जननायक कर्पूरी ठाकुर की जीवनी । Jannayak Karpuri Thakur Ki Jivani
नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम जननायक कर्पूरी ठाकुर की जीवनी देखने जा रहे हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने वाले कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा 23 जनवरी 2024 को भारत रत्न पुरस्कार देने की घोषणा की गई और 30 मार्च 2024 को उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
समाजवादी विचारधारा से जीवन जीने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर की जीवनी हमने विस्तार से बताई है। उनकी जीवनी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें।
Contents
जननायक कर्पूरी ठाकुर की जीवनी
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 में भारत के बिहार राज्य में समस्तीपुर जिले के पितौंझिया नामक एक गांव में ठाकुर परिवार में हुआ था। आज यह गांव कर्पूरी ग्राम के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम श्री गोकुल ठाकुर था, जो पेशे से बाल काटने का काम करते थे, और माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था, जो एक गृहिणी थीं।
विषय | विवरण |
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जन्म | 24 जनवरी 1924, समस्तीपुर, बिहार |
शिक्षा | पटना विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास |
स्वतंत्रता संग्राम | महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया, समाजवादी विचारधारा के प्रचारक |
राजनीतिक करियर | उपमुख्यमंत्री (1967-71), मुख्यमंत्री (1970-71, 1977-79) |
विशेषताएँ | सादगी और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध, अंग्रेजी को समाप्त करने के लिए प्रयास |
मृत्यु | 17 फरवरी 1988, पटना, बिहार |
सम्मान | भारत रत्न (30 मार्च 2024) |
कर्पूरी ठाकुर की शिक्षा
उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव से पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने पटना में विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर 1940 में उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। वे अपने कॉलेज के दिनों से ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए थे, और इसी कारण उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई छोड़ 1942 में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और सक्रिय रूप से अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गए। उनकी शिक्षा और संघर्ष के कारण ही वे बाद में बिहार के मुख्यमंत्री बने और समाजवाद की विचारधारा के प्रचारक बने।
कर्पूरी ठाकुर का स्वतंत्रता संग्राम में सहभाग
उस वक्त भारत ब्रिटिशों के अधीन था। इस देश को स्वतंत्र करने के लिए उन्होंने भी अपना योगदान देने का निर्णय लिया और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने समाजवादी विचारधारा का अनुसरण करते हुए आचार्य नरेंद्र देव के साथ समाजवादी आंदोलन में हिस्सा लिया।
1942 के दौरान महात्मा गांधी ने पूरे देश में असहयोग आंदोलन छेड़ा था। यह आंदोलन इतना तीव्र था कि आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेज सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में बंद कर दिया था। उस आंदोलन में जेल की सजा काटने वाले कर्पूरी ठाकुर भी थे।
कर्पूरी ठाकुर का पहला चुनाव
1947 में भारत को आज़ादी मिली। उसके बाद बिहार का पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ। कर्पूरी ठाकुर समस्तीपुर जिले के ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से संयुक्त समाजवादी दल के उम्मीदवार के रूप में चुनाव में खड़े हुए और वे चुनाव जीत गए। उसके बाद अपने जीवनकाल में वे कभी भी विधायक का चुनाव नहीं हारे।
एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री बने
कर्पूरी ठाकुर ने अपने राजनीतिक जीवनकाल में एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री पद संभाला। साल 1970 में उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उस समय उनका कार्यकाल बहुत कम था। 22 दिसंबर 1970 को वे मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बैठे और 2 जून 1971 को उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। उस समय 162 दिनों तक उन्होंने यह पद संभाला। इसके बाद फिर उन्होंने जून माह में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 24 जून 1977 को वे मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए और 21 अप्रैल 1979 को उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। उस समय उनका कार्यकाल 1 वर्ष 301 दिनों का था।
