मंगलेश डबराल का जीवन परिचय – Manglesh Dabral Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए मंगलेश डबराल का जीवन परिचय (Manglesh Dabral Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक युग के प्रमुख कवि और गद्यकारों की सूची में मंगलेश डबराल का नाम आता है। इसके अलावा, उन्होंने संपादन क्षेत्र में भी अपनी प्रमुख भूमिका निभाई। आधुनिक युग में हिंदी साहित्य को एक अलग ऊंचाई पर ले जाने का कार्य उन्होंने किया। उनके साहित्यिक योगदान के लिए साल 2000 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। “पहाड़ पर लालटेन” और “हम जो देखते हैं” उनके प्रमुख काव्यसंग्रह थे।
आज भी उनके द्वारा रचित रचनाओं का पाठ देश के अनेक महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। देश में होने वाली कई स्पर्धा परीक्षाओं में उनके साहित्यिक रचनाओं के आधार पर प्रश्न पूछे जाते हैं। साथ ही, बहुत से छात्र हैं जिन्होंने उनके साहित्यिक रचनाओं पर पीएचडी भी की है। तो आइए, मंगलेश डबराल का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान की विस्तृत जानकारी पर नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
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पूरा नाम | मंगलेश डबराल |
जन्म तिथि | 16 मई 1948 |
जन्म स्थान | काफलपानी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड |
पिता का नाम | मित्रानंद डबराल |
माता का नाम | सतेश्वरी देवी |
शिक्षा | देहरादून |
पारिवारिक स्थिति | पत्नी: संयुक्ता, बेटी: अल्मा, बेटा: मोहित |
प्रमुख काव्य संग्रह | “पहाड़ पर लालटेन”, “हम जो देखते हैं” |
महत्वपूर्ण पुरस्कार | – साहित्य अकादमी पुरस्कार (2000) – ओमप्रकाश स्मृति सम्मान (1982) – श्रीकांत वर्मा पुरस्कार (1989) – हिंदी साहित्यकार सम्मान (दिल्ली) – गजानन माधव मुक्तिबोध राष्ट्रीय साहित्य सम्मान – कुमार विकल स्मृति सम्मान – शमशेर सम्मान |
मृत्यु तिथि | 9 दिसंबर 2020 |
उम्र | 72 वर्ष |
कारण | कोरोना महामारी |
Contents
मंगलेश डबराल का जन्म और परिवार
हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के प्रमुख कवि, गद्यकार, संपादक और कुशल अनुवादक मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई 1948 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के काफलपानी गांव में हुआ। उनके पिता का नाम मित्रानंद डबराल और माता का नाम सतेश्वरी देवी था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून में प्राप्त की। इस दौरान, जब वह पढ़ाई कर रहे थे, उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद, उनकी माता के साथ उन्होंने 1960 के दशक में दिल्ली में बसने का निर्णय लिया।
मंगलेश डबराल की शादी संयुक्ता से हुई, और उन्हें एक बेटी, अल्मा, और एक बेटा, मोहित है। उनका साहित्यिक योगदान और जीवन अनुभव हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
मंगलेश डबराल का कार्यकाल
अपनी उपजीविका चलाने के लिए मंगलेश डबराल परिवार समवेत 1960 में दिल्ली आ गए। दिल्ली में उन्होंने हिंदी पैट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास जैसे स्थानीय समाचार पत्रों में कार्य किया। उसके बाद उन्होंने भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होने वाली मासिका ‘पूर्वाग्रह’ में संपादक का कार्य किया। उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कार्य किया। ‘पूर्वाग्रह’ का संपादकीय कार्य छोड़कर वे इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) और लखनऊ से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘अमृत प्रभात’ में कुछ समय तक कार्य करते रहे।
‘जनसत्ता’, इस हिंदी लोकप्रिय अखबार का साहित्य संपादक बनने का मौका उन्हें 1983 में मिला। इसके बाद वे ‘सहारा समय’ में संपादक के रूप में जुड़ गए। इसी दौरान वे ‘राष्ट्रीय पुस्तक न्यास’ (NBT) से भी जुड़ गए। इस तरह उन्होंने अलग-अलग जगहों पर कार्य किया। अपने काम को संभालते हुए उन्होंने अपना लेखन कार्य भी प्रारंभ किया।
मंगलेश डबराल का साहित्यिक परिचय
मंगलेश डबराल हिंदी साहित्य जगत के आधुनिक काल के प्रमुख कवि और गद्यकार थे। उन्होंने अपने नौकरी के कार्यकाल में साहित्यिक रचनाओं का सृजन करना शुरू किया था। 1981 में ‘पहाड़ पर लालटेन’ उनका पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ। इसके अलावा, उन्होंने ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’ जैसी कई गद्य रचनाएँ भी कीं।
उनकी प्रसिद्ध रचना ‘हम जो देखते हैं’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। मंगलेश जी ने न केवल काव्य और गद्य रचनाओं का लेखन किया, बल्कि पटकथा लेखन और सिनेमा के संचार माध्यम में भी कार्य किया। उनकी रचनाओं का भारतीय भाषाओं के अलावा कई अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ। उन्होंने यात्रा डायरी संग्रह की भी रचना की, जिसमें ‘एक बार आयोवा’ उनकी प्रसिद्ध यात्रा डायरी है।
मंगलेश डबराल की साहित्यिक रचनाएँ
मंगलेश डबराल ने अपने कार्यकाल में हिंदी साहित्य जगत को एक ऊंचाई पर ले जाने का कार्य किया। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में उन्होंने अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। उनके द्वारा रचित रचनाओं के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।
कविता संग्रह
- पहाड़ पर लालटेन
- घर का रास्ता
- हम जो देखते हैं
- आवाज़ भी एक जगह है
- नए युग में शत्रु
गद्य संग्रह
- लेखक की रोटी
- कवि का अकेलापन
यात्रा-डायरी
- एक बार आयोवा
पटकथा लेखन
- नागार्जुन
- निर्मल वर्मा
- महाश्वेता देवी
- यू. आर. अनंतमूर्ति
- कुर्रतुल ऐन हैदर
- गुरुदयाल सिंह आदि लोगों पर केंद्रित वृत्तचित्रों के लिए पटकथाएँ लिखीं।
संपादन
मंगलेश डबराल ने निम्नलिखित पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया:
- हिंदी पेट्रियट
- प्रतिपक्ष
- पूर्वग्रह
- आसपास
- जनसत्ता
- अमृत प्रभात
- रेतघड़ी
- कविता उत्तरशती
मंगलेश डबराल की भाषा शैली
मंगलेश डबराल जी ने अपनी साहित्यिक रचनाओं में सरल और सहज भाषा का उपयोग किया। साहित्य प्रेमियों को उनके द्वारा रचित साहित्य पढ़ने के बाद उसका अर्थ तुरंत समझ में आता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत और विदेशी भाषाओं का मिश्रण किया है।
अपने कार्यकाल में उन्होंने हिंदी भाषा को समृद्ध करने का प्रयास किया। मंगलेश डबराल जी द्वारा रचित कविताओं का भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, फ्रांसीसी, स्पानी, इतालवी और पुर्तगाली जैसी कई भाषाओं में अनुवाद किया गया।
मंगलेश डबराल के पुरस्कार और सम्मान
मंगलेश डबराल जी को हिंदी साहित्य में अपने योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें मिले कुछ पुरस्कारों के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।
- साल 1982 में उन्हें ओमप्रकाश स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया।
- साल 1989 में श्रीकांत वर्मा पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया गया।
- उनकी प्रसिद्ध साहित्य रचना ‘हम जो देखते हैं’ के लिए साल 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार देकर उनका गौरव बढ़ाया गया।
- हिंदी अकादमी (दिल्ली) से हिंदी साहित्य में योगदान के लिए उन्हें साहित्यकार सम्मान पुरस्कार दिया गया।
- प्रमुख हिंदी साहित्यकारों को दिया जाने वाला गजानन माधव मुक्तिबोध राष्ट्रीय साहित्य सम्मान पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया गया।
- कुमार विकल स्मृति सम्मान पुरस्कार देकर उनका गौरव बढ़ाया गया।
- उन्हें श्रीकांत वर्मा पुरस्कार और शमशेर सम्मान पुरस्कार देकर भी सम्मानित किया गया।
मंगलेश डबराल का निधन
हिंदी साहित्य को अपनी साहित्यिक रचनाओं द्वारा दुनिया के कई देशों में पहुँचाने वाले साहित्यकार मंगलेश डबराल जी का निधन 9 दिसंबर 2020 को हुआ। 72 वर्ष की आयु में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। उनकी मृत्यु 2020 में आई कोरोना महामारी के कारण हुई। मंगलेश जी भी इस महामारी की शिकार हुए। कोरोना संक्रमित होने के कारण उन्हें वसुंधरा, गाजियाबाद के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन शरीर ने साथ न देने के कारण वे इस दुनिया से चले गए।
आज मंगलेश डबराल जी शरीर रूप से हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनके साहित्यिक रचनाओं के कारण वे आज भी साहित्य प्रेमियों के मन में जिंदा हैं। उनके पश्चात उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी हैं। हिंदी साहित्य जगत उनके कार्य के लिए सदा ऋणी रहेगा।
FAQs
पहाड़ पर लालटेन किसकी है?
‘पहाड़ पर लालटेन’ मंगलेश डबराल की कविता है। यह उनकी प्रसिद्ध काव्य रचना है, जिसमें पहाड़ों की सुंदरता और जीवन की जटिलताओं को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
मंगलेश डबराल की भाषा कौन सी है?
मंगलेश डबराल की भाषा मुख्यतः हिंदी है। उन्होंने अपनी कविताओं और गद्य रचनाओं में सरल, सहज और संवेदनशील हिंदी का प्रयोग किया, जो आम पाठकों को आसानी से समझ में आती है।
मंगलेश डबराल की मृत्यु कब और कहां हुई थी?
मंगलेश डबराल की मृत्यु 9 दिसंबर 2020 को हुई थी। उनका निधन वसुंधरा, गाजियाबाद के एक अस्पताल में हुआ था।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि कौन थे?
उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल थे। उनके अलावा, नरेश कुमार शर्मा और लीलाधर जगूड़ी भी उत्तराखंड के प्रमुख कवियों में शामिल हैं।
‘नए युग में शत्रु’ किसकी रचना है ?
‘नए युग में शत्रु’ मंगलेश डबराल की कविता है। इस कविता में उन्होंने समय के बदलाव और समाज के मुद्दों पर गहन विचार किया है।
सारांश
हमें विश्वास है कि हमने इस लेख में प्रस्तुत मंगलेश डबराल का जीवन परिचय (Manglesh Dabral Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी मंगलेश डबराल जी के जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।
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