श्रीधर पाठक का जीवन परिचय – Shridhar Pathak Ka Jivan Parichay

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नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए श्रीधर पाठक का जीवन परिचय (Shridhar Pathak Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। द्विवेदी युग के प्रमुख कवियों की सूची में श्रीधर पाठक का नाम आता है। उनकी कविताएँ देशभक्ति और समाज सुधारक विषयों पर आधारित थीं। द्विवेदी युग में हिंदी साहित्य को ऊँचाई पर ले जाने में उनका प्रमुख योगदान रहा। उनके इस योगदान के कारण उन्हें हिंदी साहित्य जगत में ‘कवि भूषण’ उपाधि देकर सम्मानित किया गया।

भारतेंदु युग के निर्माता भारतेंदु हरिश्चंद्र और द्विवेदी युग के निर्माता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के कार्यकाल में श्रीधर पाठक जी का महतपूर्ण स्थान रहा था। साल 1915 के दौरान लखनऊ में हिंदी साहित्य का सम्मेलन हुआ था, और उस सम्मेलन में सभापति के रूप में श्रीधर पाठक जी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी।

उनकी रचनाएँ आज भी देश के अनेक महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। उनकी साहित्यिक रचनाओं के आधार पर देश में होने वाली स्पर्धा परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं। तो आइए, कवि भूषण श्रीधर पाठक का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान की विस्तृत जानकारी पर नज़र डालते हैं।

श्रीधर पाठक का जीवन परिचय (Shridhar Pathak Ka Jivan Parichay)

कवि भूषण श्रीधर पाठक का जन्म 11 जनवरी सन् 1858 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के जोंधरी नामक छोटे से गाँव में एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पंडित लीलाधर थे। कहा जाता है कि उनके पूर्वज मूलतः पंजाब के निवासी थे, जो 8वीं सदी के दौरान पंजाब से उत्तर प्रदेश आकर आगरा जिले में बस गए।

उनके घर में शिक्षा का अच्छा माहौल था, जिससे उनके बचपन से ही पढ़ाई में गहरी रुचि रही। स्कूल में पढ़ाई के दौरान उन्होंने हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू और फारसी जैसी भाषाओं का अध्ययन किया। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने 1875 में हिंदी प्रवेशिका और 1879 में अंग्रेजी मिडल की परीक्षा में सफलता प्राप्त की।

उस समय देश में अच्छी शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र बहुत कम थे और ऐंट्रेंस परीक्षा देने वाले भी उंगलियों पर गिने जा सकते थे। श्रीधर पाठक ने इस परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर एक महत्वपूर्ण रिकॉर्ड बनाया।

श्रीधर पाठक का कार्यक्षेत्र

साल 1880-81 के दौरान ऐंट्रेंस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद उन्हें राजकीय सेवा में नियुक्त किया गया। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने कलकत्ता कार्यालय से की, उस समय ब्रिटिश सरकार की हुकूमत भारत पर थी और ब्रिटिशों के महत्वपूर्ण कार्य कलकत्ता से संचालित होते थे। श्रीधर जी को जनगणना आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया। जनगणना के लिए उन्हें अनेक गाँवों और नगरों में जाना पड़ता था। बचपन से ही प्रकृति प्रेमी होने के कारण वे गाँवों और नगरों की प्राकृतिक सुंदरता से मोहित हो जाते थे। वे प्रकृति के सौंदर्य का दिल से आनंद लेते थे, जिससे उनके अंदर कविताएँ लिखने की प्रेरणा पनपने लगी।

बाद में उनकी नियुक्ति विभिन्न पदों पर की गई, जैसे कि रेलवे, सार्वजनिक कार्यों, और सिंचाई विभाग आदि में। अपने कार्यकाल में उन्होंने प्रामाणिक रूप से अपने काम को न्याय देने का प्रयास किया। उनके उत्कृष्ट कार्य को देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अधीक्षक पद पर नियुक्त किया। 1914 में वे सरकारी सेवाओं से निवृत्त हो गए।

