ने अपने लेखन के माध्यम से एक प्रतिष्ठित लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई।
आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा कि उनके परिवार का सरनेम तो गुगलानी था, फिर मोहन जी का सरनेम राकेश कैसे पड़ा? इसके पीछे का कारण यह है कि मोहन राकेश का पूरा नाम मदन मोहन गुगलानी था, लेकिन हिंदी साहित्य में उन्होंने मोहन राकेश के नाम से पहचान बनाई।
मोहन राकेश की शिक्षा
मोहन राकेश एक सामान्य परिवार से थे, और उनकी पारिवारिक आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर थी। इसी वजह से उन्हें बचपन से ही आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जब मोहन राकेश छोटे थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया, जिससे उनके कंधों पर माँ, बड़ी बहन और छोटे भाई की जिम्मेदारी आ गई। उसी वर्ष उन्होंने शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी।
बचपन में मोहन राकेश पंजाब के अमृतसर और जालंधर में रहे थे। उनके साहित्य में वहाँ की संस्कृति और परिवेश का जिक्र मिलता है। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिंदू विश्वविद्यालय से पूरी की। आगे की शिक्षा के लिए वे लाहौर गए और वहाँ ओरिएंटल कॉलेज में दाखिला लिया। बी.ए. तक की शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने एम.ए. की पढ़ाई चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय से की।
शिक्षा के प्रति उनकी गंभीरता और लगन उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में मददगार साबित हुई। उनका संघर्ष और शिक्षा के प्रति समर्पण उनके साहित्यिक योगदान में स्पष्ट रूप से झलकता है।
मोहन राकेश की नौकरी
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, मोहन राकेश ने 21 साल की उम्र में नौकरी करना शुरू किया। लेकिन उनका स्वभाव कुछ अलग था; वह किसी के दबाव में काम करने वाले व्यक्ति नहीं थे। उनके इस स्वतंत्र स्वभाव के कारण उन्हें बार-बार नौकरियां बदलनी पड़ीं।
1962 के दौर में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में लेक्चरर के पद पर नौकरी की, लेकिन कुछ कारणों से उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने ‘सारिका’ पत्रिका में संपादक के रूप में कार्य किया। वहां भी उन्होंने कुछ समय तक नौकरी की और फिर ‘सारिका’ के संपादक पद से भी इस्तीफा दे दिया। उनके इस स्वतंत्र स्वभाव के कारण उन्हें बार-बार नौकरियां बदलनी पड़ीं।
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मोहन राकेश का वैवाहिक जीवन
मोहन राकेश का वैवाहिक जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में तीन बार विवाह किया, लेकिन सभी विवाह असफल रहे। उनकी तीनो पत्नियों के नाम सुशीला, पुष्पा और अनिता आलोक थे। इन तीनों ने बारी बारी मे तलाक देकर मोहन राकेश का साथ छोड़ दिया।
इस असफल वैवाहिक जीवन के पीछे उनका स्वतंत्र स्वभाव, साहित्य में समर्पण के कारण व्यस्त जीवनशैली हो सकते हैं। हालांकि, उस समय के हिंदी साहित्य के कुछ बड़े साहित्यकार उनके मित्र थे और उनके प्रभाव से मोहन राकेश की रचनाओं में भी असर दिखाई देता था।
मोहन राकेश का साहित्यिक योगदान
हिंदी साहित्य में मोहन राकेश का योगदान नव संजीवनी देने वाला माना जाता है। उन्होंने उस समय हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। उनके साहित्य ने यथार्थवाद को मजबूत करते हुए समाज में नई चेतना जगाई। आज भी साहित्य जगत में कथाकारों और नाटककारों में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है।
मोहन राकेश की साहित्यिक रचनायें
मोहन राकेश ने बहुत कम उम्र में ही हिंदी साहित्य में कदम रखा। जब वे छात्र थे, तभी से उन्होंने कहानी, निबंध, उपन्यास, नाटक आदि लिखना शुरू कर दिया था। शिक्षा के प्रति उनकी गंभीरता और साहित्य रचना की चाह बचपन से ही थी, जिसने उन्हें एक उत्कृष्ट साहित्यकार बनने में मदद की।
