अमीर खुसरो का जीवन परिचय – Amir Khusro Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए अमीर खुसरो का जीवन परिचय (Amir Khusro Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। अमीर खुसरो यह नाम हिंदी साहित्य जगत से जुड़ा हुआ है। वे हिंदी साहित्य के आदि कवि, शायर, गायक, और संगीतकार थे। उन्होंने अपनी सभी रचनाओं का सृजन हिंदी खड़ी बोली में किया। हिंदी भाषा दुनिया को मालूम भी नहीं थी तब उन्होंने हिंदी को हिंदवी नाम देकर अपनी रचनाएँ की थीं। अपनी रचनाओं का सृजन उन्होंने हिंदवी और फारसी भाषा में किया था। कहा जाता है कि खड़ी बोली को साहित्यिक रचनाओं में स्थान देने वाले वे पहले हिंदी साहित्यकार थे।
हिंदी साहित्य में अमीर खुसरो का महत्वपूर्ण स्थान है। आज भी उनके द्वारा रचित साहित्य का पाठ भारत के कई महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। देश में होने वाली कई स्पर्धा परीक्षाओं में उनके साहित्य के आधार पर प्रश्न पूछे जाते हैं। अनेक शोधकर्ताओं ने उनके साहित्य पर पीएचडी भी की है। तो आइए, अमीर खुसरो का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान की विस्तृत जानकारी पर नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
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नाम | अमीर खुसरो |
जन्म | सन् 1253 ईस्वी, पटियाली, एटा, उत्तर प्रदेश |
माता-पिता | पिता: सैफुद्दीन, माता: सय्यदा मुबारक बेगम |
मूल नाम | अबुल हसन |
प्रसिद्धि | हिंदी साहित्य जगत में “तोता-ए-हिंद” के नाम से प्रसिद्ध |
भाषाएँ | हिंदी (हिंदवी), फारसी, संस्कृत, तुर्की, अरबी |
शिक्षा | युद्ध प्रशिक्षण, काव्य रचनाएँ, पवित्र धर्मग्रंथों का अध्ययन |
प्रमुख रचनाएँ | खालिकबारी, दीवान-ए-हिंदवी, तराना-ए-हिंदवी (हिंदवी), मसनवी लैला मजनू, मसनवी आइना-ए-सिकंदरी, मसनवी अस्प्नामा (फारसी) |
संगीत में योगदान | कव्वाली को अमर बनाया, भारतीय संगीत की शैलियों (इमान, जिल्फ़, साजगरी) का निर्माण |
सम्मान | “अमीर” की पदवी |
युद्ध में भूमिका | सैनिक के रूप में भागीदारी, कई युद्धों में भागीदारी |
निधन | 1325 ईस्वी |
Contents
अमीर खुसरो का जीवन परिचय (Amir Khusro Ka Jivan Parichay)
हिंदी साहित्य जगत में “तोता-ए-हिंद” (भारत का तोता) के नाम से प्रसिद्ध अमीर खुसरो का जन्म सन् 1253 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटियाली नामक कस्बे में हुआ था। उनके पिता का नाम सैफुद्दीन और माता का नाम सय्यदा मुबारक बेगम था। उनका मूल नाम अबुल हसन था, लेकिन सब उन्हें अमीर खुसरो के नाम से जानते हैं। उनकी माँ एक भारतीय मुस्लिम महिला थीं। मूलतः अमीर खुसरो लाचन जाती के तुर्क परिवार से थे।
जब मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज़ ख़ान ने मध्य एशिया के लाचन जाती के तुर्क लोगों पर आक्रमण किया, तो उनके परिवार ने शरणार्थी के रूप में भारत में आकर बसने का निर्णय लिया। उन्हें दिल्ली के सुलतान गियास-उद-दीन बलबन के राज्य में आसरा दिया गया। अमीर खुसरो की माँ अमीर एमादुल्मुल्क रावत की पुत्री थीं। एमादुल्मुल्क गियास-उद-दीन बलबन के राज्य में युद्धमंत्री थे। जब अमीर खुसरो की उम्र सात साल की थी, तब उनके पिता का निधन हो गया। इतनी कम उम्र में पिता की अनुपस्थिति से प्रभावित होकर उनके नाना एमादुल्मुल्क रावत ने उनका पालन-पोषण किया।
