मन्नू भंडारी का जीवन परिचय – Mannu Bhandari Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए Mannu Bhandari Ka Jivan Parichay प्रस्तुत कर रहे हैं। हिंदी साहित्य जगत में, आधुनिक हिंदी कथाकारों में उनका नाम अग्रणी है। उन्होंने अपने लेखन कार्य की शुरुआत कहानी से की। बाद में, उनकी कल्पनाशील बुद्धि और अप्रतिम लेखनी से उपन्यास, नाटक, पटकथा, और बाल साहित्य का सृजन हुआ। “मैं हार गई” उनका पहला कहानी संग्रह था। इस कहानी संग्रह में नायिका एक नेता की पुत्री है।
पहला कहानी संग्रह प्रकाशित होने के बाद, उन्होंने एक के बाद एक अप्रतिम रचनाएं कीं। उनकी रचनाओं का गुजराती, पंजाबी, मराठी, सिंधी, मल्यालम, और अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ। आज भी उनके द्वारा लिखित साहित्य पढ़ने वालों की संख्या देश-विदेश में बड़ी तादाद में है। उनकी जीवनी और हिंदी साहित्य में उनके योगदान के बारे में जानने के लिए, इस लेख में दिया गया मन्नू भंडारी का जीवन परिचय आपको जरूर पढ़ना चाहिए।
विवरण | जानकारी |
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नाम | मन्नू भंडारी |
वास्तविक नाम | महेंद्र कुमारी |
जन्म तिथि | 3 अप्रैल 1931 |
जन्म स्थान | भानपुरा, मंदसौर, मध्यप्रदेश |
पिता का नाम | सुख संपतराय भंडारी |
माता का नाम | अनुप कुमारी |
भाई-बहन | बड़े भाई: प्रसन्न कुमार भंडारी, बसंत कुमार भंडारी बड़ी बहन: सुशीला, दूसरी बहन: स्नेहलता |
प्रारंभिक शिक्षा | सावित्री गर्ल्स हाईस्कूल, कलकत्ता में इंटरमीडिएट तक |
बीए | अजमेर कॉलेज (छोड़ दिया), फिर कलकत्ता में पढ़ाई |
एमए | बनारस विश्वविद्यालय से हिंदी में |
शिक्षण करियर | बालीगंज शिक्षा सदन (1952-1962), रानी बिड़ला कॉलेज (1962-1964), मिरांडा कॉलेज (दिल्ली) |
विवाह | 22 नवंबर 1959, राजेंद्र यादव के साथ |
संतान | एक बेटी, नाम: रचना |
प्रमुख रचनाएँ | मैं हार गई (1957), एक इंच मुस्कान (1961), बिना दीवारों का घर (1969) |
आत्मकथा | एक कहानी यह भी (2007) |
अन्य रचनाएँ | उपन्यास, नाटक, पटकथा, बाल साहित्य |
पुरस्कार | कई साहित्यिक पुरस्कार |
मृत्यु तिथि और स्थान | 15 नवंबर 2021, गुड़गांव |
Contents
मन्नू भंडारी का जीवन परिचय
हिंदी साहित्य जगत की सुप्रसिद्ध कथाकार मन्नू भंडारी जी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा नामक गाँव में हुआ था। मन्नू का वास्तविक नाम महेंद्र कुमारी था, लेकिन घर के सभी सदस्य उन्हें मन्नू नाम से बुलाते थे। उनके पिता का नाम सुख संपतराय भंडारी था, जो एक साहित्यकार थे, जबकि उनकी माता अनुप कुमारी एक गृहिणी थीं। मन्नू भंडारी उनके माता-पिता की पाँचवीं संतान थीं। उनके पहले दो बड़े भाई और दो बड़ी बहनें थीं। बड़े भाई का नाम प्रसन्न कुमार भंडारी था, जबकि दूसरे भाई का नाम बसंत कुमार भंडारी था। बड़ी बहन का नाम सुशीला था और दूसरी बहन का नाम स्नेहलता था।
मारवाड़ी समाज से होने के बावजूद उन पर आर्य समाज के विचारों का गहरा प्रभाव था। एक लेखक होने के अलावा, वे राजनीति में भी सक्रिय थे। उस जमाने में, इंदौर में कांग्रेस के वे बड़े नेता माने जाते थे। मारवाड़ी समाज में लड़कियों की शिक्षा और आज़ादी को लेकर कुछ गलत धारणाएँ थीं।
उनका विरोध करते हुए समाज में एक संदेश देने के लिए उन्होंने मन्नू को अच्छी शिक्षा दी और राजनीति में आने के लिए भी प्रोत्साहित किया। सुख संपतराय जी साहित्यकार थे, इसलिए हिंदी साहित्य में रुचि लेने के लिए उन्होंने मन्नू को भी प्रोत्साहित किया। मन्नू भंडारी के महान साहित्यकार बनने के पीछे उनके पिता का बड़ा हाथ माना जाता है।
मन्नू भंडारी की शिक्षा और नौकरी
मन्नू को प्रारंभिक शिक्षा देने के लिए उनके पिताजी ने उन्हें ‘सावित्री गर्ल्स हाईस्कूल’ में दाखिल किया। इस स्कूल में उन्होंने अपनी इंटरमीडिएट तक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद उन्होंने बीए की पढ़ाई के लिए अजमेर के एक कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन कुछ कारणवश उन्होंने अजमेर का कॉलेज छोड़ने का निर्णय लिया और अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए मन्नू जी कलकत्ता में अपनी बड़ी बहन सुशीला के पास आ गईं।
