घनानंद का जीवन परिचय – Ghananand Ka Jivan Parichay

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नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम रीतिकाल के कवि घनानंद का जीवन परिचय देखने जा रहे हैं। रीतीमुक्त अथवा स्वछन्द काव्यधारा में घनानंद का नाम हिंदी साहित्य में बहुत आदर से लिया जाता है। उनके साहित्यकाल के दौरान कई प्रसिद्ध कवि थे, लेकिन इस काव्यधारा में घनानंद आज भी अग्रणी माने जाते हैं। उनकी साहित्यिक रचनाएं आज भी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं और कई छात्र उनके साहित्य पर पीएचडी कर रहे हैं।

इसके अलावा, उनके साहित्य पर प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रश्न पूछे जाते हैं। इस महान कवि के बारे में जानने के लिए आप निश्चित रूप से उत्सुक होंगे। इसलिए इस लेख में दिया गया घनानंद का जीवन परिचय आपको जरूर पढ़ना चाहिए ताकि आप उनकी कविताओं और उनके जीवन के बारे में विस्तार से जान सकें।

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श्रेणीविवरण
नामघनानंद (आनंदघन)
जन्मस्थानदिल्ली या ब्रजक्षेत्र
जन्मवर्ष1673 (संवत 1730) या 1689 (संवत 1746)
जातिकायस्थ
प्रारंभिक जीवनदिल्ली
पारिवारिक जीवनवृंदावन में निवास
पदमीर मुंशी, शाहंशाह मुहम्मदशाह के दरबार में
रचनाएंप्रेम विरह और भक्ति पर आधारित, ब्रजभाषा में
प्रमुख प्रेरणासुजान नामक नर्तकी
भक्ति मार्गनिम्बार्क संप्रदाय से दीक्षा प्राप्त कर भक्ति मार्ग अपनाया
मृत्यु1760-1761 (संभवत: अहमदशाह अब्दाली द्वारा मथुरा में आक्रमण के दौरान)
उपाधिसाक्षात रसमूर्ति

घनानंद का जीवन परिचय

घनानंद, जिन्हें आनंदघन भी कहा जाता है, हिंदी साहित्य के रीतिकाल में रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनके जन्मस्थान के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि उनका जन्म दिल्ली या ब्रजक्षेत्र में सन् 1673 (संवत 1730) के आसपास हुआ था, जबकि कुछ स्रोत इसे 1689 (संवत 1746) मानते हैं। वे कायस्थ जाति के थे और फारसी साहित्य के गहरे अध्ययनकर्ता थे। प्रारंभिक जीवन दिल्ली में और बाद का जीवन वृंदावन में बिताने वाले घनानंद साहित्य और संगीत दोनों में विशेष थे।

उनके जन्म और मृत्यु के समय के संबंध में विद्वानों के बीच मतभेद हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि उन्होंने रीतिकाल के साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

शाहंशाह मुहम्मदशाह के दरबार के मीरमुंशी

कहा जाता है कि घनानंद तत्कालीन दिल्ली के शाहंशाह मुहम्मदशाह के दरबार में मीर मुंशी थे। अगर आपने उनकी रचनाएं पढ़ी हैं, तो आपने “सुजान” नाम का उल्लेख अवश्य देखा होगा। इसके पीछे यह कहानी बताई जाती है कि घनानंद सुजान नामक एक नर्तकी से प्रेम करते थे।

एक दिन दरबार के कुछ लोगों ने बादशाह से कहा कि मुंशी जी की रचनाएं बहुत सुंदर हैं और उनके गाने का अंदाज कुछ अलग है। बादशाह ने उन्हें गाने का आग्रह किया, लेकिन घनानंद के कंठ से शब्द नहीं निकल रहे थे। तब कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि यदि सुजान को बुलाया जाए, तो मुंशी ढंग से गा सकेंगे। सुजान को दरबार में लाया गया, और घनानंद ने उन्हें देखकर सही से गाना शुरू किया।

