रघुवीर सहाय का जीवन परिचय – Raghuvir Sahay Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए रघुवीर सहाय का जीवन परिचय (Raghuvir Sahay Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। हिन्दी साहित्य जगत में आधुनिक युग के प्रमुख कवियों में रघुवीर सहाय का नाम आता है। हिन्दी साहित्यकार होने के बावजूद उनका पत्रकारिता में भी विशेष योगदान रहा। रघुवीर सहाय मुख्य रूप से कवि थे, लेकिन कविताओं के अलावा उन्होंने कहानी, निबंध और अन्य साहित्यिक रचनाओं का भी सृजन किया। उनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया।
अपने कार्यकाल में हिन्दी साहित्य को एक नया आयाम देने में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। आज भी उनके द्वारा रचित रचनाओं का पाठ देश के कई महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। इसके अलावा, UGC/NET की परीक्षा हिन्दी विषय में देने वाले छात्रों को सहाय जी की साहित्यिक रचनाओं के आधार पर प्रश्न पूछे जाते हैं। उनके द्वारा सृजन की गई साहित्यिक रचनाओं पर कई छात्र पीएचडी कर चुके हैं। तो आइए, रघुवीर सहाय का जीवन परिचय और हिन्दी साहित्य में उनके योगदान पर एक नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
---|---|
जन्म | 9 दिसंबर 1929, लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
पिता | हरदेवर सहाय (शिक्षक) |
माता | श्रीमती तारादेवी सहाय (गृहिणी) |
शिक्षा | लखनऊ विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी में परास्नातक |
प्रमुख काव्य संग्रह | ‘लोग भूल गए हैं’ (1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार) |
प्रमुख रचनाएँ | “सीढ़ियों पर धूप में”, “आत्महत्या के विरुद्ध”, “दिल्ली मेरा परदेस” |
विवाह | श्रीमती विमलेश्वरी सहाय |
बच्चे | तीन बेटियाँ: मंजरी, हेमा, गोरी; एक बेटा: बसंत |
महत्वपूर्ण पुरस्कार | हंगेरियन ऑर्डर ऑफ सेंट स्टीफन, राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान, आचार्य नरेन्द्र देव सम्मान |
मृत्यु | 30 दिसंबर 1990 |
साहित्यिक योगदान | कविता, कहानी, निबंध, अनुवाद और पत्रकारिता में महत्वपूर्ण योगदान |
Contents
रघुवीर सहाय का जीवन परिचय
हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक, रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर 1929 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मॉडल हाउस मुहल्ले में हुआ था। उनके पिता, हरदेवर सहाय, पेशे से एक साहित्य के अध्यापक थे, जबकि उनकी माता, श्रीमती तारादेवी सहाय, एक गृहिणी थीं। रघुवीर को अपनी माँ का प्यार बहुत कम मिला, क्योंकि जब वे सिर्फ दो साल के थे, तब उनकी माँ का देहांत हो गया। उनके पिता ने अपनी मेहनत और लगन से रघुवीर का पालन-पोषण किया और उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई।
रघुवीर सहाय ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की और इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से परास्नातक अँग्रेज़ी साहित्य में किया। साहित्य के प्रति उनके गहरे लगाव ने उन्हें ‘नई कविता’ आंदोलन का एक प्रमुख कवि बना दिया।
साल 1955 में रघुवीर सहाय ने श्रीमती विमलेश्वरी सहाय से विवाह किया। उनके चार बच्चे हैं: तीन बेटियाँ – मंजरी, हेमा और गोरी, और एक बेटा – बसंत। रघुवीर सहाय की रचनाएँ साहित्य जगत में उनके महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाती हैं, और उनकी कविताएँ आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।
रघुवीर सहाय की शिक्षा
रघुवीर सहाय की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में हुई। पिता अध्यापक होने के कारण पारिवारिक माहौल शिक्षा के अनुकूल था। इसके अलावा, उनके पिता ने रघुवीर जी पर विशेष ध्यान देकर उन्हें पढ़ाया। साल 1944 में वे मैट्रिक की परीक्षा पास हो गए। इसके बाद उन्होंने इंटरमीडिएट के लिए प्रवेश लिया और साल 1946 में इंटरमीडिएट की परीक्षा सफलता पूर्वक पास कर ली। इसी दौरान उनकी साहित्यिक रचनाओं का शुभारंभ हुआ।