कलकत्ता में रहकर उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्हें आगे हिंदी साहित्य में एमए की पढ़ाई करनी थी, लेकिन कलकत्ता कॉलेज में हिंदी विषय न होने के कारण उन्होंने कलकत्ता छोड़ दिया और वे बनारस आ गईं, जहाँ उन्होंने बनारस विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एमए की पढ़ाई पूरी की।
एमए की शिक्षा पूरी होने के बाद, मन्नू भंडारी ने साल 1952 में बालीगंज शिक्षा सदन (कलकत्ता) में 10 साल तक प्रध्यापिका के रूप में कार्य करना शुरू किया। इसके बाद, साल 1964 तक उन्होंने रानी बिड़ला कॉलेज (कलकत्ता) में अध्यापिका का कार्य किया। विवाह के बाद वे कलकत्ता से दिल्ली आ गईं और मिरांडा कॉलेज (दिल्ली) में प्राध्यापिका के रूप में कार्य करना आरंभ किया, जहाँ वे रिटायरमेंट तक रहीं। इसके अलावा, वे दिल्ली विश्वविद्यालय में एमए के छात्रों को पढ़ाने के लिए भी जाती थीं।
मन्नू भंडारी का वैवाहिक जीवन
22 नवंबर 1959 को मन्नू भंडारी जी का विवाह राजेंद्र यादव जी के साथ हुआ। जब मन्नू जी बालीगंज शिक्षा सदन में प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत थीं, तब राजेंद्र जी को उस स्कूल का पुस्तकालय ठीक करने का काम मिला था। इसी दौरान उन दोनों की मुलाकात हुई, और यह मुलाकात प्यार में बदल गई।
उस समय राजेंद्र जी हिंदी साहित्य के बड़े लेखक के रूप में उभर रहे थे। दोनों ने अपनी मर्जी से शादी कर ली, लेकिन मन्नू जी के पिता सुख संपतराय को यह विवाह मान्य नहीं था क्योंकि उनकी इच्छा थी कि मन्नू जी अपनी जाति के लड़के से विवाह करें। दोनों ने कलकत्ता में शादी की, और शादी की सभी रस्में मन्नू जी की बड़ी बहन सुशीला और उनके पति ने निभाईं।
शादी के बाद, मन्नू भंडारी और राजेंद्र यादव कलकत्ता से दिल्ली आ गए, जहाँ उनकी एक बेटी का जन्म हुआ, जिसे उन्होंने रचना नाम दिया। दोनों ने अपने जीवन का अधिकतर समय दिल्ली में ही व्यतीत किया।
मन्नू भंडारी का साहित्यिक परिचय
हिंदी साहित्य के प्रमुख कथाकारों की सूची में मन्नू भंडारी का नाम आता है। उन्होंने हिंदी भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू भाषा का उपयोग करके अपनी साहित्यिक रचनाएँ लिखीं। उनकी सभी रचनाओं में सहजता और सरलता देखी जा सकती है। छोटे और प्रासंगिक संवादों के कारण पाठकों को उनकी साहित्यिक रचनाएँ आसानी से समझ में आती हैं।
भाषा पर पूर्ण अधिकार होने के कारण उनकी रचनाओं का साहित्यप्रेमियों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में वर्णनात्मक शैली के अलावा संवाद शैली का भी बहुत सुंदरता से उपयोग किया।
1957 में एक मासिक पत्रिका में प्रकाशित मैं हार गई उनका पहला कहानी संग्रह था। उसके बाद, अपने पति का साथ लेकर, उन्होंने 1961 में एक इंच मुस्कान नाम से उपन्यास लिखा। 1969 में उन्होंने बिना दीवारों का घर नाम का एक नाटक लिखा।
उनकी कई रचनाएँ सामाजिक विषयों पर आधारित थीं। अपने जीवन के कार्यकाल में उन्होंने कई रचनाएँ कीं। 2007 में उन्होंने एक कहानी यह भी नाम का आत्मचरित्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल का वर्णन किया है।
मन्नू भंडारी की साहित्यिक रचनाएँ
मन्नू भंडारी जी ने अपने जीवनकाल में अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया, जिसमें उपन्यास, नाटक, पटकथा, और बाल साहित्य का समावेश था। नीचे हमने उनकी साहित्यिक रचनाओं के नाम दिए हैं।मन्नू भंडारी जी ने अपने जीवनकाल मे अनेक साहित्यिक रचनाओ का सृजन किया उसमे उपन्यास, नाटक, पटकथा, और बाल साहित्य का समावेश था। नीचे हमने उनके साहित्यिक रचनाओ के नाम दिये है।
उपन्यास
- कल्पना
