वृंदावनलाल वर्मा का जीवन परिचय – Vrindavan Lal Verma Ka Jivan Parichay

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नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए वृंदावनलाल वर्मा का जीवन परिचय (Vrindavan Lal Verma Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक युग के प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकारों की सूची में वृंदावनलाल जी का नाम लिया जाता है। वृंदावनलाल जी मुख्य रूप से नाटककार और उपन्यासकार थे। इसके अलावा, उन्होंने कहानी संग्रह और अनेक काव्य रचनाएँ भी सृजित कीं। “झाँसी की रानी,” “महारानी दुर्गावती” जैसे एक से बढ़कर एक उपन्यास और “फूलों की बोली,” “बाँस की फाँस,” “काश्मीर का काँटा” जैसे दर्जनभर प्रसिद्ध नाटकों का उन्होंने सृजन किया।

हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार देकर वर्मा जी का सम्मान किया गया। आज भी भारत के कई महाविद्यालयों में उनके द्वारा रचित साहित्यिक रचनाओं का पाठ पढ़ाया जाता है। देश में होने वाली कई स्पर्धा परीक्षाओं में उनके साहित्य के आधार पर प्रश्न पूछे जाते हैं। उनके सृजित साहित्य पर कई शोधकर्ताओं ने पीएचडी भी की है। तो आइए, वृंदावनलाल वर्मा का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके योगदान पर एक नज़र डालते हैं।

विवरणजानकारी
नामवृंदावनलाल वर्मा
जन्म तिथि9 जनवरी 1889
जन्म स्थानमऊरानीपुर, झाँसी, उत्तर प्रदेश
पिता का नामअयोध्या प्रसाद
शिक्षाबी.ए. (विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर), एल.एल.बी. (आगरा लॉ कॉलेज)
पेशावकील, साहित्यकार
प्रमुख रचनाएँ– सेनापति ऊदल (नाटक)
– गौतम बुद्ध की जीवनी
– प्रत्यागत
– संगम
– प्रेम की भेट
– गढ़ कुंडार
पुरस्कार– पद्मभूषण
– सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
– साहित्य वाचस्पति (मानद डॉक्ट्रेट)
मृत्यु तिथि23 फरवरी 1969
मृत्यु की आयु80 वर्ष

वृंदावनलाल वर्मा का प्रारंभिक जीवन

वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी 1889 को उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के मऊरानीपुर में हुआ था। वे एक कायस्थ परिवार से थे, और उनके पिता का नाम अयोध्या प्रसाद था, जो झाँसी के तहसीलदार कार्यालय में “रजिस्ट्रार कानूनगो” के रूप में कार्यरत थे। वृंदावनलाल वर्मा जी हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार थे, जिन्होंने हिंदी उपन्यास के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा जी का जन्म 09 जनवरी, 1889 में उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के मऊरानीपुर नामक एक गाँव में हुआ था। वृंदावनलाल जी एक कायस्थ परिवार से थे। उनके पिता का नाम अयोध्या प्रसाद था। उनके पिता झाँसी के तहसीलदार कार्यालय में “रजिस्ट्रार कानूनगो” के रूप में कार्यरत थे।

सरकारी नौकरी होने के कारण उनका बार-बार तबादला होता रहा, जिससे वृंदावनलाल जी की प्रारंभिक शिक्षा अलग-अलग जगहों पर हुई। मैट्रिक की परीक्षा में सफलता हासिल करने के बाद वृंदावनलाल जी ने नौकरी करने का निर्णय लिया। लेकिन आगे सीखने की चाह ने उन्हें शांत बैठने नहीं दिया। उन्होंने आगे पढ़ाई करने का निश्चय किया और नौकरी का इस्तीफा देकर विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर में दाखिला लिया।

इस कॉलेज से उन्होंने सफलतापूर्वक और अच्छी श्रेणी के साथ बी.ए. की परीक्षा पास की। वकील बनने की चाह उनके मन में बचपन से थी, इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर आगे की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। बी.ए. तक की शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने आगरा के लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया और वहाँ से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।

शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने झाँसी में वकालत शुरू की। शुरुआती दौर में उन्हें वकालत के क्षेत्र में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में वे इस क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गए। वृंदावनलाल वर्मा एक साहित्यकार और वकील होने के साथ-साथ अच्छे निशानेबाज भी थे। उन्होंने अपने जीवन में किए गए शिकार का वर्णन अपनी रचना “दंबे पाँव” में किया है।

वृंदावनलाल वर्मा का स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान

वृंदावनलाल वर्मा जी एक सामाजिक कार्यकर्ता और देश के प्रति प्रेम की भावना रखने वाले व्यक्ति थे। इस भावना के तहत उन्होंने अपने समय में कई क्रांतिकारियों को आर्थिक सहायता दी। आज़ादी के लिए सशस्त्र संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों के साथ उनके अच्छे संबंध थे। वे अहिंसावाद के विरोध में थे और उनका मानना था कि उस समय के माहौल को देखते हुए सशस्त्र संघर्ष ही स्वतंत्रता दिला सकता है।

गांधी जी के अहिंसावादी आंदोलन के वे विरोधी थे। उन्होंने इस विचार को निर्भीकता से व्यक्त करते हुए अपनी साहित्यिक रचनाओं और लेखों में इस बारे में वर्णन किया। दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, तिलक, गोखले, और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे कई क्रांतिकारी नेता उनके आदर्श थे।

वृंदावनलाल वर्मा का साहित्यिक परिचय

वृंदावनलाल वर्मा जी ने साहित्यिक रचनाओं का सृजन करने की शुरुआत शिक्षा लेते समय ही की थी। उन्होंने अपने साहित्यिक रचनाओं की शुरुआत नाटक और उपन्यास से की। उनके रचनाओं के विषय ऐतिहासिक तथा पौराणिक होते थे। अध्ययन के दौरान, 1909 में उन्होंने “सेनापति ऊदल” नामक एक नाटक का सृजन किया था, लेकिन उस समय ब्रिटिश सरकार की हुकूमत थी, और इस नाटक से देशवासियों को प्रेरणा नहीं मिलनी चाहिए थी। इसके कारण उनका यह नाटक जब्त कर लिया गया।

उससे पहले, 1908 में उन्होंने गौतम बुद्ध की जीवनी के बारे में लेखन किया था। स्नातक की शिक्षा लेते समय वृंदावनलाल जी की छोटी-छोटी कहानियाँ साप्ताहिक पत्रिकाओं में छपकर आती थीं। “प्रत्यागत,” “संगम,” “प्रेम की भेट,” “गढ़ कुंडार” उनके शुरुआती दौर में प्रसिद्ध हुए कुछ प्रमुख उपन्यास थे।

इसके अलावा, उन्होंने धीरे-धीरे “राखी की लाज,” “सगुन,” “जहाँदारशाह” जैसे दर्जनभर नाटकों का सृजन किया। “आगे चले चलो,” “सूरज के घोड़े,” “विनोद” ये उनके कुछ काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए थे।

वृंदावनलाल वर्मा की साहित्यिक रचनाएँ

वृंदावनलाल वर्मा जी ने अपने कार्यकाल मे उपन्यास, नाटक, लेख और गद्य रचनाओ का सृजन किया। उनके द्वारा रचित रचनाओ के बारे मे हमने नीचे जानकारी दि है।

उपन्यास

  • प्रत्यागत
  • संगम
  • प्रेम की भेट
  • गढ़ कुंडार
  • कुंडलीचक्र
  • टूटे काँटे
  • कभी न कभी
  • झाँसी की रानी
  • महारानी दुर्गावती
  • मुसाहिबजू
  • कचनार
  • अचल मेरा कोई
  • मृगनयनी
  • माधवजी सिंधिया
  • रामगढ़ की रानी
  • सोना
  • अमरबेल
  • भुवनविक्रम
  • सोती आग
  • डूबता शंखनाद
  • लगन
  • ललितादित्य
  • अहिल्याबाई
  • उदय किरण
  • देवगढ़ की मुस्कान
  • अमर-ज्योति
  • कीचड़ और कमल
  • आहत

