Bihari Lal Ka Jivan Parichay । बिहारीलाल का जीवन परिचय

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नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम रीतिकाल के प्रसिद्ध हिंदी कवि बिहारीलाल का जीवन परिचय (Bihari Lal Ka Jivan Parichay) देखने जा रहें है। वे हिंदी साहित्य जगत में बिहारी के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनकी स्व-रचित सतसई रचना ने उन्हें ख्याति के प्रकाश में ला दिया। उनकी रचनाओं में आपको भाषा का सही उपयोग, मानवीय भावनाओं का गहरा वर्णन और जिस विषय पर रचना है उसका जीवंत चित्रण दिखाई देगा।

हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ कवियों की सूची में उनका भी नाम आता है। बिहारीलाल का जीवन परिचय आपको जरूर जानना चाहिये क्योंकि उन्होंने हिंदी साहित्य को अमूल्य योगदान दिया है और उनकी रचनाएँ आज भी हमारे समाज के लिए प्रेरणादायक हैं।

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जन्ममध्यप्रदेश, ग्वालियर, 16वीं शताब्दी के अंत में, 1595 के दौरान
पिताकेशवराय
शिक्षाओरछा में आचार्य केशवदास के सानिध्य में शिक्षा प्राप्त की
पत्नीमथुरा में ब्राह्मण परिवार की कन्या से विवाह
आश्रयदातामुगल सम्राट जहांगीर, शाहजहां, और जयसिंह (जयपुर के राजा)
मृत्युलगभग 1663 के आसपास, मुगल दरबार में
प्रमुख रचनाएँसतसई, बरसी सतसई, चाँद-सूरज की बधाई, रस-सिद्धांत, भक्ति-भावना, अन्य
भाषाब्रजभाषा
प्रसिद्ध दोहे“रहिमन धागा प्रेम का…”, “स्वांग के समय नहीं अँगुरी के संग…” आदि

बिहारीलाल का जीवन परिचय – Bihari Lal Ka Jivan Parichay

बिहारीलाल का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर में 16वीं शताब्दी के अंत में, वर्ष 1595 ईसवी सन् के दौरान हुआ। उनका पूरा नाम बिहारीलाल चौबे था। उनके पिता का नाम केशवराय था। जब बिहारीलाल कम उम्र के थे, तब उनके पिता ओरछा चले गए और बिहारीलाल भी उनके साथ वहाँ रहने लगे। ओरछा में, आचार्य केशवदास के सानिध्य में उन्होंने अपनी शिक्षा प्राप्त की। यह भी कहा जाता है कि ओरछा में ही उनकी मुलाकात प्रसिद्ध कवि रहीम से हुई थी, जिससे उनकी पहचान और गहरी हुई।

मथुरा में एक ब्राह्मण परिवार की कन्या से बिहारी का विवाह हो गया। शादी के बाद कुछ समय तक उनका बसेरा मथुरा में ही था, लेकिन उनका जीवन का अधिक समय बुंदेलखंड और जयपुर में बीता।

बता दे कि, उनके माता-पिता के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है क्योंकि उस समय तंत्रज्ञान उतना विकसित नहीं था। लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें अच्छी शिक्षा देकर एक प्रसिद्ध कवि बनाया।

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आश्रयदाताओं के सानिध्य में आ गए

बिहारी उस समय आश्रयदाताओं के सानिध्य में रहते थे। आश्रयदाता मतलब उस समय के राजा, जो अपनी दरबार में गायन और कविता सुनने के लिए कवि, गायक अथवा अन्य कलाकारों को आश्रय देते थे। बिहारी अपने जीवनकाल में कुछ समय तक मुगल सम्राट जहांगीर के आश्रय में रहे, उसके बाद मुगल सम्राट शाहजहां ने उन्हें अपने आश्रय में ले लिया। शाहजहां बादशाह ने 1621 में आगरा छोड़ा, उसके बाद मुगलिया दरबार से बिहारी का संबंध भी कम हो गया।

