रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय – Ramnaresh Tripathi Ka Jivan Parichay

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नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम पूर्व छायावाद युग के कवि रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय देखने जा रहे हैं। हिंदी साहित्य जगत में साहित्यकारों की सूची में रामनरेश त्रिपाठी का नाम अग्रणी लिया जाता है। रामनरेश त्रिपाठी जी की कल्पक बुद्धि और सुंदर लेखनी से अनेक हिंदी साहित्य का सृजन हुआ। मुख्य रूप से वे एक कवि थे, लेकिन इसके अलावा उन्होंने मुक्तक, कहानी, उपन्यास, नाटक और व्यंग्य का भी सृजन किया।

रामनरेश जी को हिंदी साहित्य जगत में ग्राम गीतों का संकलन करने वाले प्रथम कवि के रूप में जाना जाता है। “स्वप्न” उनका प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है, जिसके लिए उन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ था। वे महात्मा गांधी जी के कार्य और उनके विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्होंने गांधी जी के ऊपर भी रचनाएँ कीं। इस महान हिंदी साहित्यकार की जीवनी के बारे में विस्तार से जानने के लिए, इस लेख में में दिया गया रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय ज़रूर पढ़ें।

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विवरणजानकारी
जन्मतिथि4 मार्च 1889
जन्मस्थानकोइरीपुर गांव, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश
पिता का नामरामदत्त त्रिपाठी
माता का नामसरस्वती
शिक्षाप्राथमिक शिक्षा – गांव के स्कूल से, हाईस्कूल – जौनपुर (कक्षा 9 तक)
स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारीगांधीजी के विचारों से प्रेरित, स्वतंत्रता संग्राम और किसान आंदोलन में सक्रिय
प्रमुख काव्यसंग्रह“पथिक,” “मिलन,” और “स्वप्न”
महत्वपूर्ण रचनाएँ“स्वप्न,” “कविता कौमुदी,” ग्राम गीत
प्रमुख पुरस्कारहिंदुस्तान अकादमी पुरस्कार (1929)
मृत्यु16 जनवरी 1962, इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज), उत्तर प्रदेश

रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय

पूर्व छायावाद युग के कवि रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च 1889 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कोइरीपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदत्त त्रिपाठी और माता का नाम सरस्वती था। उनके पिता, रामदत्त जी, बहुत धार्मिक थे और उन्होंने जीवनकाल में भारतीय सेना में सूबेदार के रूप में कार्य किया था। इसके कारण देशप्रेम और देशभक्ति का बीज उनके मन में बचपन से ही बोया गया था।

रामनरेश त्रिपाठी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के प्राथमिक स्कूल से पूरी की। उत्तीर्ण होने के बाद, उन्होंने जौनपुर जिले के एक हाईस्कूल में दाखिला लिया, लेकिन कुछ कारणवश उनकी शिक्षा अधूरी रह गई। उन्होंने कक्षा नौवीं तक ही पढ़ाई की और दसवीं कक्षा में पढ़ते समय शिक्षा बीच में छोड़ने का निर्णय लिया। पारिवारिक अनबन के कारण उन्होंने घर छोड़कर कलकत्ता (अब कोलकाता) आ गए।

रामनरेश त्रिपाठी का घर छोड़ने के बाद का सफर

मात्र अठारह साल की आयु में, कुछ अनबन की वजह से उन्होंने अपने परिवार को छोड़ दिया और कलकत्ता आ गए। लेकिन कलकत्ता में भी वे ज्यादा समय तक नहीं रहे। उस समय कलकत्ता में संक्रामक रोग तेजी से फैल रहा था और भारत पर ब्रिटिश सरकार की हुकूमत थी। लोगों को किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल रही थी, जिसके कारण बहुत से लोग इस रोग का शिकार होकर मर रहे थे। रामनरेश जी भी इस रोग से प्रभावित हो गए, और कोई उपचार मिलने की संभावना नहीं दिख रही थी।

हालांकि, उनके नसीब ने उनका साथ दिया। उन्हें एक सज्जन मिले जिन्होंने स्वास्थ्य सुधार के लिए उन्हें जयपुर जाने की सलाह दी। उनके कहने पर, वे जयपुर के फतेहपुर गांव में आ गए।

