केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय – Kedarnath Agrawal Ka Jeevan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय (Kedarnath Agrawal Ka Jeevan Parichay) लेकर आए हैं। केदारनाथ अग्रवाल यह नाम हिंदी साहित्य जगत से जुड़ा हुआ है। हिंदी साहित्य के आधुनिक युग के प्रमुख कवियों की सूची में उनका नाम लिया जाता है। कविताओं के अलावा, उन्होंने उपन्यास, निबंध और यात्रा साहित्य की भी रचना की है।
उनके द्वारा रचित साहित्य रचनाओं को पाठ्यक्रम के देश के अनेक महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। महत्वपूर्ण स्पर्धा परीक्षाओं में उनके साहित्य के आधार पर प्रश्न पूछे जाते हैं। तो आइए, आधुनिक युग की प्रगतिवादी धारा के प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान की विस्तृत जानकारी पर नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
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नाम | केदारनाथ अग्रवाल |
जन्म तिथि | 1 अप्रैल 1911 |
जन्म स्थान | कमासिन गाँव, बांदा, उत्तर प्रदेश |
पिता | हनुमान प्रसाद |
माता | घसिट्टों देवी |
शिक्षा | – प्रारंभिक शिक्षा: कमासिन गाँव |
– इंटरमीडिएट: रायबरेली, कटनी, जबलपुर | |
– स्नातक: इलाहाबाद विश्वविद्यालय (वर्तमान प्रयागराज) | |
– लॉ: कानपुर के लॉ कॉलेज | |
व्यवसाय | वकालत |
प्रमुख काव्य संग्रह | – “युग की गंगा” (1947) |
– “फूल नहीं रंग बोलते हैं” | |
उपलब्ध पुरस्कार | – सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार |
– साहित्य अकादमी पुरस्कार (1986) | |
– हिंदी संस्थान पुरस्कार | |
– तुलसी पुरस्कार | |
– मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार | |
साहित्यिक योगदान | कविताएँ, निबंध, उपन्यास, यात्रा संस्मरण |
साहित्यिक दृष्टिकोण | प्रगतिवादी, मार्क्सवादी विचार |
निधन तिथि | 22 जून 2000 को, 89 वर्ष की आयु में |
Contents
प्रारंभिक जीवन
हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक युग की प्रगतिवादी धारा के प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल जी का जन्म 1 अप्रैल सन् 1911 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कमासिन गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम हनुमान प्रसाद और माता का नाम घसिट्टों देवी था। उस समय ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की कोई सुविधा नहीं थी। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव कमासिन से प्राप्त की। बचपन से ही पढ़ाई में होशियार होने के कारण आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें अपने चाचा के पास भेजा गया। उन्होंने रायबरेली, कटनी और जबलपुर से अपनी आगे की शिक्षा पूरी की।
अपनी इंटरमीडिएट की शिक्षा पूरी करने के बाद स्नातक की शिक्षा के लिए उन्होंने इलाहाबाद (वर्तमान मे प्रयागराज) विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। साल 1927 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से केदारनाथ जी ने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और स्नातक की डिग्री प्राप्त की। लेकिन और सीखने की चाह उनके मन में थी। उनका अधिवक्ता बनने का सपना था। इसलिए उन्होंने कानपुर के लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया और वहां से साल 1938 में लॉ की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने उपजीविका के लिए बांदा में वकालत का कार्य करना शुरू किया।
उस समय बचपन में ही शादी की जाती थी। कहा जाता है कि केदारनाथ जब सातवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तभी घरवालों ने उनकी शादी कर दी। उनके वैवाहिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
साहित्यिक परिचय
केदारनाथ जी के पिता भी स्वयं कवि थे। उन्होंने “मधुरिम” नाम का एक कविता संग्रह प्रकाशित किया था। कविताएँ लिखने की प्रेरणा उन्हें अपने पिताजी से बचपन में ही मिली थी। हालांकि, कविताएँ सृजित करने की शुरुआत उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय (वर्तमान में प्रयागराज) में पढ़ते समय की। उनकी साहित्यिक रचनाओं में प्रयाग की मिट्टी का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
वे अपनी सभी साहित्यिक रचनाओं का प्रकाशन शिवकुमार सहाय की परिमल प्रकाशन से करते थे। शिवकुमार सहाय और केदारनाथ अग्रवाल जी का नाता पिता-पुत्र जैसा था। केदारनाथ जी परिमल के प्रकाशक शिवकुमार सहाय जी को “बाबूजी” नाम से पुकारते थे। साल 1947 में “युग की गंगा” उनका पहला काव्य संग्रह परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुआ था। अपने कविता संग्रह “फूल नहीं रंग बोलते हैं” के लिए उन्हें सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
केदारनाथ जी राजकीय दृष्टि से सक्रिय थे। वे मार्क्सवादी विचारों के थे और श्रमजीवी समाज के लिए कुछ करने की चाह उनके मन में थी। सामान्य लोगों की व्यथा वे भली-भांति समझते थे। अपनी कविताओं के माध्यम से श्रमजीवी और शोषित लोगों की व्यथाओं को उन्होंने अपनी साहित्यिक रचनाओं में आधार बनाया और प्रगतिवादी धारा के कवियों में अपना एक अलग स्थान बनाया।
