Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय और उनका साहित्यिक योगदान!

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नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay) देखने जा रहे हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जो की छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक हैं। उनकी मनमोहक कविताएँ आज भी दिल को छू जाती हैं।

हिंदी साहित्य में उनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। वे केवल कवि नहीं बल्कि लेखक, उपन्यासकार, कथाकार और संपादक भी थे। वे अपने नाम की तरह अपनी रचनाओं में कुछ निराला करने का प्रयास करते थे। इतिहास के पन्नों में छिपे इस नाम को उजागर करने के लिए हमने यह लेख लिखा है। उनकी जीवनी जानने के लिए यह लेख पूरा अवश्य पढ़ें।

Contents

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay)

जानकारीविवरण
नामसूर्यकांत त्रिपाठी निराला
जन्म तिथि21 फरवरी 1896 / 21 फरवरी 1897 (विवादित)
जन्म स्थानमेदिनीपुर जिला, मजुआ गाँव, पश्चिम बंगाल
पिता का नामपंडित राम सहाय
माता का नामरुक्मिणी देवी
उपनामनिराला
पिता का पेशासिपाही
भाई का नामशिवप्रसाद
बहनों के नामशारदा, शशि

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म व परिवार

सूर्यकांत त्रिपाठी (निराला) का जन्म 21 फरवरी 1896 में बंगाल (वर्तमान में पश्चिम बंगाल) के मेदिनीपुर जिले के मजुआ नामक गांव में हुआ था। कुछ स्रोतों में उनका जन्म 21 फरवरी 1897 बताया गया है, इसलिए उनके जन्म तिथि के बारे में विवाद है। रविवार को जन्म होने के कारण उनका नाम सूर्यकांत रखा गया। “निराला” उनका उपनाम है क्योंकि अपनी कल्पनाशीलता से वे अपनी रचनाओं में कुछ निराला करते थे।

उनके पिता का नाम पंडित राम सहाय था, जो एक सिपाही के तौर पर नौकरी करते थे, और माता का नाम रुक्मिणी देवी था। सूर्यकांत जी को अपनी माता का सान्निध्य बहुत कम समय तक मिला क्योंकि जब वे तीन साल के थे, तब उनकी माता चल बसीं और उनका पालन-पोषण उनके पिता ने किया। कहा जाता है कि निराला जी को एक भाई और दो बहनें थीं। भाई का नाम शिवप्रसाद था और बहनों के नाम शारदा और शशि थे।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की शिक्षा

निराला जी की प्राथमिक शिक्षा उनके जन्मगांव मजुआ के महिषादल हाईस्कूल से हुई थी। लेकिन शिक्षा में रुचि कम होने के कारण उन्होंने बीच में ही स्कूल छोड़ दिया। कुछ समय बाद उन्होंने घर पर ही हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी की शिक्षा लेना प्रारंभ किया और उसमें महारत हासिल की।

बता दें कि उनकी औपचारिक शिक्षा बहुत कम थी, लेकिन उन्होंने घर पर रहकर स्वयं अध्ययन किया। इस अध्ययन के माध्यम से उन्होंने साहित्य, कला, इतिहास और धर्मशास्त्र के बारे में गहरा ज्ञान अर्जित किया, जिसका लाभ उन्हें अपने साहित्य और रचनाओं में हुआ। पढ़ाई के अलावा उन्हें खेलकूद पसंद था।

कुश्ती और तैराकी उनके प्रिय खेल थे। स्वयं अध्ययन करते समय उन्होंने अनेक महान विचारकों और साहित्यकारों के साहित्य भी पढ़े। खासतौर पर उन पर श्री रामकृष्ण परमहंस (स्वामी विवेकानंद के गुरु), स्वामी विवेकानंद, और रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्य और विचारों का विशेष प्रभाव था।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का वैवाहिक जीवन