श्रीधर पाठक का साहित्यिक परिचय

श्रीधर पाठक जी को हिंदी साहित्य जगत में स्वछंद भाव धारा का सच्चा प्रवर्तक माना जाता है। उनकी कविताएँ देशभक्ति, प्रकृति, समाज सुधार, और भाषा प्रेम जैसे विषयों पर आधारित थीं। भारतेंदु और द्विवेदी युग के समकालीन कवि होने के कारण उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ी बोली में अपनी कविताओं का सृजन किया। अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य को एक नया दृष्टिकोण देने का प्रयास किया। उनकी साहित्यिक रचनाओं ने आने वाले हिंदी साहित्यकारों को प्रेरित किया। कहा जाता है कि श्रीधर पाठक जी हिंदी साहित्य जगत में खड़ी बोली में कविता का सृजन करने वाले पहले कवि माने जाते हैं।

उन्होंने “वनाष्टक,” “काश्मीरसुषमा,” “भारतगीत,” और “श्रीगोपिकागीत” जैसी कई रचनाओं का सृजन किया। “मनोविनोद” उनकी पहली साहित्यिक रचना थी, जिसे उन्होंने 1882 में प्रकाशित किया था। इसके अलावा, उन्होंने अनूदित रचनाओं का भी सृजन किया, जिनमें “एकांतवासी योगी” और “उजड़ ग्राम” जैसी रचनाएँ शामिल हैं। उस समय के हिंदी साहित्य जगत के साहित्यकारों में उनका आदरयुक्त स्थान था, क्योंकि अच्छे सरकारी पद पर होने के बावजूद उनमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं था। उनका स्वभाव बचपन से ही नम्र, सरल, उदार और स्वछंद था, जिससे लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे।

श्रीधर पाठक की साहित्यिक रचनाएँ

श्रीधर पाठक जी ने अपने कार्यकाल में अनेक काव्य-संग्रह और अनूदित रचनाओं का सृजन किया। नीचे हमने इनके बारे में विस्तृत जानकारी दी है।

काव्य रचनाएँ

  • मनोविनोद (1882) – भाग 1, 2, 3
  • एकांतवासी योगी (1886)
  • जगत सचाई सार (1887)
  • धन विनय (1900)
  • गुनवंत हेमंत (1900)
  • वनाष्टक (1912)
  • देहरादून (1915)
  • गोखले गुनाष्टक (1915)
  • सांध्य अटन (1918)
  • बाल भूगोल
  • काश्मीरसुषमा (1904)
  • आराध्य शोकांजलि (1905; पिता की मृत्यु पर)
  • जार्ज वंदना (1912)
  • भक्ति विभा
  • श्री गोखले प्रशस्ति (1915)
  • श्रीगोपिकागीत
  • भारतगीत (1928)
  • तिलस्माती मुँदरी
  • विभिन्न स्फुट निबंध और पत्र आदि।

अनुदित रचनाएँ 

  • एकांतवासी योगी (1886)
  • उजड़ ग्राम (1889)
  • श्रांत पथिक (1902)

श्रीधर पाठक की साहित्यिक रचनाओं के कुछ अंश

श्रीधर पाठक जी ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण काव्य रचनाएँ कीं। उनके द्वारा रचित कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:

सुंदर भारत

भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

शुचि भाल पै हिमाचल, चरणों पै सिंधु-अंचल
उर पर विशाल-सरिता-सित-हीर-हार-चंचल
मणि-बद्धनील-नभ का विस्तीर्ण-पट अचंचल
सारा सुदृश्य-वैभव मन को लुभा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

उपवन-सघन-वनाली, सुखमा-सदन, सुख़ाली
प्रावृट के सांद्र धन की शोभा निपट निराली
कमनीय-दर्शनीया कृषि-कर्म की प्रणाली
सुर-लोक की छटा को पृथिवी पे ला रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

सुर-लोक है यहीं पर, सुख-ओक है यहीं पर
स्वाभाविकी सुजनता गत-शोक है यहीं पर
शुचिता, स्वधर्म-जीवन, बेरोक है यहीं पर
भव-मोक्ष का यहीं पर अनुभव भी आ रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत
हे न्याय-बंधु, निर्भय, निबंधनीय भारत
मम प्रेम-पाणि-पल्लव-अवलंबनीय भारत
मेरा ममत्व सारा तुझमें समा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