मुगल दरबार छोड़ने के बाद बीच के समय में वे कहां रहते थे और क्या करते थे, इसके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। परंतु 1635 के दौरान बिहारी जी को जयपुर के राजा जयसिंह ने अपने राज्य में आश्रय दिया। उस समय वे राजा जयसिंह के दरबार में अपनी कला प्रस्तुत करते थे। बता दें कि रीति काव्य का ज्यादातर विकास राजाओं के आश्रय में ही हुआ था।

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बिहारीलाल की प्रसिद्ध रचनाएँ

रीतिकाल के शिरोमणि और हिंदी साहित्य की दुनिया के प्रसिद्ध कवि बिहारीलाल, जिन्हें हम बिहारी नाम से जानते हैं। उनकी रचनाओं में आपको प्रत्येक भाव का जीवंत वर्णन दिखाई देगा। उनकी कविताएँ पढ़ते समय ऐसा लगता है मानो यह हमारे सामने ही घटित हो रहा है। इनकी कुछ प्रमुख रचनाओं के नाम हमने नीचे दिए हैं।

  • सतसई: यह उनकी प्रमुख रचना है और इस रचना के कारण ही उन्हें हिंदी साहित्य जगत में प्रसिद्धि मिली। सतसई में आपको उनकी 700 से अधिक रचनाएँ देखने को मिलेंगी।
  • बरसी सतसई: इसमें उन्होंने मानसून ऋतु और प्रकृति का बेहद सुंदर वर्णन किया है।
  • चाँद-सूरज की बधाई: इसमें ग्रहों और सूरज पर आधारित रचनाएँ शामिल हैं।
  • रस-सिद्धांत: श्रृंगार, हास्य, वीर, भयानक, बीभत्स, रौद्र, अद्भुत, शांत और करुण, इन नौ रसों का वर्णन इसमें आपको देखने को मिलेगा।
  • भक्ति-भावना: इसमें भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भाव का वर्णन आपको देखने को मिलेगा।

ब्रजभाषा के कवी

ब्रजभाषा के अग्रणी कवियों में बिहारी जी का नाम आता है। उनकी वजह से ही ब्रजभाषा को साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्धि मिल गई। ब्रजभाषा को साहित्यिक भाषा के रूप में स्वीकृत कराने में बिहारी का योगदान अधिक माना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा का शुद्ध प्रयोग किया, और उसमें आप पूर्वीय प्रभाव भी देख सकते हैं। बिहारी जी की भाषा और साहित्यिक रचनाओं की सुंदरता के कारण वे हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवियों की सूची में आ गए।

बिहारीलाल की रचनाओं की कुछ विशेषताएं

  • सरल और मुक्तक भाषा: बिहारी जी की सभी रचनाओं में आपको सरल भाषा का सही उपयोग दिखाई देता है। पढ़ने वाले लोगों को उनकी रचनाओं का भाव तुरंत समझ में आता है।
  • शब्दों का कुशल प्रयोग: अपनी रचनाओं में शब्दों का प्रयोग कैसे करना है, इस मामले में बिहारीलाल कुशल थे। उन्हीं शब्दों के कारण उनकी रचनाएँ इतनी प्रसिद्ध हुईं।
  • रसों का सटीक चित्रण: उनकी सभी रचनाओं में रसों का सटीक चित्रण आपको दिखाई देता है। उनकी रचनाओं में इतनी गहराई है कि पढ़ते समय ऐसा लगता है मानो यह सचमुच घटित हो रहा हो।
  • कल्पना: बिहारीलाल कल्पना करने में बहुत समृद्ध थे और उनकी कल्पना का प्रभाव उनकी सभी रचनाओं में आपको दिखाई देता है।

बिहारीलाल के कुछ प्रसिद्ध दोहे

यहाँ कुछ बिहारीलाल के प्रसिद्ध दोहे हैं:

  • रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
    टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परियां जाय।।
  • स्वांग के समय नहीं अँगुरी के संग,
    तुलसी और राम की संग, गई रंग लहे ज्यों।
  • दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय।
    सुख में सुमिरन करने से, दुःख काे करे होय।।
  • सुख संपति बदले, जिवें राम नाम धरें।
    बांधा धर्म में बढे, बहुरि बांधा में तरें।
  • बिनय करइ केवल बोलिए, मन में रहत न होय।
    मन में रहै तो कहै नहिं, बोलिए तोहिं छोय।।
  • जीवन बहुत छीनत बहुत सताए,
    बिहारी बिन कारण रचित गाय।
  • रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
    टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गांठ परियां जाय।।
  • सो रही कुंडलिनी, गुफा रंजनी जात।
    लय न जानत बड़ा, बिरखि लहंगा जात।

