सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का जीवन परिचय
नमस्कार दोस्तों, आज के इस लेख में हम आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का जीवन परिचय जानने जा रहे हैं। आधुनिक हिंदी साहित्य में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का महत्वपूर्ण स्थान है, जिन्हें अज्ञेय के नाम से भी जाना जाता है। हिंदी साहित्य की दुनिया में उनकी गिनती प्रमुख साहित्यकारों में होती है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और उन्होंने कविता, उपन्यास, निबंध, नाटक, और कहानी संग्रह के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। अज्ञेय ने हिंदी काव्य में प्रयोगवाद की शुरुआत की, 1943 में प्रकाशित तारसप्तक कविता संग्रह का संपादन का कार्य उन्होंने किया था और इसमे सात कवियों की काव्यरचना समाविष्ट थी।
20वीं सदी में हिंदी साहित्य में उनके योगदान को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। उनकी साहित्यिक कृतियों और संपादन को लेकर उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। आज भी कई विश्वविद्यालयों और प्रतियोगी परीक्षाओं में उनके साहित्य का अध्ययन किया जाता है। इसलिए इस लेख में दिया गया सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का जीवन परिचय पूरा जरूर पढ़ें, ताकि आप उनके जीवन और साहित्यिक योगदान को अच्छी तरह से समझ सकें।
मोहन राकेश का जीवन परिचय – Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay
विवरण | जानकारी |
---|---|
पूरा नाम | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ |
जन्म तिथि | 7 मार्च 1911 |
जन्म स्थान | कसया (आधुनिक कुशीनगर), उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | हीरानंद वात्स्यायन शास्त्री |
माता का नाम | व्यंतीदेवी |
शिक्षा | प्रारंभिक शिक्षा: घर पर हीएंट्रेंस परीक्षा: पंजाब (1925)इंटर: क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास (1927)बीएससी: फॉरमन कॉलेज, लाहौरएमए (अधूरी): अंग्रेजी विषय में |
स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी | स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका, जिसके चलते चार साल जेल में रहे |
प्रमुख कार्यस्थल | ‘सैनिक’ समाचार पत्र, आगरा’विशाल भारत”दिनमान साप्ताहिक”नवभारत टाइम्स”नया प्रतीक’ |
यात्राएँ | 1955: पश्चिमी यूरोप (यूनेस्को के निमंत्रण पर)1957: जापान और फिलीपींस1960: यूरोप1961: कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, अमेरिका |
प्रयोगवाद की शुरुआत | ‘तारसप्तक’ काव्यसंग्रह (1943) |
प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ | कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, नाटक, निबंध संग्रह, संपादन कार्य |
निधन तिथि | 4 अप्रैल 1987 |
साहित्यिक योगदान | आधुनिक हिंदी साहित्य को संजीवनी देने और प्रयोगवाद के प्रवर्तक के रूप में स्मरणीय योगदान |
Contents
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का जीवन परिचय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के कसया (आधुनिक कुशीनगर) नामक गांव में हुआ था। उनके पिता, हीरानंद वात्स्यायन शास्त्री, भारतीय पुरातत्व विभाग में एक अधिकारी थे, जिसके चलते उन्हें अक्सर विभिन्न स्थानों पर स्थानांतरित होना पड़ता था। इसके कारण अज्ञेय का बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार, और मद्रास जैसे विविध स्थानों पर बीता, जिससे उन्हें विभिन्न साहित्यिक वातावरणों का अनुभव हुआ और उनके साहित्यिक विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान मिला।
उनकी माता का नाम व्यंतीदेवी था, जो एक गृहिणी थीं और अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थीं। अज्ञेय के परिवार में उनका एक भाई भी था, लेकिन उनके बारे में सटीकजानकारी उपलब्ध नहीं है।
शिक्षा
उन्हे बचपन में स्कूल में दाखिल नहीं किया गया था। उन्हें उनके परिवार ने घर पर ही शिक्षा देना प्रारंभ किया था। कहा जाता है कि घर पर रहकर ही उन्होंने संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा का ज्ञान आत्मसात किया। साल 1925 में उन्होंने पंजाब से एंट्रेंस परीक्षा में सफलता हासिल की।
उसके बाद उन्होंने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लेकर वहाँ से साल 1927 में इंटर की परीक्षा में सफलता प्राप्त की। आगे की पढ़ाई करने के लिए वे लाहौर के फॉरमन कॉलेज में दाखिल हुए। वहाँ पर भी मन लगाकर पढ़ाई करके उन्होंने बीएससी की शिक्षा प्राप्त की। फिर अंग्रेजी विषय में एमए शिक्षा पूरी करने लगे लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन मे भाग लेने के कारण उनकी पढ़ाई अधूरी राह गई।
स्वतंत्रता आंदोलक
उस समय भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी। कई क्रांतिकारी देश को आजादी दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, जिनमें ज्यादातर कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र शामिल थे। ये छात्र अपने करियर और घर की परवाह किए बिना स्वतंत्रता आंदोलन में भाग ले रहे थे। सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ भी उनमें से एक थे। लाहौर में एमए की पढ़ाई के दौरान उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए।