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की शादी लगभग 15 साल की आयु में हुई थी। उनकी धर्मपत्नी का नाम मनोहरा देवी था, जो रायबरेली जिले के डायमंड गांव के पंडित रामदयाल जी की कन्या थीं। उनकी पत्नी ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी और संगीत में रुचि रखती थीं। विवाह के बाद, उनकी पत्नी ने निराला जी से हिंदी भाषा सीख ली और हिंदी भाषा में कविताएं लिखना शुरू कर दिया।

लेकिन निराला जी को अपनी पत्नी का साथ जीवन के कुछ ही सालों तक मिल सका, क्योंकि 20 साल की उम्र में मनोहरा देवी का देहांत हो गया। मनोहरा देवी और निराला जी को एक पुत्री थी। माँ के गुजरने के बाद, अपनी बेटी का पालन-पोषण निराला जी ने स्वयं किया।

बेटी के बड़े होने पर निराला जी ने उसकी शादी कर दी। ऐसा कहा जाता है कि विधवा होने के बाद वह बीमार पड़ गईं और उनका भी निधन हो गया। कुछ स्रोत यह बताते हैं कि उनकी बेटी का निधन प्रसूति के दौरान हुआ था। अपनी पत्नी और एकमात्र आधार, अपनी बेटी, के जाने के बाद निराला जी बेहद दुखी हो गए थे।

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जीवन में आई कठिनाइयाँ

निराला जी का जीवन काफी हद तक कठिनाइयों से भरा था। अपने प्रियजनों का साथ उन्हें बहुत ही कम समय के लिए मिला। जब वे 3 साल के थे, तब उनकी माँ का देहांत हो गया। इसके बाद, 20 वर्ष की आयु में उनकी पत्नी का निधन हो गया। महामारी के दौरान उनके चाचा, भाई, और भाई की भी मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी इकलौती बेटी की मौत भी अपनी आँखों से देखी। अपने जीवनकाल में उन्होंने कई आर्थिक कठिनाइयों का सामना भी किया। लेकिन वे अपने लक्ष्य से हटे नहीं।

अपनी आर्थिक तंगी दूर करने के लिए उन्होंने महिषादल नामक राजा के पास नौकरी भी की, लेकिन वहाँ उनका मन नहीं लगा और उन्होंने यह नौकरी बीच में ही छोड़ दी। कुछ समय तक उन्होंने रामकृष्ण मिशन की पत्रिका ‘समन्वय’ के संपादक के रूप में भी कार्य किया था।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का कार्यक्षेत्र

  • सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने साल 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य में नौकरी की।
  • उसके बाद उन्होंने संपादन और लेखक के रूप में 1922 से 1923 तक समन्वय के संपादक का कार्य किया।
  • 1923 में उन्होंने मतवाला संपादक मंडल में कार्य किया।
  • 1935 के दौरान उनकी नियुक्ति लखनऊ के गंगा पुस्तकालय में हुई।
  • 1935 से 1940 के दौरान वे लखनऊ में रहे। फिर 1942 से वे इलाहाबाद में रहने लगे।
  • अपने मृत्यु समय में वे इलाहाबाद में ही थे और अपना अंतिम समय वही बिताया।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्यिक जीवन

निराला जी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविताएँ लिखने से की। 1921 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘गीतिका’ का प्रकाशन हुआ। उसके बाद उनकी निराली कल्पनाशीलता से अनेक काव्य संग्रह, उपन्यास, कहानी संग्रह, निबंध और समीक्षाएँ लिखी गईं और प्रकाशित हुईं। निराला जी का साहित्यिक जीवनकाल लगभग 44 वर्षों का था, क्योंकि उन्होंने 1921 में अपना पहला काव्य संग्रह ‘गीतिका’ प्रकाशित किया था और वहीं से उनका साहित्यिक जीवन शुरू हुआ, जो उनकी मृत्यु के उपरांत समाप्त हुआ।

छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ भी थे। इससे उनके साहित्यिक जीवन के व्यापक दायरे का अंदाजा लगाया जा सकता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैली

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैली हिंदी साहित्य में अद्भुत मानी जाती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में विभिन्न प्रयोग किए हैं। उनकी भाषा में नवीनता और प्रयोगधर्मिता, गहन भावनाओं की अभिव्यक्ति, प्रतीकात्मकता और बिंबात्मकता, अलंकारों का कुशल प्रयोग, छंदों की विविधता और शब्दों का चयन उनकी भाषा शैली को बेहद सुंदर और मन को मोहित करने वाला बनाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के प्रमुख काव्य संग्रह

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ मुख्यतः कवि के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने चार दशकों से अधिक समय तक हिंदी साहित्य की सेवा की। अपनी निराली बुद्धिमत्ता से लिखे कुछ काव्य संग्रहों के नाम नीचे दिए गए हैं:

  • अनामिका (1923)
  • परिमल (1930)
  • गीतिका (1936)
  • तुलसीदास (1938)
  • कुकुरमुत्ता (1942)
  • सांध्य काकली (1934)
  • नए पत्ते (1945)
  • अर्चना (1950)
  • आराधना (1953)
  • गीत कुंज (1935)
  • भिक्षुक (1942)
  • अपरा (1946)
  • बेला (1946)
  • नवगीत (1950)
  • अणिमा (1951)
  • प्रभा (1952)
  • गीत सैंधव (1955)
  • संध्या काकली (1935)

यह सभी काव्य संग्रह उनकी काव्य प्रतिभा और कल्पनाशीलता को प्रदर्शित करते हैं। हिंदी साहित्य में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के उपन्यास

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने उपन्यास भी लिखे। उनके कुछ प्रमुख उपन्यासों के नाम नीचे दिए गए हैं

  1. बिल्लेसुर बकरिहा (1942)
  2. अप्सरा (1931)
  3. चोटी की पकड़ (1934)
  4. कुल्ली भाट (1939)
  5. निर्मला (1940)
  6. कुल्ली भाट (1945)
  7. भिक्षुक (1946)
  8. प्रभावती (1951)
  9. निरुपमा (1955)

इन उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, और नैतिक मुद्दों को प्रदर्शित किया। हिंदी साहित्य में उनके उपन्यासों का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के निबंध

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा न केवल कविताएँ और उपन्यास लिखे गए, बल्कि उन्होंने हिंदी साहित्य के निबंध क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कुछ निबंधों के नाम नीचे दिए गए हैं।

  1. प्रबंध पद्म
  2. रवींद्र कविता कानन
  3. चाबुक
  4. साहित्य के नए प्रतिमान

उनकी निराली सोच, समाज के प्रति देखने की दृष्टि और साहित्यिक विवेक का दर्शन उनके निबंधों के माध्यम से आप कर सकते हैं।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के कहानी संग्रह

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के प्रमुख कहानी संग्रह निम्नलिखित हैं:

  1. दुष्यंत (1936)
  2. पारिजातक (1939)
  3. भावना (1942)
  4. भूत-पुरुष (1943)
  5. भ्रष्ट-जीवन (1951)

इन कहानी संग्रहों के माध्यम से सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने समाज के प्रति अपनी चिंता को व्यक्त किया है। हिंदी साहित्य क्षेत्र में उनकी कहानियाँ श्रेष्ठ मानी जाती हैं।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कुछ प्रसिद्ध कविताएँ

गीत गाने दो मुझे

गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को।

चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रूकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।

भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बुझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

वर दे वीणावादिनी वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे!

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे!

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे!

