हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय – Harivansh Rai Bachchan Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय (Harivansh Rai Bachchan Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। “वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े, एक पत्र छांव भी, मांग मत, मांग मत, मांग मत, अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।” यह कविता आपने हिंदी फिल्म “अग्निपथ” में जरूर सुनी होगी। इस कविता के लेखक हरिवंश राय बच्चन हैं। हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक युग के प्रमुख साहित्यकारों की सूची में उनका नाम अग्रणी है।
हिंदी के प्रमुख कवि और लेखक के रूप में उन्हें पहचाना जाता है। उन्होंने “तेरा हार,” “मधुशाला,” “मधुबाला” जैसे कई काव्य संग्रहों की रचना की। उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म भूषण, देकर सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उनके द्वारा रचित काव्य संग्रहों की एक लंबी सूची बनाई जा सकती है। तो आइए, हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके योगदान पर एक नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
---|---|
नाम | हरिवंश राय बच्चन |
जन्म तिथि | 27 नवंबर 1907 |
जन्म स्थान | प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, बाबू पट्टी गाँव |
माता-पिता | पिता: प्रताप नारायण श्रीवास्तव, माता: सरस्वती देवी |
उपनाम | बच्चन |
प्रारंभिक शिक्षा | कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद (प्रयागराज) |
उच्च शिक्षा | बी.ए. और एम.ए. अंग्रेजी – इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पी.एच.डी. – कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
विवाह | पहला विवाह: श्यामा बच्चन (1926-1936), दूसरा विवाह: तेजी सूरी (1941) |
संतान | पुत्र: अमिताभ बच्चन, अजिताभ बच्चन |
कार्य अनुभव | ऑल इंडिया रेडियो, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी प्राध्यापक, विदेश मंत्रालय |
प्रमुख रचनाएँ | “तेरा हार,” “मधुशाला,” “क्या भूलूं, क्या याद करूं,” “दो चट्टानें” |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1968), सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1968), सरस्वती सम्मान पुरस्कार (1991), पद्म भूषण (1976) |
मृत्यु तिथि | 18 जनवरी 2003 |
मृत्यु स्थान | मुंबई |
आयु | 95 वर्ष |
साहित्यिक योगदान | हिंदी साहित्य में सात से आठ दशक का योगदान |
Contents
हरिवंश राय बच्चन का प्रारंभिक जीवन
प्रसिद्ध हिंदी कवि हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के बाबू पट्टी गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव और माता का नाम सरस्वती देवी था। लोग उन्हें प्यार से ‘बच्चन’ बुलाते थे, जो बाद में उनका उपनाम बन गया।
उनका सरनेम “बच्चन” कैसे हुआ? इसके पीछे भी एक इतिहास है। परिवार के सभी लोग उन्हें प्यार से “बच्चा” कहकर बुलाते थे, और फिर समय के साथ लोग भी उन्हें “बच्चन” नाम से जानने लगे। कहा जाता है कि उनके पूर्वज अमोढ़ा से थे, जो उत्तर प्रदेश के हरैया तहसील में स्थित एक गाँव है। यह गाँव कायस्थों के लिए जाना जाता था। कुछ समय बाद, काम की तलाश में उनमें से कुछ कायस्थ बाहर रहने के लिए चले गए। हरिवंश राय जी का परिवार भी वहाँ से आकर बाबू पट्टी गाँव में बस गया था।
हरिवंश राय बच्चन की शिक्षा
हरिवंश राय बच्चन जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद (प्रयागराज) के कायस्थ पाठशाला से पूरी की। प्रारंभिक शिक्षा लेते समय उन्होंने कुछ समय उर्दू में पढ़ाई की, इसके बाद हिंदी में शिक्षा लेना शुरू किया। आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया।
यहाँ पर उन्होंने अपना बी.ए. पूरा किया। बी.ए. की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी विषय लेकर एम.ए. के लिए प्रवेश लिया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए. की डिग्री सफलतापूर्वक प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने पी.एच.डी. करने का फैसला किया। पी.एच.डी. करने के लिए हरिवंश राय जी इंग्लैंड गए और वहाँ के केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर कवि डब्लू.बी. यीट्स की कविताओं के आधार पर पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की।
