Rahul Sankrityayan Ka Jeevan Parichay – राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय
नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम आपके लिए Rahul Sankrityayan Ka Jeevan Parichay लेकर आए हैं। प्रसिद्ध आधुनिक हिंदी साहित्यकारों की सूची में राहुल सांकृत्यायन का नाम आदरपूर्वक लिया जाता है। वे एक प्रसिद्ध लेखक थे और हिंदी यात्रा साहित्य के जनक के रूप में जाने जाते हैं। उनकी कहानी, उपन्यास, जीवनी और यात्रा साहित्य में किए गए योगदान के लिए उन्हें हिंदी के प्रथम साहित्यकार के रूप में मान्यता प्राप्त है।
अपने जीवनकाल में उन्होंने देश-विदेश में यात्रा की। राहुल सांकृत्यायन विभिन्न भाषाओं के जानकार थे। उनकी साहित्यिक रचनाओं के योगदान के लिए उन्हें विद्वानों द्वारा हिंदी साहित्य जगत के महापंडित की उपाधि प्रदान की गई। आज भी अनेक महाविद्यालयों में उनके द्वारा रचित साहित्य का पाठ पढ़ाया जाता है। देश में होने वाली स्पर्धा परीक्षाओं में उनके साहित्य के आधार पर प्रश्न पूछे जाते हैं।
बहुत से विद्यार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी भी की है। उनकी साहित्यिक रचनाओं और जीवन के बारे में जानने के लिए इस लेख में दिया गया राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय आपको जरूर पढ़ना चाहिए।
विवरण | जानकारी |
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पूरा नाम | केदार पांडेय (बाद में राहुल सांकृत्यायन) |
जन्म तिथि | 9 अप्रैल 1893 |
जन्म स्थान | पंदहा, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | गोवर्धन पांडेय |
माता का नाम | कुलवंती देवी |
धर्म | बौद्ध धर्म |
प्रारंभिक शिक्षा | उर्दू माध्यम से |
उच्च शिक्षा | संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी |
मुख्य भाषा ज्ञान | अरबी, पाली, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, रूसी, जापानी |
प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ | “किन्नर देश की ओर”, “मेरी लद्दाख यात्रा”, “तिब्बत में सवा वर्ष” |
प्रमुख कथा संग्रह | “सतमी के बच्चे”, “वोल्गा से गंगा तक” |
प्रमुख उपन्यास | “बाईसवीं सदी”, “जीने के लिए”, “भागो नहीं, दुनिया को बदलो |
आत्मकथा | “मेरी जीवन यात्रा” |
महत्वपूर्ण पुरस्कार | पद्म भूषण (1963), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1958) |
विशेष सम्मान | जन्म शताब्दी पर भारतीय डाक विभाग द्वारा टिकट जारी |
निधन तिथि | 14 अप्रैल 1963 |
विशेष योगदान | यात्रा साहित्य का जनक, स्वतंत्र सेनानी |
अंतर्राष्ट्रीय यात्रा | श्रीलंका, पाल, जापान, कोरिया, मांचूरिया, सोवियत भूमि, ईरान, अफगानिस्तान, चीन, रूस |
Contents
राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय
हिंदी साहित्य के महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पैदाइशी नाम केदार पांडेय था, लेकिन बाद में उन्होंने धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और उनका नाम राहुल रख दिया गया। उनका गोत्र सांकृत्य था, इसलिए उन्हें सांकृत्यायन नाम प्राप्त हुआ। उनके पिता का नाम गोवर्धन पांडेय और माता का नाम कुलवंती देवी था। वे अपने परिवार के साथ पंदहा से थोड़ी दूर स्थित पिता के गाँव ‘कनैला’ में रहते थे।
उन्हें सीखने की चाह बचपन से लेकर जीवन के अंत तक बनी रही। राहुल सांकृत्यायन ने उर्दू माध्यम से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। आगे की शिक्षा के लिए वे बनारस आ गए, जहाँ उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी और हिंदी विषयों का अध्ययन किया। वे एक घुमक्कड़ व्यक्ति थे और अपने जीवनकाल में विभिन्न जगहों की यात्रा की। इसी दौरान उन्होंने कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। आगरा में रहकर उन्होंने अरबी भाषा सीखी। इसके अलावा, विभिन्न स्थानों पर जाकर उन्होंने पाली, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, रूसी, जापानी और अन्य भाषाएँ भी सीखी।
राहुल सांकृत्यायन का स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय सहभाग
राहुल सांकृत्यायन न केवल एक प्रमुख साहित्यकार थे, बल्कि वे एक स्वतंत्र सेनानी भी थे। उस समय भारत पर ब्रिटिश साम्राज्य की हुकूमत थी। इस हुकूमत को जड़ से उखाड़ने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में सशस्त्र और अहिंसात्मक आंदोलनों का आयोजन हो रहा था। 20वीं सदी के प्रारंभ में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व से देश के कई लोग प्रभावित हुए थे। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सब लोग उनके आंदोलनों में भाग ले रहे थे। राहुल सांकृत्यायन भी उनमें से एक थे।
उन्होंने 1921 में महात्मा गांधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इसके अलावा, 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया था। उस समय ब्रिटिश सरकार ने कई क्रांतिकारियों को जेल में डाल दिया था, और राहुल सांकृत्यायन को भी इस आंदोलन के दौरान जेल हुई थी। ब्रिटिशों द्वारा किसानों पर किए जा रहे अन्याय के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए उन्होंने अपने लेख, व्याख्यान और पुस्तकों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाई।
राहुल सांकृत्यायन का साहित्यिक परिचय
राहुल सांकृत्यायन जी को हिंदी साहित्य जगत में यात्रा साहित्य का जनक कहा जाता है, क्योंकि वे एक घुमक्कड़ व्यक्तित्व के धनी थे। कहा जाता है कि उन्होंने बचपन में एक शेर पढ़ा था: “सैर कर दुनिया की गालिब, जिंदगी फिर कहाँ? जिंदगी अगर कुछ रही तो, नौजवानी फिर कहाँ?”