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को मिले पुरस्कार

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को एक महान कवि के रूप में जाना जाता है। उन्होंने हिंदी साहित्य के लिए लगभग 4 दशकों तक कार्य किया। उनके इस योगदान के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। उनमें कुछ महत्वपूर्ण पुरस्कार नीचे दिए गए हैं:

  • ज्ञानपीठ पुरस्कार: इस पुरस्कार को उन्हें 1935 में प्राप्त हुआ, जिसे ज्ञानरत्न पुरस्कार भी कहा जाता है। यह उनके हिंदी साहित्य के योगदान के लिए था।
  • पद्मभूषण: यह भारत सरकार द्वारा 1952 में प्रदान किया गया, जो उनके हिंदी साहित्य के प्रति कार्य का सम्मान करता है।
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार: इसे उन्हें उनकी रचना “आत्मकी खोज” के लिए साल 1955 में प्रदान किया गया।
  • सूरदास पुरस्कार: यह पुरस्कार उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा उन्हें प्रदान किया गया।
  • निराला सम्मान: यह सम्मान बिहार सरकार द्वारा प्रदान किया गया था, इसके अलावा मध्य प्रदेश और दिल्ली के हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा भी उनका सम्मान किया गया था।
  • काव्य-भूषण पुरस्कार : उन्हें यह पुरस्कार 1949 में “रस का मधुमाख” के लिए दिया गया था।

मृत्यू

जीवन के अंतिम समय में निराला जी को कई बीमारियों ने घेर लिया था। इतने बड़े साहित्यिक होने के बावजूद भी उनका अंतिम समय आर्थिक परेशानियों में गुजर रहा था। अंतिम समय में उनके पास उनकी देखभाल करने उनके भाई और भतीजी थीं। अपने सभी प्रियजनों का साथ उनसे पहले ही छूट चुका था।

अंतिम दिन वे बहुत ही अकेलापन महसूस कर रहे थे। 15 अक्टूबर 1961 को हृदय की गति रुकी और इस महान साहित्यिक ने दुनियां को अलविदा कहा। जीवन के अंतिम क्षण में वह प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में एक छोटे से कमरे में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के नाम से दिए जाने वाले पुरस्कारों

मृत्यु के बाद भी उनके हिंदी साहित्य के प्रति योगदान और समर्पण के लिए सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के नाम कई पुरस्कार स्थापित किए गए। उनमें कुछ पुरस्कारों के नाम नीचे दिए गए हैं:

  • सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान: हर साल, इस पुरस्कार को हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उत्कृष्ट योगदान देने वाले हिंदी लेखक को दिया जाता है। इसमें 5 लाख रुपये और सम्मान पत्र शामिल होते हैं।
  • उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान सूर्यकांत त्रिपाठी निराला साहित्य सम्मान: यह पुरस्कार उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष उत्कृष्ट लेखक को दिया जाता है। इसमें 1 लाख रुपये और सम्मान पत्र शामिल होता है।
  • सूर्यकांत त्रिपाठी निराला राष्ट्रीय पुरस्कार: यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है। इसमें 5 लाख रुपये और सम्मान पत्र शामिल होते हैं।

सारांश

इस लेख में हमने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay) विस्तार से प्रस्तुत करने की कोशिश की है। आशा है कि यह लेख आपको जरूर पसंद आया होगा। इस लेख को आप अपने दोस्तों या प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें। इस लेख में अगर कोई त्रुटि है तो आप हमें मेल द्वारा बता सकते हैं, हम इसमें सुधार लाने का प्रयास करेंगे। इस तरह के अन्य लेखों को देखने के लिए आप हमसे व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। धन्यवाद।

FAQ’s

  • सूर्यकांत त्रिपाठी का उपनाम क्या है?

    सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपनाम है “निराला”।

  • निराला का विवाह कब हुआ?

    सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की शादी लगभग 15 साल की आयु में हुई थी।

  • निराला की मृत्यु कब और कहां हुई?

    सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 को हुई थी। उनका निधन प्रयागराज (इलाहाबाद), भारत में हुआ था।

  • निराला जी के गांव का क्या नाम है?

    सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के गांव का नाम मजुआ है।

  • सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला?

    सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को ज्ञानपीठ पुरस्कार 1935 में प्राप्त हुआ, जिसे ज्ञानरत्न पुरस्कार भी कहा जाता है। यह उनके हिंदी साहित्य के योगदान के लिए था।


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