श्रेणी | रचना का नाम | प्रकाशन वर्ष |
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कहानी संग्रह | संचित कहानियाँ | 1966 |
उन्हें भी आना था | 1959 | |
देखते हैं सपने | 1965 | |
मिठाई वाला | 1967 | |
बेखुदी में | 1972 | |
उपन्यास | न आने वाला कल | 1972 |
विषकन्या | 1970 | |
नयी सड़क | 1952 | |
नाटक | आषाढ़ का एक दिन | 1958 |
लहरों के राजहंस | 1963 | |
आधे-अधूरे | 1969 | |
अंधेरे बंद कमरे | 1961 | |
मलबे का मालिक | 1973 | |
आग का दरिया | 1973 | |
अप्रकट | 1961 | |
एकांकी | साधारण आदमी | 1961 |
जहर का घूंट | 1961 | |
उदित मुठ्ठी | 1970 | |
डायरी | मुझे देखने दो | 1996 |
एक दिन की डायरी | 1985 |
मोहन राकेश की ये सभी रचनाएँ उनके साहित्यिक योगदान और हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
मोहन राकेश को मिले पुरस्कार
मोहन राकेश को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनकी सराहना करने हेतु उन्हें विभिन्न पुरस्कार मिले हैं, जिनकी जानकारी निम्नलिखित है।
पुरस्कार का नाम | वर्ष |
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साहित्य अकादमी पुरस्कार | 1969 |
सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार | 1973 |
कवि चंद्रधर शर्मा गुलेरी पुरस्कार | 1959 |
दिल्ली सरकार का शिखर सम्मान | 1972 |
राजीव गाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार | 1992 |
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार | 1982 |
मधु महेश्वरी पुरस्कार | 1971 |
प्रेमचंद पुरस्कार | 1966 |
मृत्यु
मोहन राकेश जी ने अपने जीवन काल में हिंदी साहित्य की दिल से सेवा की। लेकिन 3 दिसंबर 1972 को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। उनकी हृदय की गति अचानक रुक गई और इसी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। उस समय उनकी आयु 48 वर्ष थी। हालांकि उन्होंने काफी कम उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनकी साहित्यिक रचनाओं के कारण वे आज भी जीवित हैं।
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FAQ’s
मोहन राकेश के पिता का नाम क्या था?
मोहन राकेश के पिता का नाम करमचंद गुगलानी था।
मोहन राकेश कौन से युग के रचनाकार हैं?
मोहन राकेश आधुनिक हिंदी साहित्य के रचनाकार हैं। उन्होंने 20वीं सदी के मध्य और उत्तरार्ध में अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं, जो भारतीय समाज की जटिलताओं और यथार्थ को गहराई से चित्रित करती हैं।
हिंदी नाटक में मोहन राकेश का क्या योगदान है?
मोहन राकेश ने हिंदी नाटक को नई दिशा दी। उन्होंने यथार्थवाद को मजबूत किया और पारंपरिक नाटकीय संरचनाओं को चुनौती दी। उनके नाटक जैसे “आषाढ़ का एक दिन” और “आधे-अधूरे” ने नाटकीयता और साहित्यिक गहराई में नए मानक स्थापित किए। उनके योगदान ने हिंदी नाटक को समृद्ध किया और आधुनिकता को पारंपरिक रंगमंच के साथ जोड़ा।
मोहन राकेश ने कितने विवाह किए थे?
मोहन राकेश ने तीन विवाह किए थे। उनकी पहली पत्नी का नाम सुशीला था, दूसरी पत्नी का नाम पुष्पा था, और तीसरी पत्नी का नाम अनीता आलोक था।
मोहन राकेश को साहित्य अकादमी पुरस्कार कब मिला?
मोहन राकेश को साहित्य अकादमी पुरस्कार 1969 में मिला था।
सारांश
हमें पूरा विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत मोहन राकेश का जीवन परिचय पढ़कर आप उनके हिंदी साहित्य में किए गए योगदान को समझ सकेंगे और उनके साहित्यिक महत्व को जान सकेंगे। यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी हो, तो कृपया इसे अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ साझा करें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस प्रकार के विभिन्न लेख मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं।