नरेश मेहता का जीवन परिचय – Naresh Mehta Ka Jivan Parichay
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए नरेश मेहता का जीवन परिचय (Naresh Mehta Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक युग के प्रमुख साहित्यकारों में नरेश मेहता का नाम लिया जाता है। नरेश जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने हिंदी साहित्य में काव्य, खंडकाव्य, उपन्यास, कहानी, निबंध, एकांकी आदि साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। आधुनिक कविता को नई ऊँचाई तक ले जाने का कार्य नरेश मेहता जी ने किया। दूसरे सप्तक के प्रमुख कवियों की सूची में नरेश मेहता का भी समावेश है।
उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें साल 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके द्वारा रचित साहित्यिक रचनाओं का पाठ देश के कई महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। उनके साहित्य के आधार पर कई शोधग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। देश-विदेश के कई छात्रों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की है। देश में होने वाली प्रतियोगिता परीक्षाओं में हिंदी में परीक्षा देने वाले छात्रों को उनके द्वारा रचित साहित्य के आधार पर प्रश्न पूछे जाते हैं। तो आइए, नरेश मेहता का जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में उनके योगदान पर एक नज़र डालते हैं।
विवरण | जानकारी |
---|---|
नाम | नरेश मेहता |
बचपन का नाम | पूर्णशंकर शुक्ला |
जन्म | 15 फरवरी 1922 |
जन्म स्थान | शाजापुर, मालवा जिला, मध्यप्रदेश |
पिता का नाम | पंडित बिहारीलाल |
प्रारंभिक शिक्षा | उज्जैन में |
उच्च शिक्षा | हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस से एम.ए. की डिग्री |
प्रमुख काव्य संग्रह | “बनपाखी!”, “सुनो, बोलने दो चीड़ को”, “पिछले दिनों” |
खंडकाव्य | “संशय की एक रात”, “महाप्रस्थान”, “प्रवाद पर्व” |
उपन्यास | “डूबते मस्तूल”, “यह पथ बंधु था” |
कहानी संग्रह | “तथापि”, “एक समर्पित महिला” |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1988), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1992), मंगला प्रसाद पारितोषिक (1985) |
निधन | 22 नवंबर 2000, (आयु 78 वर्ष) |
Contents
नरेश मेहता का जन्म और परिवार
हिंदी के प्रमुख साहित्यकार नरेश मेहता का जन्म 15 फरवरी 1922 को मध्यप्रदेश के मालवा जिले के शाजापुर नामक एक कस्बे में हुआ। उनके पिता का नाम पंडित बिहारीलाल था। उनका बचपन का नाम पूर्णशंकर शुक्ला था, जिसे बाद में नरेश मेहता के नाम से जाना जाने लगा। बचपन में ही माता-पिता के गुजर जाने के बाद नरेश जी के पालन-पोषण का जिम्मा उनके चाचा पंडित शंकर लाल शुक्ला जी ने उठाया। उन्होंने नरेश मेहता जी को माँ-बाप की कोई कमी महसूस नहीं होने दी।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में की। बचपन से ही पढ़ाई में उनकी रुचि होने के कारण उनके चाचा ने उन्हें शिक्षा के मामले में किसी भी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी। अपनी मैट्रिक और इंटरमीडिएट तक की शिक्षा माधव कॉलेज, उज्जैन से पूरी करने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए बनारस आ गए। उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु उन्होंने हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस में दाखिला लिया और वहाँ से एम.ए. की डिग्री सफलतापूर्वक प्राप्त की।
नरेश मेहता का साहित्यिक परिचय
नरेश मेहता जी के साहित्यिक रचनाओं में उनके गुरु केशवप्रसाद मिश्र, जो हिंदी के प्रमुख साहित्यकार थे, का बड़ा प्रभाव था। विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने साहित्यिक रचनाओं का सृजन करना शुरू किया। उनकी साहित्यिक यात्रा कविताओं से शुरू हुई। नरेश जी मुख्य रूप से कवि थे, लेकिन बाद में उन्होंने कई अन्य विधाओं में भी सृजन किया। उन्होंने संपादकीय क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इंदौर से प्रकाशित होने वाले हिंदी दैनिक ‘चौथा संसार’ में उन्होंने कुछ समय तक संपादकीय कार्य किया।
विद्यार्थी जीवन में ही वे एक प्रसिद्ध कवि के रूप में उभर कर सामने आए और अपने योगदान के बल पर दूसरे ‘तार सप्तक’ के प्रमुख कवियों की सूची में अपना स्थान बनाया। उनके प्रमुख काव्य संग्रहों में “बनपाखी!”, “सुनो, बोलने दो चीड़ को”, और “पिछले दिनों” शामिल हैं। इसके अलावा, नरेश जी ने खंडकाव्य भी लिखा, जिनमें “संशय की एक रात”, “महाप्रस्थान”, और “प्रवाद पर्व” जैसे रचनाएँ प्रमुख हैं।
उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। कविताओं के अतिरिक्त उन्होंने “डूबते मस्तूल”, “यह पथ बंधु था” जैसे उपन्यास और “तथापि”, “एक समर्पित महिला” जैसे कहानी संग्रह भी लिखे। यात्रावृत्त, संस्मरण, अनुवाद, और आलोचना के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। उनकी रचनाओं में खड़ी बोली, संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग देखने को मिलता है। उनके साहित्य में रूपक, मानवीकरण, उपमा, उत्प्रेक्षा और अनुप्रास जैसे अलंकारों का सुंदर उपयोग किया गया है।
नरेश मेहता की साहित्यिक रचनाएँ
नरेश मेहता जी अपने साहित्यकाल में काव्य, खंडकाव्य, उपन्यास, कहानी, निबंध, एकांकी जैसी अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। उनके द्वारा रची गई साहित्यिक रचनाओं के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।
काव्य-संग्रह
- बनपाखी! सुनो!!
- बोलने दो चीड़ को
- मेरा समर्पित एकांत
- उत्सवा
- तुम मेरा मौन हो
- अरण्या
- आख़िर समुद्र से तात्पर्य
- पिछले दिनों नंगे पैरों
- देखना एक दिन
- चैत्या
खंडकाव्य
- संशय की एक रात
- महाप्रस्थान
- प्रवाद पर्व
- शबरी
- प्रार्थना पुरुष
- पुरुष
उपन्यास
- डूबते मस्तूल
- यह पथ बंधु था
- धूमकेतु: एक श्रुति
- नदी यशस्वी है
- दो एकांत
- प्रथम फाल्गुन
- उत्तरकथा भाग-1
- उत्तरकथा भाग-2
कहानी-संग्रह
- तथापि
- एक समर्पित महिला
- जलसाघर
नाटक
- सुबह के घंटे
- खंडित यात्राएँ
रेडियो एकांकी
- सनोवर के फूल
- पिछली रात की बरफ़
यात्रावृत्त
- साधु न चलै जमात
संस्मरण
- प्रदक्षिणा: अपने समय की
संपादन
- वाग्देवी
- गाँधी गाथा
- हिंदी साहित्य सम्मेलन का इतिहास
अनुवाद
- आधी रात की दस्तक
नरेश मेहता का पुरस्कार और सम्मान
नरेश मेहता जी को साहित्यिक योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। नीचे हमने उन्हें प्राप्त हुए कुछ पुरस्कारों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।
- साल 1988 में हिंदी साहित्य जगत में श्रेष्ठ माना जाने वाला साहित्य अकादमी पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया गया।
- उनके साहित्यिक योगदान के लिए साल 1992 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- साल 1985 में हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से दिया जाने वाला ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया गया।
नरेश मेहता का निधन
हिंदी के जेष्ठ साहित्यकार नरेश मेहता जी का निधन 22 नवंबर 2000 को हुआ। निधन के समय उनकी आयु 78 साल थी। जीवन के अंतिम समय में वे भोपाल में थे, और यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय दिल्ली, इलाहाबाद, उज्जैन जैसे शहरों में व्यतीत किया। उत्तरकाल में वे भोपाल आए और यहीं स्थिर हुए।
उनके जाने से हिंदी साहित्य जगत को बड़ा नुकसान हुआ। आज नरेश जी शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी साहित्यिक रचनाओं में वे आज भी साहित्य प्रेमियों के मन में जीवित हैं।
FAQs
नरेश मेहता के प्रसिद्ध खण्डकाव्य का क्या नाम है?
नरेश मेहता के प्रसिद्ध खंडकाव्य का नाम “महाप्रस्थान” है। यह उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक मानी जाती है।
नरेश मेहता का मूल नाम क्या था?
नरेश मेहता का मूल नाम “पूर्णशंकर शुक्ला” था।
नरेश मेहता को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला था?
नरेश मेहता को ज्ञानपीठ पुरस्कार 1992 में मिला था।
प्रवाद पर्व के रचयिता कौन थे?
“प्रवाद पर्व” के रचयिता नरेश मेहता थे। यह उनकी एक प्रमुख खंडकाव्य है।
संशय की एक रात किसकी रचना है?
“संशय की एक रात” नरेश मेहता की रचना है। यह एक प्रसिद्ध खंडकाव्य है।
सारांश
हमें विश्वास है कि इस लेख में प्रस्तुत नरेश मेहता का जीवन परिचय (Naresh Mehta Ka Jivan Parichay) आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण जानकारी को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें ताकि वे भी नरेश मेहता जी के जीवनी और हिन्दी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के बारे में जान सकें।
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