बिहारीलाल का मृत्यु

बिहारीलाल महाराजा जयसिंह के दरबार में आश्रयदाता के रूप में लंबे समय तक रहे। कहा जाता है कि उन्होंने जिस सतसई रचना के कारण आज हिंदी साहित्य में इतने प्रसिद्ध हुए, वह रचना उन्होंने इसी दरबार में की थी। इस सतसई की बहुतांश रचनाएँ राजा जयसिंह के लिए रची गई थीं। कुछ समय तक राजा जयसिंह के दरबार में रहने के बाद मुग़ल सम्राट शाहजहां ने फिर से उन्हें अपने दरबार में बुलाया, और जीवन के अंत तक वे मुग़ल दरबार से ही जुड़े रहे।

1663 के आसपास उनका देहांत हो गया। अपनी अद्वितीय साहित्य रचनाओं के लिए प्रसिद्ध कवी बिहारीलाल जी ने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनके साहित्य के रूप में वे आज भी सभी के दिलों में जिंदा हैं।

सारांश

इस लेख में प्रस्तुत हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कवि बिहारीलाल का जीवन परिचय (Bihari Lal Ka Jivan Parichay) आपको अवश्य पसंद आया होगा। इस लेख को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सऐप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के अन्य लेख भी देखने को मिलेंगे। धन्यवाद।

FAQ’s

  • बिहारी का असली नाम क्या है?

    बिहारीलाल का असली नाम बिहारीलाल चौबे था। हिंदी साहित्य विश्व में उन्हें बिहारी नाम से जाना जाता था।

  • बिहारी की भाषा शैली क्या है?

    बिहारीलाल ब्रज भाषा के प्रमुख कवि थे। उनकी भाषा शैली बहुत ही सरल और सुगम है। उनकी रचनाओं में सरलता, सहजता और जीवंतता का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है। उन्होंने भाषा के प्रयोग में विशेष ध्यान दिया और अपनी कविताओं को बहुत ही संवेदनशीलता से भर दिया।

  • बिहारी के दोहों की क्या विशेषता है?

    बिहारीलाल के दोहों की विशेषता उनकी सरलता, सुंदरता और गहराई में है। उनके दोहे आम जनता के दैनिक जीवन की समस्याओं और मानवीय दुःख-सुख को व्यक्त करते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में भावुकता को सरलता से व्यक्त किया और अपनी भाषा शैली में गहराई और अर्थपूर्णता को साधा। उनके दोहे आज भी हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उन्हें सजीव रखने वाले उनके भावुक अनुयायी आज भी हैं।

  • बिहारी के ग्रंथ का नाम क्या है?

    बिहारीलाल के प्रमुख ग्रंथ का नाम “सतसई” है। यह ग्रंथ उनकी प्रमुख रचना है, जिसमें उन्होंने अद्वितीय ढंग से 700 से अधिक दोहे रचे हैं। “सतसई” में विभिन्न भाव, रस, और जीवन के मुद्दे पर उन्होंने अपने विचारों को व्यक्त किया है।

  • बिहारी की मृत्यु कब हुई थी?

    बिहारीलाल की मृत्यु का विशिष्ट वर्ष 1663 के आसपास माना जाता है।

  • बिहारी कैसे कवि हैं?

    बिहारीलाल रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि थे जिनकी कविताओं में सरलता, सादगी, भावुकता और गहराई दिखती है। उनकी रचनाओं में भावनाओं का सुंदर वर्णन और भाषा का प्रयोग उनकी विशेषता थी। उन्होंने अपनी कविताओं में सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक विषयों को भी उजागर किया, जिससे उनकी कविताएं आम जनता तक पहुँचीं और उनके काव्य को मानवीय और धार्मिक संदेशों का साधन माना गया।

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