फतेहपुर में, उन्होंने रोगमुक्त होने के लिए सेठ रामवल्लभ नेवरिया के घर में आश्रय लिया। वहां रहते हुए वे कुछ ही समय में रोगमुक्त हो गए। सेठ रामवल्लभ ने उन्हें अपने घर पर रखा और अपने पुत्र की शिक्षा की जिम्मेदारी उनके ऊपर सौंप दी। त्रिपाठी जी ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई।

कविता करने की रुचि उन्हें बाल्यावस्था में ही हो गई थी। सेठ रामवल्लभ के घर पर रहते हुए, उन्होंने हिंदी और संस्कृत का अध्ययन भी किया और उनके अंदर का कवि जाग उठा। उन्होंने कविता करना प्रारंभ किया।

साल 1915 के दौरान, उन्होंने अपने ज्ञान और कौशल पर विश्वास करके फतेहपुर गांव को छोड़ दिया और प्रयाग आ गए। वहां रहते हुए उन्होंने अपना प्रकाशन व्यवसाय शुरू किया और स्वरचित रचनाओं का प्रकाशन और संपादन अपने प्रकाशन संग्रह से किया।

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रामनरेश त्रिपाठी का स्वतंत्रता संग्राम में सहभाग

रामनरेश त्रिपाठी जी को बचपन में ही देशप्रेम का बीज बोया गया था। उन्होंने केवल अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों के मन में राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति की भावना को जागरूक नहीं किया, बल्कि वे स्वयं स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भी थे।

उस समय गांधीजी के विचारों और कार्यों का प्रभाव पूरे देश में फैल रहा था। लोग बड़ी संख्या में उनसे जुड़ रहे थे। गांधीजी के कार्य और विचारों का गहरा प्रभाव रामनरेश जी पर भी पड़ा था। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम और किसान आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और इसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। महात्मा गांधीजी के कहने पर, वे दक्षिण भारत में हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री और हिंदी जगत के दूत के रूप में गए थे।

रामनरेश त्रिपाठी का साहित्यिक योगदान

रामनरेश त्रिपाठी हिंदी साहित्य जगत के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी कविताएँ देशप्रेम और राष्ट्रभावना को उजागर करती थीं। खड़ीबोली कवियों की सूची में उनका प्रमुख स्थान था। त्रिपाठी जी अपने साहित्यिक रचनाओं के प्रति बहुत गंभीर और मेहनती थे। उनके कड़ी मेहनत का एक उदाहरण यह है कि “कविता कौमुदी” का संकलन करने के लिए उन्होंने 16 वर्षों तक मेहनत की। इस संग्रह में उन्होंने ग्राम गीतों को एकत्रित किया। इसके लिए शादी जैसे कार्यक्रमों में वे रात-रात भर बैठकर गीत सुनते और लिखते थे। साल 1917 से लेकर 1933 तक इसे 6 भागों में प्रकाशित किया गया।

रामनरेश जी को कविताओं के अलावा निबंध, नाटक, आलोचना, कहानी और लोकगीतों की अच्छी समझ थी। उनकी रचनाओं में देशभक्ति, अध्यात्म और भारत के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन मिलता है। उनकी कई रचनाएँ उनके वास्तविक जीवन पर आधारित थीं। त्रिपाठी जी ने सृजन किए हुए काव्य को उन्होंने “पथिक,” “मिलन,” और “स्वप्न” इन काव्यसंग्रहों में संजोया है। उन्हें तुलसीदास जी की रचनाओं का गहरा प्रभाव पड़ा था। तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस को हर घर में पहुँचाने का उनका सपना था।

उनकी सभी रचनाओं में उन्होंने मधुर और मिठासभरे शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं में उपयोग किए गए शब्द बहुत ही सरल और प्रभावशाली बनाए। पढ़ते समय पाठकों को उनकी रचनाएँ आसानी से समझ आ सकती हैं। अपने काव्य में उन्होंने अपनी कल्पकता और बुद्धिमत्ता का सही ढंग से वर्णन किया है, यही कारण है कि उनकी रचनाएँ इतनी सुंदर और प्रभावशाली बन गईं।

रामनरेश त्रिपाठी की साहित्यिक रचनाएँ

रामनरेश त्रिपाठी हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, लेखक और नाटककार थे। उनकी साहित्यिक रचनाएं हिंदी साहित्य के विभिन्न विधाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। यहां उनकी कुछ प्रमुख साहित्यिक रचनाओं का उल्लेख किया गया है।

