शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय – Shivmangal Singh Suman Ka Jivan Parichay

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नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय (Shivmangal Singh Suman Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। हिंदी साहित्य जगत में वे आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक थे। वे मुख्य रूप से कवि थे, लेकिन कवि होने के बावजूद वे एक उत्तम लेखक भी थे। अपनी कल्पक बुद्धि और श्रेष्ठ लेखनी के माध्यम से उन्होंने आलोचना और नाटक का भी सृजन किया। उनकी सभी रचनाएं देशप्रेम, स्वतंत्रता, और लोगों पर होने वाले अन्याय के प्रति विरोध दर्शाने वाली थीं।

उनका हिंदी साहित्य जगत में योगदान देखकर भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा। उनके कार्यकाल में शिवमंगल जी ने उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (लखनऊ) के उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। आज उनके द्वारा रचित रचनाओं का पाठ भारत के कई महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। उनकी रचनाओं पर बहुत से छात्रों ने पीएचडी भी की है। तो आइए, शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान की विस्तृत जानकारी पर नज़र डालते हैं।

विवरणविवरण
नामशिवमंगल सिंह सुमन
जन्म5 अगस्त 1915, झगरपुर गांव, उन्नाव, उत्तर प्रदेश
पिता का नामठाकुर साहब बख्श सिंह
शिक्षाएम.ए., पीएचडी, डी.लिट. (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय)
कुलपतिविक्रम विश्वविद्यालय (1968-1978)
प्रमुख कार्यकालभारतीय दूतावास, काठमांडू (1956-1961), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष, भारतीय विश्वविद्यालय संघ (नई दिल्ली) के अध्यक्ष
प्रसिद्ध काव्य संग्रहहिल्लोल, जीवन के गान, युग का मेल
प्रमुख कविताएँसांसों का हिसाब, चलना हमारा काम है, मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार, असमंजस
प्रसिद्ध आलोचनाएँमहादेवी की काव्य-साधना, गीति काव्य, उद्यम, विकास
प्रसिद्ध नाटकप्रकृति पुरुष कालिदास
प्रमुख पुरस्कारदेव पुरस्कार (1958), नवीन पुरस्कार (1964), पद्म भूषण (1974), सोवियत-भूमि नेहरू पुरस्कार (1974), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1973)
निधन27 नवंबर 2002, दिल का दौरा

शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय (Shivmangal Singh Suman Ka Jivan Parichay)

हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि और लेखक शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर गांव में हुआ था। अपनी प्रगतिशील कविताओं और गहन साहित्यिक योगदान के कारण सुमन जी ने हिंदी जगत में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया। उनके पिता का नाम ठाकुर साहब बख्श सिंह था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक थी, और शिवमंगल जी बचपन से ही प्रतिभाशाली थे, जिसके कारण उन्होंने युवावस्था में अच्छी शिक्षा हासिल की। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रिवा और ग्वालियर में प्राप्त की और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएचडी की डिग्री ली। 1950 में, उन्हें उस विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट. की उपाधि से सम्मानित किया गया।

शिवमंगल सिंह जी ने अपने कार्यकाल में शिक्षा क्षेत्र को प्राथमिकता दी, क्योंकि उस समय लोगों को शिक्षा के महत्व के प्रति जागरूक करना उनका मुख्य उद्देश्य था। उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में कार्य किया। 1968 से 1978 तक, वे विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) के कुलपति रहे। कुछ समय के लिए वे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष भी थे। 1956 से 1961 तक, वे भारतीय दूतावास (काठमांडू, नेपाल) में कार्यरत रहे। 1977 से 1978 के बीच, उन्होंने भारतीय विश्वविद्यालय संघ (नई दिल्ली) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। अपने कार्यकाल में, वे कालिदास अकादमी (उज्जैन) के अध्यक्ष भी रहे।

शिवमंगल सिंह सुमन का साहित्यिक परिचय

शिवमंगल सिंह सुमन जी हिंदी साहित्य जगत के आधुनिक युग के प्रमुख कवि और लेखक थे। वे मुख्य रूप से कवि थे और उन्होंने अपने कार्यकाल में कई रचनाओं का सृजन किया। अपनी रचनाओं में उन्होंने हिंदी भाषा का सुंदर उपयोग किया। एक प्रसिद्ध कवि होने के बावजूद, वे एक शिक्षाविद भी थे। उनकी साहित्यिक रचनाओं में उन्होंने सरल और व्यवहारिक भाषा का इस्तेमाल किया। उनकी रचनाओं की भाषा शैली ओज और प्रसाद गुणों से परिपूर्ण थी।

अपने अप्रतिम रचनाओं में उन्होंने “हिल्लोल”, “जीवन के गान”, और “युग का मेल” जैसे कई कविता संग्रह रचे। उनकी प्रमुख कविताओं में “सांसों का हिसाब”, “चलना हमारा काम है”, “मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार”, “असमंजस” आदि शामिल हैं। इसके अलावा, वे एक आलोचनाकार भी थे और “महादेवी की काव्य-साधना”, “गीति काव्य”, “उद्यम”, और “विकास” जैसी कई महत्वपूर्ण आलोचनाएं लिखीं। उन्होंने “प्रकृति पुरुष कालिदास” नामक एक नाटक भी लिखा, जो उस समय प्रसिद्ध हुआ।