शोषित और पीड़ित लोगों के हक के लिए उन्होंने अपनी कविताओं का उपयोग किया। स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध और स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस सरकार के विरुद्ध गरीब लोगों पर होने वाले जुल्म के खिलाफ उन्होंने अपने लेखनी से प्रतिकार किया। शिवकुमार सहाय के देहांत के बाद केदारनाथ जी ने उनके पोते को परिमल प्रकाशन का प्रकाशक बनने के लिए सहायता की। उनकी मदद से परिमल प्रकाशन फिर से जोरदार तरीके से शुरू हुआ। कविताओं के साथ-साथ उन्होंने निबंध, उपन्यास, यात्रा संस्मरण आदि का भी सृजन किया। “विचार बोध” उनके प्रमुख निबंध संग्रहों में से एक था।
साहित्यिक रचनाओं के कुछ अंश
केदारनाथ अग्रवाल जी की कविताएँ सामाजिक मुद्दों पर आधारित थीं। हमने नीचे उनके कुछ प्रसिद्ध कविताओं के अंश दिए हैं।
इसी जन्म में इस जीवन में
“मैं कहता हूँ,
फिर कहता हूँ;
हमको, तुमको प्राण मिलेगा।
मोरों-सा नर्तन करने को,
पूरा हिंदुस्तान मिलेगा॥”
दुख ने मुझको
“दुख ने मुझको
जब-जब तोड़ा,
मैंने
अपने टूटेपन को
कविता की ममता से जोड़ा,”
आज नदी बिल्कुल उदास थी
“आज नदी बिल्कुल उदास थी,
सोई थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसको नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।”
हम जिएँ न जिएँ दोस्त
“हम जिएँ न जिएँ दोस्त,
तुम जियो एक नौजवान की तरह,
खेत में झूम रहे धान की तरह,
मौत को मार रहे बान की तरह।”
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
“जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा”
केदारनाथ अग्रवाल की साहित्यिक रचनाएँ
केदारनाथ अग्रवाल जी ने कविताओं के अलावा निबंध, उपन्यास, यात्रा संस्मरण और कविताओं का अनुवाद भी किया। नीचे हमने उनके द्वारा सृजित साहित्यिक रचनाओं के बारे में जानकारी दी है।
कविताएँ:
- युग की गंगा
- नींद के बादल
- गुलमेंहदी
- फूल नहीं रंग बोलते हैं
- लोक और आलोक
- कहें केदार खरी-खरी
- आग का आइना
- जो शिलाएँ तोड़ते हैं
- जमुन जल तुम
- मार प्यार की थापें
- पंख और पतवार
- हे! मेरी तुम
- अपूर्वा
- बस्ती खिले गुलाबों की
प्रतिनिधि रचनाएँ:
- जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
- पहला पानी
- हमारी जिन्दगी
- जिन्दगी
- मजदूर का जन्म
- बच्चे के जन्म पर
- वह चिड़िया जो
- मात देना नहीं जानतीं
- और का और मेरा दिन
- बसंती हवा
- कनबहरे
- ईद मुबारक
- वीरांगना
- नागार्जुन के बाँदा आने पर
- आज नदी बिलकुल उदास थी
- ओस की बूंद कहती है
- हम और सड़कें
- जीवन से
- मैना
- कंकरीला मैदान
- लंदन में बिक आया नेता
अनूदित रचनाएँ:
- देश-देश की कविताएँ
निबंध:
- समय समय पर
- विचार बोध
- विवेक विवेचन
यात्रा संस्मरण:
- बस्ती खिले गुलाबों की
पुरस्कार और सम्मान
केदारनाथ अग्रवाल जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें मिले कुछ प्रमुख पुरस्कारों के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।
- उनका पहला काव्य संग्रह “फूल नहीं रंग बोलते हैं” के लिए केदारनाथ जी को सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
- साल 1986 में उन्हें “अपूर्वा” इस काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- हिंदी साहित्य क्षेत्र में योगदान देने के लिए उन्हें हिंदी संस्थान पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- अपनी अद्भुत साहित्यिक रचनाओं के लिए उन्हें तुलसी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- हिंदी साहित्य जगत का प्रमुख पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, देकर उनका सम्मान किया गया।
निधन
अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। 22 जून 2000 को हिंदी साहित्य जगत के इस महान साहित्यकार ने दुनिया को अलविदा कहा। 89 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया, लेकिन अपनी साहित्यिक रचनाओं में वे आज भी हिंदी साहित्य प्रेमियों के बीच जीवित हैं। उनकी वास्तववादी रचनाएँ आज भी हमें समाज और राजकीय परिस्थितियों की कठोर वास्तविकता से परिचित कराती हैं।
FAQs
नींद के बदले किसकी रचना है?
“नींद के बदले” केदारनाथ अग्रवाल की एक प्रमुख कविता है।
केदारनाथ अग्रवाल जी के पिता का नाम क्या था?
केदारनाथ अग्रवाल जी के पिता का नाम हनुमान प्रसाद था।
लोक और आलोक किसकी रचना है?
“लोक और आलोक” केदारनाथ अग्रवाल की एक प्रसिद्ध कविता है।
केदारनाथ अग्रवाल का पहला काव्य संग्रह कौन सा है?
केदारनाथ अग्रवाल का पहला काव्य संग्रह “फूल नहीं रंग बोलते हैं” है।
केदारनाथ अग्रवाल जी की मृत्यु कब हुई थी?
केदारनाथ अग्रवाल जी की मृत्यु 22 जून 2000 को हुई थी।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में दिया गया केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय (Kedarnath Agrawal Ka Jeevan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ शेयर करना न भूलें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के विभिन्न लेख देखने को मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। धन्यवाद।