कविता संग्रह

  • मिलन (1918)
  • पथिक (1920)
  • मानसी (1927)
  • स्वप्न (1929)

मुक्तक

  • मारवाड़ी मनोरंजन
  • आर्य संगीत शतक
  • कविता-विनोद
  • क्या होम रूल लोगे

कहानी

  • तरकस
  • आखों देखी कहानियां
  • स्वपनों के चित्र
  • नखशिख
  • उन बच्चों का क्या हुआ..?
  • २१ अन्य कहानियाँ

उपन्यास

  • वीरांगना
  • वीरबाला
  • मारवाड़ी और पिशाचनी
  • सुभद्रा और लक्ष्मी

नाटक

  • जयंत
  • प्रेमलोक
  • वफ़ाती चाचा
  • अजनबी
  • पैसा परमेश्वर
  • बा और बापू
  • कन्या का तपोवन

व्यंग्य

  • दिमाग़ी ऐयाशी
  • स्वप्नों के चित्र

अनुवाद

  • इतना तो जानो
  • कौन जागता है

संपादित पुस्तकें

  • रामचरितमानस
  • कविता कौमुदी (६ खंडों में)

रामनरेश त्रिपाठी की रचनाओं के कुछ अंश

हे प्रभो! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥
— रामनरेश त्रिपाठी

यदि रक्त बूंद भर भी होगा कहीं बदन में
नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में
यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में
हर एक सांस पर हम आगे बढ़े चलेंगे
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे।
— रामनरेश त्रिपाठी

अतुलनीय जिनके प्रताप का,
साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर
घूम घूम कर देख चुका है,
जिनकी निर्मल किर्ति निशाकर।
— रामनरेश त्रिपाठी


जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है
जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है?
मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है
सुख-स्वर्ग-सा जहां है वह देश कौन-सा है?
— रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी के पुरस्कार और सम्मान

  • स्वप्न इस काव्यसंग्रह की रचना उन्होंने 1929 में की थी। इस रचना के लिए उन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार प्रदान किया गया था।
  • उनकी मृत्यु के बाद उनकी यादों को ताजा रखने के लिए “पंडित राम नरेश त्रिपाठी सभागार” की स्थापना की गई थी।

रामनरेश त्रिपाठी का निधन

पूर्व छायावादी युग के महान कवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी का निधन 16 जनवरी 1962 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में हुआ। हिंदी साहित्य जगत के इस महान रचनाकार ने दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनकी रचनाओं के कारण वे आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच जीवित हैं। कड़े संघर्ष के बीच अपने जीवनकाल में हिंदी साहित्य को एक नई ऊँचाई पर पहुंचाने का काम उन्होंने किया। हिंदी साहित्य जगत हमेशा उनका ऋणी रहेगा।

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FAQ’s

  • रामनरेश त्रिपाठी कौन से युग के कवि हैं?

    रामनरेश त्रिपाठी प्रारंभिक आधुनिक युग के कवि हैं। इसे पूर्व छायावादी युग के नाम से भी जाना जाता है।

  • स्वप्न में किसकी रचना है?

    स्वप्न रामनरेश त्रिपाठी की रचना है।

  • वीरांगना उपन्यास के लेखक कौन है?

    वीरांगना उपन्यास के लेखक रामनरेश त्रिपाठी हैं, और यह उपन्यास १९२२ में प्रकाशित हुआ था।

  • खंडकाव्य पथिक किसकी रचना है?

    खंडकाव्य पथिक रामनरेश त्रिपाठी की रचना है, जो 1920 में प्रकाशित हुआ था।

  • रामनरेश त्रिपाठी की कौन सी भाषा थी?

    रामनरेश त्रिपाठी की मूल भाषा हिंदी थी। वे हिंदी साहित्य में प्रमुख कवि और लेखक थे, और उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य के प्रारंभिक आधुनिक युग में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

सारांश

हमें विश्वास है कि इस लेख में दिया गया रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय आपको जरूर पसंद आया होगा। इस महत्वपूर्ण लेख को आप अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ शेयर करना न भूलें, ताकि वे भी रामनरेश त्रिपाठी जी के साहित्य और उनके महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जान सकें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के विभिन्न लेख मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। वहाँ आपको रोजाना अपडेट मिलते रहेंगे। धन्यवाद।

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