बचपन से ही अमीर खुसरो मेधावी थे। अपने नाना के घर रहकर उन्होंने युद्ध का प्रशिक्षण लिया और फारसी, संस्कृत, तुर्की, और अरबी भाषाओं का अध्ययन किया। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम समाज के पवित्र धर्मग्रंथों का भी अध्ययन किया, जिससे उन्हें काव्य रचनाओं की प्रेरणा मिली। उनकी व्यावहारिक बुद्धि और साहित्यिक क्षमताओं के कारण उन्हें राजाश्रय मिला। सुलतान गियास-उद-दीन के दरबार में वे कवि, कलाकार, और शायर के रूप में प्रतिष्ठित रहे। इसके अतिरिक्त, शस्त्र चलाने की कला में भी निपुण होने के कारण, वे युद्धों में सैनिक के रूप में भी भाग लेते रहे।
राजाश्रय में एक कवि और शायर के रूप में रहने के बावजूद, जब सैनिकों की संख्या कम पड़ जाती थी, तब अमीर खुसरो स्वयं सैनिक बनकर युद्ध में शामिल होते थे। अपने कार्यकाल में वे अनेक राजाओं के राजाश्रय में रहे और उन्हें युद्ध में भी भाग लेना पड़ा। उनकी रचनाओं में उनके द्वारा किए गए युद्ध का वर्णन भी मिलता है। बुगरा खां, जो कि गियासुद्दीन बलबन के बड़े बेटे थे, के साथ अमीर खुसरो बंगाल पर किए गए आक्रमण में शामिल हुए थे। इसके अलावा, उन्होंने अन्य लड़ाइयों में भी हिस्सा लिया।
अमीर खुसरो का साहित्यिक परिचय
अमीर खुसरो जी ने बचपन से ही काव्य रचनाओं का सृजन करना शुरू कर दिया था। 20 साल की उम्र तक वे अपनी कविताओं के कारण राज्य में काफी प्रसिद्ध हो चुके थे। उन्होंने अपनी रचनाओं का पूरा श्रेय अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया जी को दिया। जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी जब दिल्ली के तख्त पर विराजमान हो गए, तब उन्होंने अमीर खुसरो जी को “अमीर” इस पदवी से सम्मानित किया। महज 8 साल की उम्र में उन्होंने हजरत निजामुद्दीन औलिया जी के पास शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया था।
काव्य रचनाओं के अलावा, वे एक प्रसिद्ध शायर भी थे। 16-17 वर्ष की आयु में उन्हें आमिर लोगों के यहाँ शायरी पेश करने के लिए बुलाया जाता था। वे वहाँ जाकर शायरी प्रस्तुत किया करते थे। भारत में आज भी गाई जाने वाली कव्वाली अमीर खुसरो की देन मानी जाती है। उन्होंने कव्वाली को भारत में अमर बना दिया। भारतीय संगीत की शैलियों, जैसे इमान, जिल्फ़, और साजगरी, के निर्माता अमीर खुसरो जी को ही माना जाता है।
उन्होंने अनेक पहेलियाँ, दोहे, ग़ज़ल, और हिंदवी कविताएँ रची हैं। उनकी रचनाओं की इतनी लंबी सूची तैयार की जा सकती है कि एक पूरी किताब बन जाए। खालिकबारी, दीवान-ए-हिंदवी, और तराना-ए-हिंदवी उनकी कुछ प्रसिद्ध हिंदवी रचनाएँ हैं। इसके अलावा, उन्होंने फारसी में भी रचनाएँ कीं, जिन्हें मसनवी कहा जाता है। मसनवी लैला मजनू, मसनवी आइना-ए-सिकंदरी, और मसनवी अस्प्नामा उनके प्रसिद्ध फारसी पद्य हैं। अपने जीवनकाल में वे ज्यादातर राजाश्रय में रहे और इसी दौरान उन्होंने बहुत सी रचनाएँ कीं।
अमीर खुसरो की साहित्यिक रचनाएँ
अमीर खुसरो जी ने अनेक हिंदवी और फारसी साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। उनके द्वारा रचित कुछ साहित्यिक रचनाओं के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।
- दीवान-ए-अमीर खुसरो
- दीवान-ए-हिंदवी
- तराना-ए-हिंदवी
- खालिकबारी
- रियाज़-उल-वीलीया
- मसनवी लैला मजनू
- मसनवी आइना-ए-सिकंदरी
- मसनवी अस्प्नामा
- अश्कि-नामा
- नसीहत-उल-मुलुक
- तवारीख-ए-फीरोजशाही
- कव्वाली
अमीर खुसरो की साहित्यिक रचनाओं के कुछ अंश