यह देखकर बादशाह बहुत क्रोधित हुए और आदेश का पालन न करने के कारण घनानंद को मीर मुंशी के पद से हटा दिया और दरबार से निकाल दिया। इससे भी अधिक दुख की बात यह हुई कि सुजान ने भी उनका साथ छोड़ दिया। घनानंद बहुत दुखी हो गए और खिन्न मन से वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण के सानिध्य में चले गए।

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निंबार्क संप्रदाय से जुडे

वृंदावन आने के बाद घनानंद ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली और निम्बार्क संप्रदाय से दीक्षा प्राप्त की। उन्होंने मोह-माया का त्याग कर भक्त के रूप में जीवन जीना शुरू किया। उनकी कई रचनाएं वृंदावन में ही तैयार हुईं।

हालांकि उन्होंने भक्ति मार्ग अपनाया, लेकिन वे सुजान को नहीं भूल सके। उनकी कई रचनाएं प्रेम विरह पर आधारित हैं, जिनमें बार-बार सुजान का नाम आता है। उनकी रचनाओं में यह दर्द और प्रेम की गहराई स्पष्ट रूप से झलकती है।

साहित्यिक परिचय

रीतिकाल में ब्रजभाषा का अधिक उपयोग किया जाता था, और उस समय ब्रजभाषा ही लोगों की बोली भाषा थी। घनानंद की कई रचनाएं ब्रजभाषा में हैं। उनकी रचनाएं प्रेम विरह और भक्ति पर आधारित हैं, जिसमें शुद्ध ब्रजभाषा का उपयोग किया गया है।

जहाँ उनके समकालीन कवियों की रचनाओं में मिश्रित ब्रजभाषा मिलती है, वहीं घनानंद की रचनाओं में शुद्ध ब्रजभाषा का सौंदर्य देखने को मिलता है। उनकी कविताओं में सभी भावनाओं का अंश दिखाई देता है, जिसके कारण उन्हें “साक्षात रसमूर्ति” की उपाधि भी दी गई है। उनकी रचनाओं में सुजान के रूप और सौंदर्य का वर्णन बहुत सुंदरता से किया गया है।

साहित्यिक रचनायें

घनानंद कविता और सवैये लिखते थे। बताया जाता है कि उन्होंने कुल 41 ग्रंथ लिखे और हर ग्रंथ में उन्होंने कई रचनाएँ कीं। उनके कुछ प्रमुख ग्रंथों के नाम नीचे दिए गए हैं।

  • सुजान-शतक (100 कविताएँ)
  • विरहलीला (150 कविताएँ)
  • प्रेम पचीसी (25 कविताएँ)
  • प्रेम सतसई (700 कविताएँ)
  • विरह सतसई (700 कविताएँ)
  • विरह पचीसी (25 कविताएँ)
  • प्रेम प्रकाश (200 कविताएँ)
  • भक्तिपचीसी (25 कविताएँ)
  • भक्ति सतसई (700 कविताएँ)
  • सुजान छंदावली (150 कविताएँ)
  • सुदामा चरित (100 कविताएँ)
  • श्याम सगाई (50 कविताएँ)
  • सुधा सागर (200 कविताएँ)
  • कृष्ण रास (100 कविताएँ)
  • भक्ति भास्कर (150 कविताएँ)
  • सुजान लहरी (100 कविताएँ)
  • प्रेम तरंगिनी (200 कविताएँ)
  • विरह तरंगिनी (200 कविताएँ)
  • भक्ति तरंगिनी (200 कविताएँ)
  • प्रेम सरिता (150 कविताएँ)
  • विरह सरिता (150 कविताएँ)
  • भक्ति सरिता (150 कविताएँ)
  • प्रेम मंजरी (100 कविताएँ)
  • विरह मंजरी (100 कविताएँ)
  • भक्ति मंजरी (100 कविताएँ)
  • प्रेम कुसुम (100 कविताएँ)
  • विरह कुसुम (100 कविताएँ)
  • भक्ति कुसुम (100 कविताएँ)
  • सुजान पदावली (150 कविताएँ)
  • कृष्ण चरित (100 कविताएँ)
  • विरह वंशी (100 कविताएँ)
  • भक्ति वंशी (100 कविताएँ)
  • प्रेम रसिक (150 कविताएँ)
  • विरह रसिक (150 कविताएँ)
  • भक्ति रसिक (150 कविताएँ)
  • प्रेम लहरी (100 कविताएँ)
  • विरह लहरी (100 कविताएँ)
  • भक्ति लहरी (100 कविताएँ)
  • प्रेम सुधा (200 कविताएँ)
  • विरह सुधा (200 कविताएँ)
  • भक्ति सुधा (200 कविताएँ)