इंटरमीडिएट की पढ़ाई करते समय उन्होंने काव्य रचनाओं का सृजन करना शुरू किया, और इंटरमीडिएट के अगले वर्ष उनकी पहली कविता “आदिम संगीत” साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। अपनी पढ़ाई पूरी करते समय उन्होंने हिन्दी साहित्य का सृजन जारी रखा और साल 1948-49 के दौरान अपनी बी.ए. की पढ़ाई पूरी की। स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने नौकरी करने का निर्णय लिया, लेकिन सीखने और कविता लिखने की चाह उनके मन में बनी रही।
नौकरी करते समय उन्होंने एम.ए. की पढ़ाई करने का फैसला किया। नौकरी, साहित्यिक रचना का सृजन, और पढ़ाई करते हुए साल 1951 में अंग्रेजी विषय में एम.ए. की पढ़ाई सफलता पूर्वक पूरी की। अंग्रेजी विषय में शिक्षा लेने के बावजूद, उन्होंने हिन्दी भाषा को अग्रणी मानकर अपने साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से उसे बढ़ावा देने के प्रयास किए।
रघुवीर सहाय का कार्यक्षेत्र
साल 1949 में अपनी बी.ए. की पढ़ाई पूरी करने के बाद, रघुवीर सहाय ने ‘नवजीवन’ नामक दैनिक अखबार से अपने करियर की शुरुआत की। नवजीवन में कुछ समय काम करने के बाद उन्होंने ‘प्रतीक’ पत्रिका में भी कार्य किया। कुछ कारणों से 1952 में प्रतीक पत्रिका बंद हो गई, और उस समय उनके पास कोई नौकरी नहीं थी। इसके बावजूद, उन्होंने साहित्यिक रचनाओं का सृजन जारी रखा।
एक साल के बाद, 1953 में, सहाय जी ने आकाशवाणी के समाचार विभाग में उप-संपादक का पदभार संभाला। आकाशवाणी में चार साल काम करने के बाद उन्होंने उप-संपादक की नौकरी छोड़ दी और फिर से स्वतंत्र लेखन कार्य शुरू किया। इसी दौरान उनका संपर्क ‘अज्ञेय’ जी से हुआ। ‘अज्ञेय’ जी ने रघुवीर जी को अपने अंग्रेजी साहित्यिक पत्रिका ‘वाक्’ का सहायक संपादक बनाया, लेकिन वहां भी उन्होंने कम समय तक काम किया। इसके बाद उन्होंने आकाशवाणी में तीन साल तक कार्य किया।
रघुवीर सहाय जी ने दूरदर्शन में भी अपने कार्य की छाप छोड़ी। अंत में, उन्होंने दैनिक ‘नवभारत टाइम्स’ में विशेष संवाददाता और दिनमान में समाचार संपादक के रूप में कार्य किया। इस तरह उनका कार्यक्षेत्र बहुत ही विस्तृत रहा।
रघुवीर सहाय का साहित्यिक परिचय
रघुवीर सहाय जी ने विद्यार्थी अवस्था में साहित्यिक रचनाओं का सृजन करना शुरू किया था। गद्य और पद्य दोनों विधाओं में उन्होंने साहित्य की रचना की। वे दूसरे तार सप्तक के कवियों की सूची में शामिल हैं। “सीढ़ियों पर धूप में,” “आत्महत्या के विरुद्ध,” “हँसो, हँसो जल्दी हँसो” जैसे उनके कुछ प्रमुख काव्य संग्रह हैं।
सहाय जी ने लेखन क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ी। “सीढ़ियों पर धूप में,” “रास्ता इधर से है,” “जो आदमी हम बना रहे हैं” जैसे कहानी संग्रह उन्होंने रचे। इसके अलावा, “दिल्ली मेरा परदेस,” “लिखने का कारण,” “ऊबे हुए सुखी” जैसे कई निबंध संग्रह और अनुवाद का भी सृजन किया।
रघुवीर सहाय की साहित्यिक विशेषताएँ
समकालीन प्रमुख कवियों की सूची में रघुवीर सहाय जी का नाम लिया जाता है। उनके लगभग सभी काव्य संग्रह में भारत की आज़ादी के बाद का चित्रण दिखाई देता है। रघुवीर सहाय की रचनाएँ अक्सर सामाजिक, राजनीतिक, और मनोवैज्ञानिक विषयों पर आधारित होती हैं। उनकी अधिकांश साहित्यिक रचनाएँ समता के विषय पर केंद्रित हैं।
उनकी सभी रचनाओं में आपको कोई न कोई सामाजिक संदेश देखने को मिलेगा। समाज में जाति भेद समाप्त होना चाहिए, लोगों पर होने वाला अन्याय खत्म होना चाहिए, गुलामी जड़ से मिटानी चाहिए, और जाति-धर्म के आधार पर दंगे करने वाला समाज एक होना चाहिए। द्वेष और मत्सर के कारण होने वाली हत्याएँ और गरीबी के कारण होने वाली आत्महत्या रुकनी चाहिए। शोषित और पीड़ित लोगों को न्याय मिलना चाहिए, और पिछड़े समाज का विकास होना चाहिए—यह उनके विचार थे।