सादगी और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे।
दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उपमुख्यमंत्री होने के बावजूद भी वे फटा कुर्ता, धोती और टूटी हुई चप्पल पहनते थे। एक नेता ने उनकी मजाक उड़ाने हेतु कहा कि “मुख्यमंत्री ठीक से रह सके और उसके घर का गुजारा अच्छी तरह से हो, इतना वेतन तो उसे मिलना चाहिए।” उस समय मंत्री चंद्रशेखर अपनी जगह से उठे और उन्होंने अपने कुर्ते की झोली बनाकर सभी विधायकों से पैसे जमा करवाए। इसके बाद उन सभी पैसों को इकट्ठा करके कर्पूरी ठाकूर को दिए और कहा, “इससे ढंग के कपड़े लेलो।” लेकिन कर्पूरी ठाकूर ने कहा, “यह पैसे मैं मुख्यमंत्री सहायता निधि में जमा करूंगा।” इससे उनकी ईमानदारी का पता चलता है।
कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक कार्य
भारत के स्वतंत्रता के कुछ साल बाद राजनीति में कुछ बुराइयां पैदा हुई थीं। उसके विरुद्ध आवाज उठाने का काम विपक्षी दल के नेता कर्पूरी ठाकूर ने किया। उस समय के राजनीति में सत्ता में बैठे लोगों के कारनामे उजागर करने का काम उन्होंने किया। साल 1967 में गैर कांग्रेसवाद के विरुद्ध खड़े होकर उन्होंने काले कारगुज़ारों का पर्दाफाश किया और इसका नतीजा यह हुआ कि पूरे देश में कांग्रेस की जड़ मजबूत होने के बावजूद भी 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री और करपुरी ठाकूर को उपमुख्यमंत्री बने। तबसे उनका नाम पूरे बिहार में मशहूर हो गया। फिर 1977 की चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी की जीत हो गई और ठाकूर बिहार के मुख्यमंत्री बन गए।
सत्ता में रहते वक्त विपक्ष दल के लोगों ने उन पर तरह-तरह के बेबुनियाद आरोप भी लगाए। लेकिन उनसे परे उठकर उन्होंने अपनी सच्चाई साबित की और जननायक अपने जीवन के अंत तक और जाने के बाद भी लोगों के दिलों पर राज करते रहे।
अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त किया
जब साल 1967 में उप मुख्यमंत्री पद पर थे, तब केंद्र और राज्य सरकारों का पत्रव्यवहार अंग्रेजी में होता था। उन्होंने इसका जमकर विरोध किया, क्योंकि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद भी इसका पत्राचार में उपयोग नहीं हो रहा था। उनके विरोध के बाद केंद्र सरकार ने अपना निर्णय बदल दिया और पत्राचार हिंदी भाषा में करना शुरू कर दिया।
कर्पूरी ठाकुर का मृत्यू
कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति के भीष्माचार्य थे। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में उन्होंने धन दौलत कमाने के बजाय सिर्फ लोगों की सेवा की और लोगों के बीच जननायक के नाम से जाने लगे। 17 फरवरी 1988 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और इसके कारण उनका देहांत हो गया।
सारांश
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FAQ’s
कर्पूरी ठाकुर बिहार के उप मुख्यमंत्री कब बने?
कर्पूरी ठाकुर 1967 में बिहार के उपमुख्यमंत्री बने।
क्या कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिला?
हाँ, कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने 23 जनवरी 2024 को उन्हें यह पुरस्कार देने की घोषणा की और 30 मार्च 2024 को उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया।
कर्पूरी ठाकुर कितनी बार सीएम बने?
कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। पहली बार वे 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक और दूसरी बार 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक मुख्यमंत्री रहे।
कर्पूरी ठाकुर को कौन कौन सा कार्य करने में आनंद मिलता था?
कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक सेवा और लोगों की भलाई के कार्य करने में आनंद मिलता था। वे समाजवादी विचारधारा के अनुयायी थे और उन्होंने अपना जीवन समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित किया। उनके राजनीतिक जीवन का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार से लड़ना और सामाजिक न्याय स्थापित करना था।