घनानंद की कविताओं के कुछ अंश

तब तौ छबि पीवत जीवत है अब सोचन लोचन जात जरे
हित-पोष के तोष सुप्राण पले बिललात महादुख दोष भरे
‘घनानंद’ मीत सुजान बिना सबही सुखसाज समाज टरे
तब हार पहाड़ से लागत है अब आनि के बीच पहार परे – घनानंद

झलकै अति सुंदर आनन गौर
छके दृग राजत काननि छ्वैहंसि बोलनि
मैं छबि फूलन की बरषा उर ऊपर जाति है
ह्वैलट लोल कपोल कलोल करैं
कल कंठ बनी जलजावलि द्वैअंग अंग तरंग उठै
दुति की परिहे मनौ रूप अबै धर च्वै – घनानंद

’घनानंद’ जीवन मूल सुजान की कौंधनि हू न कहूं दरसैं
सु न जानिये धौं कित छाय रहे दृग चातक प्रान तपै तरसैं
बिन पावस तो इन्हें थ्यावस हो न सु क्यों करि ये अब सो परसैं
बदरा बरसै रितु में घिरि कै नितहीं अंखियां उघरी बरसैं – घनानंद

मथुरा मे हुई मृत्यू

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार, घनानंद की मृत्यु 1760-1761 के दौरान हुई थी। जब क्रूर अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर दूसरे पानिपत की लड़ाई के बाद हमला किया, तो मथुरा में हुए आक्रमण के दौरान घनानंद की हत्या कर दी गई।

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FAQ’s

  • घनानंद की मृत्यु कब और कैसे हुई?

    घनानंद की मृत्यु 1760-1761 के दौरान हुई थी। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार, जब क्रूर अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर दूसरे पानिपत की लड़ाई के बाद हमला किया, तो मथुरा में हुए आक्रमण के दौरान घनानंद की हत्या कर दी गई थी।

  • घनानंद की भाषा कौन सी थी?

    घनानंद की भाषा ब्रजभाषा थी। वह ब्रज क्षेत्र के प्रमुख कवि और संत थे और उनकी कविताएँ और भजन मुख्यतः ब्रजभाषा में लिखे गए हैं। ब्रजभाषा एक महत्वपूर्ण हिंदी भाषा है जो विशेषकर उत्तर भारत के ब्रज क्षेत्र में बोली जाती है।

  • घनानंद कौन थे?

    घनानंद ब्रजभाषा के प्रमुख कवि और संत थे, जिन्होंने भक्ति और प्रेम विरह पर आधारित कविताएँ और सवैये लिखे।

  • घनानंद के प्रेम वर्णन की विशेषता क्या है?

    घनानंद के प्रेम वर्णन की विशेषता उनकी ईश्वरीय भक्ति और भावनात्मक गहराई में है। उनकी कविताओं में भगवान कृष्ण के प्रति गहरा प्रेम और समर्पण दिखाया गया है, जिसमें चातक जैसे प्रतीकों के माध्यम से प्रेम की प्रतीक्षा और भक्ति का प्रभावी चित्रण होता है।

  • घनानंद की सबसे प्रसिद्ध रचना कौन सी है?

    घनानंद की सबसे प्रसिद्ध रचना “घनानंद के पद” है। यह रचना उनके भक्ति और प्रेम के भावों को व्यक्त करती है और ब्रजभाषा में उनकी उत्कृष्ट काव्य शैली का उदाहरण है।

सारांश

इस लेख में हमने घनानंद का जीवन परिचय के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है। हमें आशा है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को अपने दोस्तों के साथ साझा करना न भूलें। इस तरह के विभिन्न आर्टिकल्स आप देखना चाहते हैं, तो आप हमसे व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। हम आपके लिए रोज नई-नई जानकारी प्रदान करने की कोशिश करेंगे। धन्यवाद।


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