उन्होंने इन विचारों को अपनी साहित्यिक रचनाओं में बेहद सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। उस समय की राजनीति और भ्रष्ट नेताओं को भी उन्होंने खुलकर आलोचना की है।
रघुवीर सहाय की साहित्यिक रचनाएँ
रघुवीर सहाय ने अपने कार्यकाल में विभिन्न साहित्यिक विधाओं में योगदान दिया, जिनमें काव्य, कहानी, निबंध, और अन्य रचनाएँ शामिल हैं। उनके द्वारा रचित रचनाओं के बारे में जानकारी निम्नलिखित है:
काव्य संग्रह
- सीढ़ियों पर धूप में
- रास्ता इधर से है
- जो आदमी हम बना रहे हैं
- लहरें और तरंग
- हँसो, हँसो जल्दी हँसो
कहानियाँ
- सीढ़ियों पर धूप में
- रास्ता इधर से है
- जो आदमी हम बना रहे हैं
निबंध संग्रह
- दिल्ली मेरा परदेस
- लिखने का कारण
- ऊबे हुए सुखी
- वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे
- भँवर
- यथार्थ का अर्थ
- अर्थात्
रघुवीर सहाय के पुरस्कार और सम्मान
रघुवीर सहाय जी ने हिन्दी साहित्य में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। नीचे उनके द्वारा प्राप्त कुछ प्रमुख पुरस्कारों के बारे में जानकारी दी गई है:
- रघुवीर सहाय जी को प्रसिद्ध काव्य संग्रह “लोग भूल गए हैं” के लिए साल 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- उनकी मृत्यु के पश्चात, उन्हें हंगेरियन ऑर्डर ऑफ सेंट स्टीफन, जो हंगरी का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार है, से सम्मानित किया गया।
- उनके साहित्यिक योगदान को देखते हुए, बिहार सरकार द्वारा उन्हें राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान देकर गौरवित किया गया।
- इसके अलावा, आचार्य नरेंद्र देव जी की स्मृति में दिया जाने वाला आचार्य नरेन्द्र देव सम्मान पुरस्कार भी उन्हें प्राप्त हुआ।
रघुवीर सहाय का निधन
हिन्दी साहित्य को आधुनिक युग में नई दिशा देने वाले और अपने साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से समाज में सुधार लाने का प्रयास करने वाले दूसरे तार सप्तक के प्रमुख कवि रघुवीर सहाय जी का निधन 30 दिसंबर 1990 को हुआ। शरीर मरता है, लेकिन जो जीवन मिला है, उसमें ऐसा कार्य करो कि नाम सदा के लिए अमर हो जाए।
रघुवीर सहाय जी ने अपना नाम सदा के लिए अमर किया। आज भले ही वह इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी साहित्यिक रचनाओं में वे आज भी जिंदा हैं। उनके इस योगदान के लिए हिन्दी साहित्य जगत हमेशा ऋणी रहेगा।
FAQs
रघुवीर सहाय की पत्नी का क्या नाम था?
रघुवीर सहाय की पत्नी का नाम विमलेश्वरी सहाय था।
रघुवीर सहाय की भाषा शैली क्या है?
रघुवीर सहाय की भाषा शैली सरल और स्पष्ट है। वे मानवीय भावनाओं और सामाजिक मुद्दों को गहराई से व्यक्त करते हैं। उनकी रचनाएँ आधुनिकता से भरी हैं और विचारों की गहराई को दर्शाती हैं।
रघुवीर सहाय के पिता कौन थे?
रघुवीर सहाय के पिता का नाम हरदेवर सहाय था। वे पेशे से एक अध्यापक थे।
रघुवीर सहाय को साहित्य अकादमी पुरस्कार कब मिला था?
रघुवीर सहाय को साहित्य अकादमी पुरस्कार 1984 में मिला था। यह पुरस्कार उनके काव्य संग्रह “लोग भूल गए हैं” के लिए दिया गया था।
हंसो हंसो जल्दी हंसो यह किसका काव्य संग्रह है ?
“हँसो, हँसो जल्दी हँसो” रघुवीर सहाय का काव्य संग्रह है।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत रघुवीर सहाय का जीवन परिचय (Raghuvir Sahay Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी रघुवीर सहाय जी के जीवनी और हिन्दी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।
आप हमारी वेबसाइट पर ऐसे कई रोचक लेख देख सकते हैं। अगर आप हमारे ग्रुप में शामिल होना चाहते हैं और नवीनतम अपडेट्स और जानकारी पाना चाहते हैं, तो कृपया हमारे व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़ें। हमें खुशी होगी कि आप हमारे साथ जुड़े रहें। धन्यवाद!