उनके हिंदी साहित्य के योगदान को देखकर उन्हें अनेक सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

शिवमंगल सिंह सुमन की साहित्यिक रचनाएँ

शिवमंगल सिंह सुमन जी ने अपने कार्यकाल में अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। उनके द्वारा रचित कुछ काव्य रचनाएं, आलोचना, और नाटक के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।

कविता संग्रह

  • हिल्लोल (1939)
  • जीवन के गान (1942)
  • युग का मोल (1945)
  • विश्वास बढ़ता ही गया (1948)
  • प्रलय सृजन (1950)
  • विध्य हिमालय (1960)
  • मिट्टी की बारात (1972)
  • वाणी की व्यथा (1980)
  • कटे अँगूठों की वंदनवारें (1991)

आलोचना

  • महादेवी की काव्य-साधना
  • गीति काव्य
  • उद्यम और विकास

नाटक

  • प्रकृति पुरुष कालिदास

शिवमंगल सिंह सुमन की काव्य रचनाओं के कुछ अंश

यहां हमने शिवमंगल सिंह सुमन की कविताओं के कुछ अंश प्रस्तुत किए हैं। इन मूल्यवान कविताओं का अवश्य अध्ययन करें।

पथ भूल न जाना पथिक कहीं

कवि: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

जीवन के कुसुमित उपवन में
गुंजित मधुमय कण-कण होगा
शैशव के कुछ सपने होंगे
मदमाता-सा यौवन होगा

यौवन की उच्छृंखलता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।

फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

कवि: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

पलकों के पलने पर प्रेयसि
यदि क्षण भर तुम्हें झुला न सका

विश्रांत तुम्हारी गोदी में
अपना सुख-दुःख भुला न सका

क्यों तुममें इतना आकर्षण, क्यों कनक वलय की खनन-खनन
फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन

जेल में आती तुम्हारी याद

कवि: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

प्यार जो तुमने सिखाया
वह यहाँ पर बाँध लाया

प्रीति के बंदी नहीं करते कभी फ़रियाद
जेल में आती तुम्हारी याद।

बात पर अपनी अड़ा हूँ
सींकचे पकड़े खड़ा हूँ

सकपकाया-सा खड़ा है सामने सय्याद
जेल में आती तुम्हारी याद।

शिवमंगल सिंह सुमन के पुरस्कार और सम्मान

हिंदी साहित्य में शिवमंगल सिंह सुमन का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। उनके जीवनकाल में उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। नीचे हमने उन्हें मिले कुछ पुरस्कारों की सूची दी है।

  • साल 1958 के दौरान उनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘विश्वास बढ़ता ही गया’ के लिए उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा देव पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • साल 1964 में ‘पर आँखें नहीं भरीं’ इस काव्य संग्रह के लिए उन्हें नवीन पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • शिवमंगल सिंह सुमन जी ने हिंदी साहित्य में जो योगदान दिया, उसके लिए उन्हें 1974 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार दिया गया।
  • साल 1974 में उन्हें ‘सोवियत-भूमि नेहरू पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया।
  • सुमन जी के प्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘मिट्टी की बारात’ के लिए उन्हें 26 फरवरी 1973 को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।

शिवमंगल सिंह सुमन का निधन

हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक युग के कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी का निधन 27 नवंबर 2002 को हुआ। कहा जाता है कि दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ। आज़ादी पूर्व से लेकर आज़ादी के बाद, देश में जो परिवर्तन हुआ, वह उन्होंने अपने जीवनकाल में देखा। उन्होंने अनेक दशक हिंदी साहित्य की सेवा में लगाए। हिंदी साहित्य जगत उनका सदैव ऋणी रहेगा। आज सुमन जी शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी साहित्यिक रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के हृदय में जिंदा हैं।

FAQs

  • चल रही कुदाली किसकी रचना है?

    “चल रही कुदाली” कवि शिवमंगल सिंह सुमन की रचना है। यह कविता श्रमिकों की मेहनत और संघर्ष को दर्शाती है।

  • सुमन जी का जन्मदिन कब आता है?

    सुमन जी का जन्मदिन 5 अगस्त को आता है। उनका जन्म 1915 में हुआ था।

  • शिवमंगल सिंह सुमन की कविता कौन सी है?

    शिवमंगल सिंह सुमन की प्रसिद्ध कविताएँ हैं: “हिल्लोल,” “जीवन के गान,” “सांसों का हिसाब,” “चलना हमारा काम है,” और “मिट्टी की बारात”। ये कविताएँ उनके साहित्यिक योगदान और मानव अनुभव को दर्शाती हैं।

  • शिवमंगल सिंह जी का उपनाम क्या है?

    शिवमंगल सिंह जी का उपनाम “सुमन” है।

  • शिवमंगल सिंह सुमन के अनुसार सबसे बड़ी भूल क्या है?

    शिवमंगल सिंह सुमन के अनुसार, सबसे बड़ी भूल यह है कि मनुष्य अपने कर्तव्यों को भुलाकर स्वार्थ के लिए जीता है।

सारांश

हमें विश्वास है कि इस लेख में दिया गया शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय (Shivmangal Singh Suman Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ शेयर करना न भूलें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के विभिन्न लेख देखने को मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। धन्यवाद।

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Team Hindi Words

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