इस शेर से वे बहुत प्रभावित हुए और बचपन से ही उन्होंने देश-विदेश की यात्रा करने का निर्णय लिया। अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। सांकृत्यायन बहुभाषी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने जिस देश में भी समय बिताया, वहां के अनुभवों को अपने यात्रा साहित्य में लिखा। उनकी प्रमुख यात्रा रचनाओं में “किन्नर देश की ओर”, “मेरी लद्दाख यात्रा” और “तिब्बत में सवा वर्ष” शामिल हैं।
सांकृत्यायन ने उन महान व्यक्तियों की जीवनी भी लिखी, जिनसे वे प्रेरित हुए। इनमें सरदार पृथ्वीसिंह, महामानव बुद्ध, कार्ल मार्क्स और माओ-त्से-तुंग जैसी प्रमुख हस्तियां शामिल हैं। उनके प्रसिद्ध कथा संग्रहों में “सतमी के बच्चे” और “वोल्गा से गंगा तक” शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने “बाईसवीं सदी”, “जीने के लिए” और “भागो नहीं, दुनिया को बदलो” जैसे कई उपन्यास भी लिखे। अपने जीवन की यात्रा और अनुभवों के आधार पर, उन्होंने “मेरी जीवन यात्रा” नामक आत्मकथा लिखी है।
हिंदी साहित्यकार आमतौर पर कुछ विशिष्ट विषयों पर ही साहित्यिक रचनाओं का सृजन करते थे, लेकिन राहुल सांकृत्यायन की बात अलग थी। उन्होंने धर्म, दर्शन, राजनीति, इतिहास, विज्ञान और अन्य विविध विषयों पर साहित्यिक रचनाएँ कीं। उनकी रचनाओं में इन सभी विषयों का उल्लेख मिलता है, जो उनकी बहुपरकारी दृष्टि और गहरे अध्ययन का प्रमाण है।
राहुल सांकृत्यायन के कार्य
- साल 1947 में उन्होंने अखिल भारतीय सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
- 1942 में उन्होंने स्वामी सहजानंद सरस्वती जी की साप्ताहिक पत्रिका “हुंकार” के संपादक के रूप में कार्य किया।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें साल 1940 में बिहार प्रांतीय किसान सभा का अध्यक्ष बनाया गया।
- साल 1945 से लेकर 1947 तक वे रूस में रहे। वहाँ दो साल रहकर उन्होंने लेनिनग्राद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया।
राहुल सांकृत्यायन की देश-विदेश में यात्रा
जब से राहुल सांकृत्यायन जी को समझ आई, तब से उन्होंने देश-विदेश में यात्रा करने की शुरुआत की। जब वे मात्र 14 साल के थे, तब वे घर से भागकर कलकत्ता आ गए। कलकत्ता में कुछ माह रहने के बाद उन्होंने 17 वर्ष की आयु में काशी में रहकर विभिन्न भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद उनकी यात्रा की सिलसिला जारी ही रहा। उन्होंने भारत के अनेक तीर्थक्षेत्रों में जाकर वहां पर अध्ययन किया। इनमें पुरी, रामेश्वर, तिरुपति बालाजी जैसे अन्य कई तीर्थक्षेत्र शामिल हैं।
इसके बाद कुछ समय वे आगरा में रहे, वहां पर अध्ययन करने के बाद वे लाहौर चले गए। भारत भ्रमण के बाद उन्होंने विदेश यात्रा का प्रारंभ किया। इसमें पाल, जापान, श्रीलंका, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि, ईरान, अफगानिस्तान, चीन, रूस जैसे कई अन्य देशों में भ्रमण किया। उन्होंने इन देशों को न केवल पर्यटन की दृष्टि से देखा, बल्कि वहां रहकर अनेक ग्रंथों की रचना भी की। साल 1927 के दौरान राहुल सांकृत्यायन श्रीलंका गए थे, जहाँ बौद्ध धर्म का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने वहां एक बौद्ध धर्मगुरु से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और अपना जन्म नाम केदार बदलकर राहुल रख लिया।
राहुल सांकृत्यायन की साहित्यिक रचनाएँ
राहुल सांकृत्यायन मुख्य रूप से एक लेखक थे, जिन्होंने कहानी संग्रह, यात्रा साहित्य, उपन्यास, जीवनी आदि की रचनाएँ कीं। उनके द्वारा रचित साहित्यिक रचनाओं के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।