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें चार साल की जेल हुई, जिसमें दो साल नजरबंदी में रहे। इसके चलते उन्हें एमए की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।
कार्यक्षेत्र
जेल से रिहा होने के बाद जब अज्ञेय घर लौटे, तो उन्हें अपने परिवार की बुरी हालत का सामना करना पड़ा। उनके जेल में रहने के दौरान उनकी माता और भाई का निधन हो गया था। उनके पिता, जो अब रिटायर हो चुके थे, अधिक उम्र के कारण किसी काम के लायक नहीं थे। घर की स्थिति बेहद खराब थी।
अज्ञेय ने शुरुआती दौर में आगरा से प्रकाशित होने वाले ‘सैनिक’ नामक समाचार पत्र के संपादकीय विभाग में काम किया। इसके बाद उन्होंने ‘विशाल भारत’, ‘दिनमान साप्ताहिक’, ‘नवभारत टाइम्स’, और ‘नया प्रतीक’ जैसे प्रतिष्ठित साप्ताहिकों के संपादकीय विभाग में कार्य किया।
‘अज्ञेय’ जी ने अपने जीवनकाल में देश-विदेश की कई यात्राएँ कीं। साल 1955 में उन्हें यूनेस्को ने आमंत्रित किया, जिसके तहत वे पश्चिमी यूरोप की यात्रा पर गए। फिर, साल 1957 में उन्होंने जापान और फिलीपींस की यात्रा की। 1960 में वे फिर से यूरोप गए। 1961 में, वे “कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय” में भारतीय संस्कृति और साहित्य के अध्यापक बनकर अमेरिका गए और वहाँ कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया।
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अज्ञेय कीं साहित्यिक रचनायें
प्रयोगवाद की शुरुआत अज्ञेय ने संपादित किए गए ‘तारसप्तक’ काव्यसंग्रह से की। इस काव्यसंग्रह में विभिन्न विचारधाराओं के सात कवियों ने मिलकर इसे तैयार किया था। ‘तारसप्तक’ का संपादन 1943 के दौरान हुआ था, और यह संग्रह हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
अज्ञेय एक बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार थे जिन्होंने अपने कार्यकाल में अनेक कहानियाँ, कविताएँ, उपन्यास, नाटक, निबंध संग्रह, और संपादन का कार्य किया। उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में नीचे विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की गई है।
प्रकार | रचना का नाम | वर्ष |
---|---|---|
उपन्यास | शेखर: एक जीवनी | 1941-1944 |
नदी के द्वीप | 1951 | |
अपने-अपने अजनबी | 1961 | |
काव्य संग्रह | भग्नदूत | 1933 |
हरी घास पर क्षण भर | 1949 | |
इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये | 1957 | |
आँगन के पार द्वार | 1976 | |
कितनी नावों में कितनी बार | 1979 | |
कहानी संग्रह | परंपरा | 1944 |
कोठरी की बात | 1945 | |
जयदोल | 1951 | |
निबंध संग्रह | अर्थ और अनर्थ | 1963 |
त्रिशंकु | 1966 | |
सपना अब भी | 1976 | |
नाटक | उत्तर प्रियदर्शी | 1967 |
संसार | 1956 | |
संपादन | तारसप्तक | 1943 |
पुरस्कार एवं सम्मान
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ को उनके हिंदी साहित्य के योगदान के लिए राज्य और केंद्र सरकार के साथ-साथ विभिन्न संस्थानों द्वारा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनमें से कुछ पुरस्कारों के नाम नीचे दिए गए हैं।
पुरस्कार/सम्मान | वर्ष |
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साहित्य अकादमी पुरस्कार | 1964 |
ज्ञानपीठ पुरस्कार | 1978 |
पद्म भूषण | 1968 |
साहित्य अकादमी फेलोशिप | 1976 |
देहांत
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ एक प्रतिभावान कवि थे। वृद्धावस्था में उन्हें कई बीमारियों ने घेर लिया था। आखिरकार, 4 अप्रैल 1987 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। हालांकि, उनकी रचनाओं के माध्यम से वे आज भी जीवित हैं।
आधुनिक युग में हिंदी साहित्य को संजीवनी देने का कार्य अज्ञेय ने किया। प्रयोगवाद के प्रवर्तक के रूप में उनका नाम सदा स्मरणीय रहेगा। हिंदी साहित्य को आधुनिक युग में संवारने और उसका उच्च स्थान बनाए रखने के लिए हिंदी साहित्य जगत हमेशा अज्ञेय का ऋणी रहेगा।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में दिया गया सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का जीवन परिचय आपको जरूर अच्छा लगा होगा। यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो, तो इस लेख को अपने दोस्तों के साथ साझा करना न भूलें।हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के अनेक लेख मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। वहाँ पर आपको रोजाना अपडेट मिलते रहेंगे। धन्यवाद।
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FAQ’s
‘अज्ञेय’ जी का जन्म कब हुआ?
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जी का जन्म 7 मार्च 1911 को हुआ था।
‘अज्ञेय’ का पूरा नाम क्या है?
‘अज्ञेय’ का पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन था।
‘अज्ञेय’ की मृत्यु कब हुई?
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की मृत्यु 4 अप्रैल 1987 को हुई।
‘अज्ञेय’ का पिता का क्या नाम था?
‘अज्ञेय’ के पिता का नाम हीरानंद शास्त्री था।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन के द्वारा लिखी हुई कहानी कौन सी है?
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ द्वारा लिखी गई प्रमुख कहानियों में से एक है “कोठरी की बात”। यह कहानी उनके कहानियों के संग्रह का हिस्सा है और हिंदी साहित्य में उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक मानी जाती है।