कवि – श्रीधर पाठक

हिंद-वंदना

जय देश हिंद, जय देशेश हिंद
जय सुखमा-सुख नि:शेष हिंद
जय धन-वैभव-गुण खान हिंद
विद्या-बल-बद्धि निधान हिंद
जय चंद्र-चंद्रिका-विमल हिंद
जय विश्व वाटिका कमल हिंद
जय सत्य हिंद, जय धर्म हिंद
जय शुभाचरण, शुभ कर्म हिंद
जय मलय-मधुर-मारुती, हिंद
जय कुवलय-कल भारती, हिंद
जय जयति स्वर्ग-सोपान, हिंद
जय नगर ग्राम अभिराम हिंद
जय जयति-जयति सुखधाम हिंद
जय सरसिज-मधुकर-निकर हिंद
जय जयति हिमालय-शिखर हिंद
जय जयति विंध्य-कंदरा हिंद
जय मलय-मेरु-मंदरा हिंद
जय चित्रकूट कैलास हिंद
जय किन्नर-यक्ष-निवास हिंद
जय शैल-सुता सुरसरी हिंद
जय यमुना गोदावरी हिंद
जय आगम-पटु-पाटवी हिंद
जय दुर्गम विटपाटवी हिंद
जय उज्ज्वल कीर्ति-विशाल हिंद
जय करूणा-सिंधु कृपाल हिंद
जय जयति सदा स्वाधीन, हिंद
जय जयति-जयति प्राचीन, हिंद

कवि – श्रीधर पाठक

भारत-धरनि

बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि
सकल-जग-सुख-श्रैनि, सुखमा-सुमति-संपति-सरनि

ज्ञान-धन, विज्ञान-धन-निधि, प्रेम-निर्झर-झरनि
त्रिजग-पावन-हृदय-भावन-भाव-जन-मन-भरनि

बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि

सेत हिमगिरि, सुपय सुरसरि, तेज-तप-मय तरनि
सरित-वन-कृषि-भरित-भुवि-छवि-सरस-कवि-मति-हरनि

बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि

न्याय-मग-निर्धार-कारिनि, द्रोह-दुर्मति-दरनि
सुभग-लच्छिनि, सुकृत-पच्छिनि, धर्म-रच्छन-करनि

बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि

कवि – श्रीधर पाठक

श्रीधर पाठक का निधन

अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक काव्य रचनाओं का सृजन किया। सेवा से निवृत्त होने के बाद उन्होंने अपना सारा समय साहित्य रचनाओं के सृजन में लगाया। 13 सितंबर 1928 को हिंदी साहित्य जगत के कवि भूषण श्रीधर पाठक जी का निधन हुआ। आज वे हमारे साथ शरीर रूप से नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाओं में वे साहित्य प्रेमियों के हृदय में जीवित हैं। उनका कार्य सराहनीय था। हिंदी साहित्य जगत हमेशा उनकी योगदान का ऋणी रहेगा।

FAQs

  • एकांतवासी योगी किसकी रचना है?

    “एकांतवासी योगी” कवि श्रीधर पाठक की रचना है।

  • श्रीधर पाठक कौन थे?

    श्रीधर पाठक एक प्रमुख हिंदी कवि और साहित्यकार थे।

  • हेमंत किसकी रचना है?

    “हेमंत” कवि श्रीधर पाठक की रचना है।

  • कवि श्रीधर पाठक जी का युग कौनसा था ?

    कवि श्रीधर पाठक जी का युग ‘आधुनिक युग’ था, जो 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के आरंभ में फैला हुआ है।

  • काश्मीरसुषमा किसकी रचना है?

    “काश्मीरसुषमा” कवि श्रीधर पाठक की रचना है।

सारांश

हमें विश्वास है कि इस लेख में दिया गया श्रीधर पाठक का जीवन परिचय (Shridhar Pathak Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ शेयर करना न भूलें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के विभिन्न लेख देखने को मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं। धन्यवाद।

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Team Hindi Words

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