हरिवंश राय बच्चन का वैवाहिक जीवन
हरिवंश राय जी के दो विवाह हुए थे। उनका पहला विवाह 1926 में श्यामा बच्चन जी के साथ हुआ। विवाह के समय दोनों की उम्र बहुत कम थी—हरिवंश राय जी की आयु 19 साल थी और श्यामा जी की 14 साल। लेकिन अपनी पत्नी का साथ उन्हें कुछ ही समय मिला। श्यामा जी को टी.बी. की बीमारी ने जकड़ लिया, और इस बीमारी से लड़ते हुए 1936 में उन्होंने अपनी जीवन की अंतिम सांस ली। पत्नी के चले जाने का दुख हरिवंश राय जी को बहुत हुआ।
कुछ समय ऐसा ही बीता, और पाँच साल बाद उन्होंने 1941 में तेजी सूरी नामक एक लड़की से विवाह किया। उनके दो पुत्र हुए, एक का नाम अमिताभ और दूसरे का नाम अजिताभ है। सुपरस्टार अमिताभ बच्चन का नाम तो आप सभी जानते ही होंगे, और दूसरे पुत्र अजिताभ एक व्यवसायी के रूप में कार्य कर रहे हैं।
हरिवंश राय बच्चन का कार्यक्षेत्र
इंग्लैंड से अपनी पढ़ाई पूरी करके भारत आने के बाद उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में कार्य करना शुरू किया। यहाँ पर उन्होंने कुछ समय तक काम किया और फिर यह नौकरी छोड़ दी। इसके बाद, उन्हें उसी विद्यालय में नौकरी मिली, जहाँ उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की थी—इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक के रूप में।
इसके साथ-साथ, उन्होंने हिंदी विषय को बढ़ावा देने का भी कार्य किया। अंग्रेजी विषय में उत्कृष्ट होने के कारण उन्हें विदेश मंत्रालय में भी काम करने का मौका मिला। यहाँ पर उन्होंने 10 साल तक सेवा दी। अपने कार्य के साथ-साथ उन्होंने साहित्यिक रचनाएं लिखने का कार्य किया और जीवन के अंतिम समय तक यह काम जारी रखा।
हरिवंश राय बच्चन का साहित्यिक परिचय
हरिवंश राय जी ने साहित्यिक रचनाओं का सृजन करने का कार्य महाविद्यालयीन शिक्षा लेते समय शुरू कर दिया था। हिंदी साहित्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साहित्यकारों की सूची में उनका नाम आता है। अंग्रेजी विषय में उत्तम होने के बावजूद, उन्होंने हिंदी भाषा को प्राथमिकता देकर हिंदी साहित्य क्षेत्र में काम करने का निर्णय लिया। वे चाहते तो देश-विदेश में जाकर अच्छी नौकरी या व्यवसाय में सफल हो सकते थे, लेकिन अपनी भाषा को सम्मान देकर दुनिया में उसका झंडा लहराने का कार्य उनके हाथों हुआ।
अपने साहित्यिक रचनाओं की शुरुआत उन्होंने काव्य से की। साल 1929 में प्रकाशित हुआ “तेरा हार” उनका पहला कविता संग्रह था। लेकिन उन्हें प्रसिद्धि मिली साल 1935 में प्रकाशित “मधुशाला” कविता संग्रह से। उसके बाद, उनके कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए और प्रसिद्ध भी हुए। इसके अलावा, “क्या भूलूं, क्या याद करूं”, “बच्चन के साथ क्षण भर”, “खय्याम की मधुशाला” जैसे कई नाटक, जीवनी और आलोचनात्मक लेखन का कार्य उन्होंने किया।
बच्चन जी व्यक्तिवादी कवि थे। उनकी साहित्यिक रचनाओं में उन्होंने अपने जीवन और जीवन के बाहर के अनेक विषयों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया। अलग-अलग विषयों पर उन्होंने रचनाएँ कीं।
हरिवंश राय बच्चन की साहित्यिक रचनाएँ
अपने कार्यकाल में हरिवंश राय जी ने अनेक काव्य संग्रहों का सृजन किया। नीचे हमने उनके द्वारा रचित रचनाओं के बारे में जानकारी दी है।
कविता संग्रह
- तेरा हार (1929)
- मधुशाला (1935)
- मधुबाला (1936)
- मधुकलश (1937)
- आत्म परिचय (1937)
- निशा निमंत्रण (1938)
- एकांत संगीत (1939)
- आकुल अंतर (1943)
- सतरंगिनी (1945)
- हलाहल (1946)
- बंगाल का काल (1946)
- खादी के फूल (1948)
- सूत की माला (1948)
- मिलन यामिनी (1950)
- प्रणय पत्रिका (1955)
- धार के इधर-उधर (1957)
- आरती और अंगारे (1958)
- बुद्ध और नाचघर (1958)
- त्रिभंगिमा (1961)
- चार खेमे, चौंसठ खूंटे (1962)
- दो चट्टानें (1965)
- बहुत दिन बीते (1967)
- कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968)
- उभरते प्रतिमानों के रूप (1969)