नाटक

  • धीरे-धीरे
  • राखी की लाज
  • सगुन
  • जहाँदारशाह
  • फूलों की बोली
  • बाँस की फाँस
  • काश्मीर का काँटा
  • हंसमयूर
  • रानी लक्ष्मीबाई
  • बीरबल
  • खिलौने की खोज
  • पूर्व की ओर
  • कनेर
  • पीले हाथ
  • नीलकण्ठ
  • केवट
  • ललित विक्रम
  • निस्तार
  • मंगलसूत्र
  • लो भाई पंचों लो
  • देखादेखी

कहानी संग्रह

  • दबे पाँव
  • मेढ़क का ब्याह
  • अम्बपुर के अमर वीर
  • ऐतिहासिक कहानियाँ
  • अँगूठी का दान
  • शरणागत
  • कलाकार का दण्ड
  • तोशी

वृंदावनलाल वर्मा के पुरस्कार और सम्मान

हिंदी साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार और नाटककार वृंदावनलाल वर्मा जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें प्राप्त पुरस्कारों के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।

  • भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सर्वोच्च नागरी पुरस्कार, पद्मभूषण, देकर उनका सम्मान किया गया।
  • वर्मा जी के हिंदी साहित्य के योगदान के लिए उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया।
  • आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ (मानद डॉक्ट्रेट) की उपाधि देकर अलंकृत किया गया।
  • उनकी मृत्यु के कुछ सालों बाद, उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए भारतीय डाक विभाग ने 9 जनवरी 1997 को उनके नाम का एक भारतीय टिकट भी जारी किया।

वृंदावनलाल वर्मा का निधन

वृंदावनलाल वर्मा जी का हिंदी साहित्यिक रचनाओं का सफर बचपन से शुरू होकर जीवन के अंत तक जारी रहा। 23 फरवरी 1969 को वर्मा जी ने इस दुनिया को अलविदा कहा। मृत्यु के समय उनकी आयु 80 वर्ष थी। अपने जीवन के अंत तक हिंदी साहित्य की सेवा करने वाले इस अवलिया को हिंदी साहित्य जगत हमेशा याद रखेगा। आज वे शारीरिक रूप से जीवित नहीं हैं, लेकिन अपनी साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से वे आज भी साहित्यप्रेमियों के मन में जिंदा हैं।

FAQs

अमरबेल उपन्यास किसका है?

“अमरबेल” उपन्यास वृंदावनलाल वर्मा जी का है। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण माना जाता है और इसमें सामाजिक और पारिवारिक मुद्दों का चित्रण किया गया है।

गढ़ कुंडार किसकी रचना है?

“गढ़ कुंडार” उपन्यास वृंदावनलाल वर्मा जी की रचना है। यह उपन्यास ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है और भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण कथा को प्रस्तुत करता है।

राखी की लाज नाटक के लेखक कौन थे?

“राखी की लाज” नाटक के लेखक वृंदावनलाल वर्मा जी हैं। यह नाटक सामाजिक और पारिवारिक विषयों को दर्शाता है और उनकी लेखनी में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

वृंदावनलाल वर्मा के पिता का क्या नाम था?

वृंदावनलाल वर्मा के पिता का नाम अयोध्या प्रसाद था।

बाँस की फाँस’ नाटक के रचनाकर का क्या नाम है?

“‘बाँस की फाँस'” नाटक के रचनाकार वृंदावनलाल वर्मा हैं।

सारांश

हमें विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत वृंदावनलाल वर्मा का जीवन परिचय (Vrindavan Lal Verma Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी वृंदावनलाल वर्मा जी के जीवनी और हिन्दी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।

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Team Hindi Words

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