कहानियाँ:
- सतमी के बच्चे
- वोल्गा से गंगा
- बहुरंगी मधुपुरी
- कनैला की कथा
उपन्यास:
- बाईसवीं सदी
- जीने के लिए
- सिंह सेनापति
- जय यौधेय
- भागो नहीं, दुनिया को बदलो
- मधुर स्वप्न
- राजस्थान निवास
- विस्मृत यात्री
- दिवोदास
- सप्तसिन्धु
यात्रा वृत्तांत:
- मेरी जीवन यात्रा
- मेरी लद्दाख यात्रा
- किन्नर प्रदेश में
- रूस में 25 मास
- यूरोप यात्रा
जीवनी:
- सरदार पृथ्वीसिंह
- नए भारत के नए नेता
- बचपन की स्मृतियाँ
- अतीत से वर्तमान
- स्टालिन
- लेनिन
- कार्ल मार्क्स
- माओ-त्से-तुंग
- घुमक्कड़ स्वामी
- असहयोग के मेरे साथी
- जिनका मैं कृतज्ञ
- वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली
- सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन
- कप्तान लाल
- सिंहल के वीर पुरुष
- महामानव बुद्ध
यात्रा साहित्य:
- लंका
- जापान
- इरान
- किन्नर देश की ओर
- चीन में क्या देखा
- मेरी लद्दाख यात्रा
- मेरी तिब्बत यात्रा
- तिब्बत में सवा वर्ष
- रूस में पच्चीस मास
- विश्व की रूपरेखा
- ल्हासा की ओर
- शांतिनिकेतन में
राहुल सांकृत्यायन की आत्मकथा:
- मेरी जीवन यात्रा
राहुल सांकृत्यायन के पुरस्कार और सम्मान
राहुल सांकृत्यायन को अपनी साहित्यिक रचनाओं के योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें मिले कुछ पुरस्कारों के बारे में हमने नीचे जानकारी दी है।
- साल 1963 में उन्हें भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- साल 1958 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया गया।
- उनके जन्म शताब्दी के अवसर पर, साल 1993 में भारतीय डाक विभाग द्वारा राहुल सांकृत्यायन की एक टिकट जारी करके उन्हें अनोखी श्रद्धांजलि दी गई।
राहुल सांकृत्यायन का निधन
राहुल सांकृत्यायन जी ने देश-विदेश की यात्रा करके अनेक साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। उनके द्वारा रचित साहित्य का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। आज केवल हमारे देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में राहुल सांकृत्यायन का नाम प्रचलित है।
14 अप्रैल 1963 को उनका निधन हुआ। अपनी 70 वर्ष की आयु में उन्होंने देश-विदेश की सैर की और हिंदी साहित्य को नई ऊंचाई पर ले जाने का कार्य किया। हिंदी साहित्य जगत हमेशा उनके साहित्यिक योगदान का ऋणी रहेगा। आज वे शारीरिक रूप में हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी साहित्यिक रचनाओं के रूप में वे आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच जीवित हैं।
FAQ’s
राहुल सांकृत्यायन का असली नाम क्या है?
राहुल सांकृत्यायन का असली नाम केदार पांडेय था।
राहुल सांकृत्यायन की आत्मकथा कौन सी है?
राहुल सांकृत्यायन की आत्मकथा का नाम “मेरी जीवन यात्रा” है।
राहुल सांकृत्यायन ने कौन सा धर्म अपनाया था?
वे ब्राह्मण परिवार से थे। श्रीलंका में यात्रा करते समय बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और अपना नाम केदार बदलकर राहुल रखा।
राहुल सांकृत्यायन कितने भाषा जानते थे?
राहुल सांकृत्यायन ने कई भाषाएँ सीखी थीं, जिनमें संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, अरबी, पाली, तिब्बती, चीनी, रूसी और जापानी शामिल हैं।
राहुल सांकृत्यायन को कौन सी उपाधि प्राप्त है?
राहुल सांकृत्यायन को हिंदी साहित्य जगत में “महापंडित” की उपाधि प्राप्त है।
सारांश
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