- जाल समेटा (1973)
- नई से नई, पुरानी से पुरानी (1985)
आत्मकथा
- क्या भूलूं, क्या याद करूं
- नीड़ का निर्माण फिर-फिर
- बसेरे से दूर
- दशद्वारा से सोपाना तक
विभिन्न कृतिया
- बच्चन के साथ क्षण भर (1934)
- खय्याम की मधुशाला (1938)
- सोपान (1953)
- मैकबेथ (1957)
- जनगीता (1958)
- ओथेलो (1959)
- उमर खय्याम की रुबाइयाँ (1959)
- कवियों में सौम्य संत: पंत (1960)
- आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि: सुमित्रानंदन पंत (1960)
- आधुनिक कवि (1961)
- नेहरू: राजनैतिक जीवनचरित (1961)
- नये पुराने झरोखे (1962)
- अभिनव सोपान (1964)
- चौंसठ रूसी कविताएँ (1964)
- नागर गीता (1966)
- बच्चन के लोकप्रिय गीत (1967)
- डब्लू बी यीट्स एंड अकल्टिज़म (1968)
- मरकत द्वीप का स्वर (1968)
- हैमलेट (1969)
- भाषा अपनी, भाव पराये (1970)
- पंत के सौ पत्र (1970)
- प्रवास की डायरी (1971)
- किंग लियर (1972)
- टूटी छूटी कड़ियाँ (1973)
हरिवंश राय बच्चन की रचनाओं के अंश
अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
लेखक: हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन के पुरस्कार और सम्मान
हरिवंश राय जी का हिंदी साहित्य में जो योगदान रहा, उसके लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। नीचे हमने उन्हें प्राप्त कुछ पुरस्कारों के बारे में जानकारी दी है।
- उनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह “दो चट्टानें” के लिए उन्हें साल 1968 में साहित्य जगत का प्रमुख पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, देकर गौरव किया गया।
- साल 1968 में ही उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
- के के बिड़ला फाउंडेशन की तरफ से उनकी कविताओं के लिए साल 1991 में उन्हें सरस्वती सम्मान पुरस्कार दिया गया।
- साल 1976 में उन्हें भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण, देकर हरिवंश राय जी का सम्मान किया गया।
हरिवंश राय बच्चन की मृत्यु
हरिवंश राय जी ने हिंदी साहित्य में सात से आठ दशक तक काम करने के बाद 18 जनवरी 2003 को इस दुनिया को अलविदा कहा। अपने जीवन के अंतिम समय में वे मुंबई में थे, और यहीं पर उन्होंने अंतिम सांस ली। मृत्यु के समय उनकी आयु 95 साल थी। कुछ समय से सांस लेने में दिक्कत आने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन वृद्धावस्था में शरीर ने साथ न देने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
हरिवंश राय जी आज शरीर रूप से हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाओं में वे आज भी साहित्य प्रेमियों के लिए जीवित हैं। उनके इस योगदान के लिए हिंदी साहित्य जगत हमेशा उनका ऋणी रहेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
हरिवंश राय बच्चन की कितनी शादियाँ हुई थीं?
हरिवंश राय बच्चन की दो शादियाँ हुई थीं। उनकी पहली शादी 1926 में श्यामा बच्चन के साथ हुई, शादी के कुछ साल बाद श्यामा जी का मृत्यु हो गया। इसके बाद, 1941 में उन्होंने तेजी सूरी से दूसरी शादी की।
हरिवंशराय बच्चन की प्रमुख रचना कौन सी थी?
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचना “मधुशाला” मानी जाती है, जो 1935 में प्रकाशित हुई थी।
अमिताभ बच्चन के असली पिता कौन है?
अमिताभ बच्चन के असली पिता हरिवंश राय बच्चन हैं, जो प्रसिद्ध हिंदी कवि और साहित्यकार थे।
बच्चन के साथ क्षण भर किसकी रचना है?
“बच्चन के साथ क्षण भर” हरिवंश राय बच्चन की रचना है। यह उनकी आत्मकथा है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और यादों को साझा किया है।
हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा का क्या नाम है?
हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा का नाम “क्या भूलूं, क्या याद करूं” है।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय (Harivansh Rai Bachchan Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें, ताकि वे भी हरिवंश राय बच्चन जी की जीवनी और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।
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