- एक इंच मुस्कान (1962) (राजेंद्र यादव के साथ सह-लेखक)
- आपका बंटी (1971)
- महाभोज (1979)
लघु कथाओं का संकलन
- मैं हार गई (1957)
- एक प्लेट सैलाब (1962)
- यही सच है (1966)
- तीन निगाहों की एक तस्वीर (1959)
- त्रिशंकु (1978)
- मेरी प्रिय कहानियाँ (1973)
- प्रतिनिधि कहानियाँ (1986)
- श्रेष्ठ कहानियाँ (1979)
- सम्पूर्ण कहानियाँ (2008)
नाटक
- बिना दीवारों का घर (1966)
- महाभोज: नाटकीयता (1981)
- बिना दीवारों का घर (1965)
- प्रतिशोध तथा अन्य एकांकी (1987)
पटकथा
- कथा-पटकथा (2003)
आत्मकथा
- एक कहानी यह भी (2007)
बाल साहित्य
- आँखों देखा झूठ
- आस्माता (काल्पनिक)
- काला (काल्पनिक)
मन्नू भंडारी के पुरस्कार और सम्मान
मन्नू भंडारी जी ने हिंदी साहित्य जगत में किए गए उनके कार्य की सराहना हेतु कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनकी उपलब्धियों के बारे में नीचे दी गई जानकारी है:
- साल 1981 में नाटक महाभोज के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मानित किया गया।
- साल 1982 में भारतीय भाषा परिषद (कलकत्ता) ने उनका सम्मान किया।
- साल 1982 में कला-कुंज सम्मान देकर उनका गौरव बढ़ाया गया। यह पुरस्कार उन्हें नई दिल्ली में दिया गया।
- साल 1983 में भारतीय संस्कृत संसद कथा समारोह द्वारा उनका सम्मान किया गया।
- साल 1991 में बिहार राज्य भाषा परिषद द्वारा उनका सम्मान किया गया।
- साल 2004 में महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया।
- साल 2006 में हिंद अकादमी का ‘दिल्ली शलाका सम्मान’ पुरस्कार उन्हें मिला।
- साल 2007 में मध्य प्रदेश में हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन में ‘भवभूति अलंकरण’ नामक पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया गया।
मन्नू भंडारी का निधन
मन्नू भंडारी जी ने अपने कार्यकाल में आधुनिक हिंदी साहित्य को ऊंचाई पर ले जाने का कार्य किया। उनकी साहित्यिक रचनाओं में साहित्य प्रेमियों को गहरा भावनात्मक असर दिखाई देगा। उन्होंने लंबे समय तक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। साल 1980 तक वे अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहे। इसके बाद, मन्नू जी और उनके पति अलग हो गए। अलग होने के बाद, भंडारी गुड़गांव आ गए। जीवन के अंत तक वे गुड़गांव में ही रहे। 15 नवंबर 2021 को वयोवृद्धता और बीमारी के कारण उनका निधन हो गया।
मन्नू भंडारी जी शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी साहित्यिक रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं। हिंदी साहित्य जगत उनके योगदान के लिए हमेशा उनका ऋणी रहेगा।
FAQ’s
मन्नू भंडारी कितने बहन भाई थे?
मन्नू भंडारी पांचवी संतान थीं। उनके दो बड़े भाई और दो बड़ी बहनें थीं। उनके बड़े भाई का नाम प्रसन्न कुमार भंडारी और दूसरे भाई का नाम बसंत कुमार भंडारी था। बड़ी बहन का नाम स्नेहलता था।
मन्नू भंडारी की आत्मकथा क्या है?
मन्नू भंडारी की आत्मकथा “एक कहानी यह भी” है, जो साल 2007 में प्रकाशित हुई। इस आत्मकथा में उन्होंने अपने जीवन की यात्रा और अनुभवों का वर्णन किया है।
मन्नू भंडारी का असली नाम क्या है?
मन्नू भंडारी का असली नाम महेंद्र कुमारी था। उनके परिवार के लोग उन्हें मन्नू नाम से पुकारते थे, और यह नाम उन्होंने अपने जीवन के अंत तक रखा।
मन्नू भंडारी की भाषा शैली कौन सी है?
मन्नू भंडारी की भाषा शैली सहज और सरल है। उनकी रचनाओं में वर्णनात्मक और संवादात्मक शैली का सुंदर उपयोग होता है।
मैं हार गई के लेखक कौन है?
“मैं हार गई” के लेखक मन्नू भंडारी हैं। यह उनकी पहली कहानी संग्रह है, जो 1957 में प्रकाशित हुआ था।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में दिया गया Mannu Bhandari Ka Jivan Parichay आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के विभिन्न लेख देखने को मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। धन्यवाद।