नीचे हमने अमीर खुसरो जी द्वारा रची गई साहित्यिक रचनाओं के कुछ अंश दिए हैं। इन्हें आप जरूर पढ़ें ताकि आपको उनके द्वारा रचित रचनाओं के बारे में जानने का मौका मिले।
खुसरो के गीत
बहोत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तोरे पी ने बुलाई।
बहोत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई।
बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई।
चार कहार मिल डोलिया उठाई, संग परोहत और भाई।
चले ही बनेगी होत कहाँ है, नैनन नीर बहाई।
अन्त बिदा हो चलि है दुल्हिन, काहू कि कछु न बने आई।
मौज-खुसी सब देखत रह गए, मात पिता और भाई।
मोरी कौन संग लगन धराई, धन-धन तेरि है खुदाई।
बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्ही, नेह की मिसरी खिलाई।
एक के नाम कर दीनी सजनी, पर घर की जो ठहराई।
गुण नहीं एक औगुन बहोतेरे, कैसे नोशा रिझाई।
खुसरो चले ससुरारी सजनी, संग कोई नहीं आई। – अमीर खुसरो
मुकरियां
पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो।
जब उतरयो पसीनो आयो।।
सहम गई नहिं सकी पुकार।
ऐ सखि साजन ना सखि बुखार।।
राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने न अपनी कहे।
ना कुछ मोसे झगड़ा-टंटा।
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा। – अमीर खुसरो
बिनबूझ पहेलियाँ
एक थाल मोती से भरा
सबके सर पर औंधा धरा
चारों ओर वह थाली फिरे
मोती उससे एक न गिरे। – अमीर खुसरो
(आकाश)
बिनबूझ पहेलियाँ
एक नार ने अचरज किया
सांप मार पिंजरे में दिया
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए
ताल सूख सांप मर जाए – अमीर खुसरो
(दिया-बाती)
अमीर खुसरो का निधन
1325 ई. में अमीर खुसरो जी ने अपना देह त्याग दिया। कहा जाता है कि वे अपने गुरु से बहुत प्रेम करते थे। जब वे युद्ध को जीतकर दिल्ली लौटे, तब उनके गुरु इस दुनिया में नहीं रहे; यह समाचार उन्हें बहुत दुखी किया। अपने जीवन के अंतिम समय में राजाश्रय छोड़कर वे अपने गुरु की दरगाह में रहने लगे। अपने गुरु की मौत के छह महीने बाद उन्होंने भी आखिरी सांस ली। अमीर खुसरो जी आज शारीरिक रूप से हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन वे अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्य जगत में जीवित हैं। हिंदी साहित्य जगत उनके इस अनमोल योगदान को हमेशा याद रखेगा।
FAQs
अमीर खुसरो किसका बेटा था?
अमीर खुसरो का पिता सैफुद्दीन था। सैफुद्दीन एक तुर्क था और उनके परिवार को मंगोल आक्रमण के दौरान मध्य एशिया से भारत में शरण मिली थी।
अमीर खुसरो कौन थे और वह क्यों प्रसिद्ध थे
अमीर खुसरो (1253-1325) एक प्रसिद्ध भारतीय कवि और संगीतकार थे। वे हिंदी और फारसी में रचनाएँ करने के लिए जाने जाते हैं और कव्वाली के प्रवर्तक माने जाते हैं।
अमीर खुसरो किसके शिष्य थे?
अमीर खुसरो हजरत निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे।
अमीर खुसरो का दूसरा नाम क्या था?
अमीर खुसरो का दूसरा नाम अबुल हसन था।
अमीर खुसरो किसका समकालीन था?
अमीर खुसरो दिल्ली सल्तनत के कई शासकों का समकालीन था, जिनमें मुख्यतः गियासुद्दीन बलबन, अलाउद्दीन खिलजी, और फिरोज़ शाह तुगलक शामिल हैं।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में दिया गया अमीर खुसरो का जीवन परिचय (Amir Khusro Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के विभिन्न लेख देखने को मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं।