संत रविदास का जीवन परिचय – Sant Ravidas Ka Jivan Parichay

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

दोस्तों, इस लेख में हम संत रविदास का जीवन परिचय प्रस्तुत करने जा रहे हैं। संत रविदास जी का नाम आपने अवश्य सुना होगा। वह भारत के महान संतों में से एक हैं। 15-16वीं शताब्दी के दौरान उन्होंने अपनी रचनाओ के माध्यम से समाज सुधार का महत्वपूर्ण कार्य किया। निर्गुण भक्ति धारा में उनका प्रमुख स्थान है। उन्होंने निर्गुण ईश्वर की उपासना का महत्व समाज में फैलाकर जाति-पाति की सीमाओं को तोड़ने का प्रयास किया और समाज में भाईचारा, भक्ति, एकता, और शांति का संदेश दिया।

संत रविदास के अनुयायियों में मीरा बाई, संत सेन, संत धन्ना, और राजा पिपा जैसे हजारों शिष्य शामिल थे, जिन्होंने उनके द्वारा दिया गया ज्ञान समाज में फैलाने का कार्य किया। आज भी उनके लाखों अनुयायी भारत में उनके कार्य को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इस लेख में दिया गया संत रविदास का जीवन परिचय आपको जरूर पढ़ना चाहिए ताकि आप उनके जीवन, उनके उपदेशों और उनके द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों के बारे में गहराई से समझ सकें। उनके विचार और सिद्धांत आज भी हमारे समाज के लिए प्रेरणादायक हैं और उनसे हमें समता, भक्ति, और मानवता का सच्चा अर्थ जानने का अवसर मिलता है।

रसखान का जीवन परिचय – Raskhan Ka Jivan Parichay 

श्रेणीजानकारी
जन्म तिथिमाघ पूर्णिमा, 1376-77 ईस्वी, विक्रम संवत माघ सुदी 15, 1433 (विवादित)
जन्म स्थानसीर गोबर्धनपुर गांव, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
माता का नामकलसा देवी
पिता का नामबाबा संतोख दास
जातिचमार
शिक्षापंडित शारदा नंद की पाठशाला में
गुरुपंडित शारदा नंद (अध्यात्मिक गुरु: कुछ विद्वान संत कबीर को मानते हैं)
प्रमुख भक्तियाँराम, कृष्ण, और निर्गुण ईश्वर
विवाहलोना देवी से
पुत्रविजयदास
प्रमुख शिष्यमीरा बाई, संत सेन, संत धन्ना, राजा पिपा
सामाजिक योगदानऊँच-नीच और छुआछूत का विरोध, समाज में समानता और शांति का प्रसार
मृत्युलगभग 1520 ईस्वी
उम्र120 से 126 साल

संत रविदास का जीवन परिचय

संत रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376-77 ईस्वी के आस-पास उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म विक्रम संवत माघ सुदी 15, 1433 में हुआ। जिन्हें हम संत रैदास के नाम से भी जानते हैं। उनके पिता का नाम बाबा संतोख दास और माता का नाम कलसा देवी था।

उस समय लोगों की जाति उनके कार्य के आधार पर तय की जाती थी। कहा जाता है कि उनके पिता मल साम्राज्य के राजा नगर में सरपंच पद पर थे और जूते बनाना और उनकी मरम्मत करना उनका पारिवारिक व्यवसाय था। इस व्यवसाय के कारण उन्हें चमार जाति का माना जाता था।

संत रविदास बचपन से ही होशियार और ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाले थे। उनके आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति ने समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए, जिससे जाति-पाति की सीमाओं को तोड़ने में मदद मिली।

संत रविदास जी की शिक्षा

रविदास जी के माता-पिता ने उन्हें पंडित शारदा नंद की पाठशाला में दाखिल किया, जहाँ उन्होंने कुछ समय तक शिक्षा प्राप्त की। उस समय समाज में ऊँच-नीच और जाति भेद का विष फैला हुआ था। चमार जाति के होने के कारण रविदास जी को उच्च जाति के लोगों ने पाठशाला में आने से रोक दिया। लेकिन पंडित शारदा नंद रविदास जी की प्रतिभा और ऊर्जा को समझते थे। उन्होंने रविदास जी को अपने घर पर शिक्षा देना प्रारंभ किया।

रविदास जी बचपन से ही होशियार थे और गुरु द्वारा सिखाए गए ज्ञान को जल्दी समझते और आचरण में लाते थे। शारदा नंद जी को यह ज्ञात था कि इस बालक में दिव्य शक्ति है और आगे चलकर यह समाज सुधार का बड़ा कार्य करेगा।

पंडित शारदा नंद अपने घर पर रविदास जी के साथ अपने बेटे को भी शिक्षा देते थे। रविदास जी और उनके बेटे के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी। दोनों खाली समय में साथ खेलते थे। एक दिन, जब वे छुपन-छुपाई खेल रहे थे, रात हो गई और उन्होंने अगले दिन खेल को जारी रखने का निश्चय किया। लेकिन अगले दिन जब रविदास जी खेलने के लिए आए, तो उन्हें पता चला कि उनका मित्र चल बसा है। यह सुनकर रविदास जी बहुत दुखी हुए।

शारदा नंद जी जानते थे कि रविदास जी के पास अलौकिक शक्तियां हैं। वे रविदास जी को अपने बेटे के पास लेकर गये। रविदास जी ने उस मृत शरीर के पास जाकर कहा, “उठो मित्र, यह सोने का समय नहीं है। चलो, हमें कल का अधूरा खेल खेलना है।” रविदास जी के यह कहते ही उनका दोस्त उठ खड़ा हुआ। यह देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।

नागार्जुन का जीवन परिचय – Nagarjun Ka Jivan Parichay

संत रविदास जी का वैवाहिक जीवन

रविदास जी ने अपना पूरा जीवन ईश्वर के प्रति समर्पित कर दिया था, जिससे उनके परिवार के लोग चिंतित होने लगे थे। उन्हें अपने घरेलू व्यवसाय में कोई रुचि नहीं थी। परिवारवालों ने सोचा कि अगर उनकी शादी हो जाए तो शायद वे इस व्यवसाय में ध्यान देंगे, इसलिए उनकी शादी लोना देवी से कर दी गई। शादी के बाद उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम विजयदास रखा गया।

शादी के बाद भी रविदास जी में कोई बदलाव नहीं आया। ईश्वर के प्रति उनकी भक्ति और समर्पण जस का तस बना रहा, जिससे परिवारवालों ने उन्हें अलग रहने को कहा। वे अपने ही घर के पीछे रहने लगे। इन सबके बावजूद, रविदास जी ने समाज सुधार और प्रबोधन का कार्य नहीं छोड़ा। उनका जीवन समाज में भक्ति, एकता और शांति का संदेश फैलाने में समर्पित रहा।

संत रविदास जी का अध्यात्मिक जीवन

संत रविदास जी के आध्यात्मिक गुरु के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। कहा जाता है कि उन्हें सीधे ईश्वर से ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कुछ विद्वानों का मानना है कि उनके गुरु संत कबीर थे, क्योंकि कबीर जी का जीवनकाल भी 15-16वीं शताब्दी का था।

संत रविदास राम और कृष्ण के निस्सीम भक्त थे, यह उनकी रचनाओं से स्पष्ट होता है। उनकी रचनाएँ ज्यादातर राम, कृष्ण, और निर्गुण ईश्वर पर आधारित थीं। उस समय समाज में जाति भेद काफी प्रचलित था, जिसे मिटाकर लोगों को ज्ञान प्रदान कर, समाज में समानता, एकता और शांति का संदेश फैलाना उनका मुख्य उद्देश्य था।

उन्होंने निर्गुण सम्प्रदाय का प्रसार और प्रचार किया। धीरे-धीरे हजारों लोग उनसे जुड़ गए और उनके अनुयायी बन गए। इनमें मीरा बाई, संत सेन, संत धन्ना और राजा पिपा जैसे शिष्य शामिल थे, जिन्होंने उनसे दीक्षा लेकर उनके कार्य को आगे बढ़ाया। संत रविदास जी की शिष्या मीराबाई के जीवन परिचय में उनके चमत्कारों के बारे में जान सकते हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि संत रविदास कितने महान थे।

संत रविदास जी का सामाजिक कार्य

उस समय समाज में ऊँच-नीच और छुआछूत का प्रचलन बहुत अधिक हो गया था। निचली जातियों के लोगों के लिए बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया था। उन्हें मंदिरों में प्रवेश करने, शिक्षा प्राप्त करने और दिन के समय घर से बाहर निकलने में कठिनाई होती थी। उच्च जाति के लोग उनकी छाया तक से बचने के लिए स्नान करते थे। इस विदारक स्थिति को जड़ से मिटाने के प्रयास संत रविदास जी ने किए।

समाज में व्याप्त इस विषमता को समाप्त करने के उनके प्रयासों को समाज के विभिन्न घटकों से विरोध भी मिला, लेकिन वे अपने कार्य में दृढ़ रहे। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने समाज में जागरूकता और सुधार का कार्य किया। छुआछूत का विरोध करके सभी में एकता और शांति बनाए रखने का प्रयास किया। वे हमेशा कहते थे कि भगवान एक ही है और उसी ने हम सभी को बनाया है।

उनकी रचनाओं के कई अंश गुरु ग्रंथ साहिब में मिलते हैं। सिख संप्रदाय के पाँचवें गुरु अर्जन देव जी ने उनकी रचनाओं को इस ग्रंथ में शामिल किया था। संत रविदास जी ने अपने जीवन और शिक्षाओं के माध्यम से समाज में समानता, भक्ति, और शांति का संदेश फैलाया।

संत रविदास जी की रचनाओं के कुछ अंश

  1. “प्रभुजी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।”
  • इसका अर्थ है: “हे प्रभु, आप चंदन हैं और हम पानी हैं, जिसमें आपकी सुगंध हर जगह फैली हुई है।”
  1. “मन चंगा तो कठौती में गंगा।”
  • इसका अर्थ है: “यदि मन पवित्र है तो हर जगह गंगा है।”
  1. “जो हरि को हरी से जोड़त है, तिसका हरि हरि सब करे।”
  • इसका अर्थ है: “जो व्यक्ति भगवान को भगवान से जोड़ता है, उसके सभी कार्य भगवान द्वारा पूर्ण होते हैं।”
  1. “ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न। छोट बड़े सब सम बसे, रैदास रहे प्रसन्न।”
  • इसका अर्थ है: “मैं ऐसा राज्य चाहता हूं, जहां सभी को भोजन मिले। छोटे-बड़े सभी समान रूप से रहें और संत रविदास प्रसन्न रहें।”
  1. “प्रभुजी तुम हमरी बिनती मानो, हमरे दुख संताप मिटानो।”
  • इसका अर्थ है: “हे प्रभु, हमारी प्रार्थना स्वीकार करो और हमारे दुखों को दूर करो।”

संत रविदास जी की रचनाएँ सरल भाषा में गहरी आध्यात्मिकता और सामाजिक संदेशों को व्यक्त करती हैं। उनकी कविताओं और भजनों ने समाज में एकता, समानता, और भक्ति का संदेश फैलाया।

संत रविदास जी का मृत्यू

संत रविदास जी की मृत्यु के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि उनकी मृत्यु 1520 ईस्वी के आसपास हुई थी। कहा जाता है कि वे 120 से 126 साल तक जीवित रहे। संत रविदास जी ने समाज में एकता, भाईचारा, और निर्गुण भक्ति का संदेश देकर समाज में जागरूकता और सुधार का कार्य किया।

आज भी भारत में उनके लाखों अनुयायी हैं, जो उनके दिए गए विचारों और शिक्षाओं पर चल रहे हैं। संत रविदास जी का योगदान और उनका संदेश आज भी समाज में प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय – Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay

सारांश

इस लेख में हमने संत रविदास का जीवन परिचय के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है। हमें विश्वास है कि यह लेख आपको जरूर पसंद आया होगा। अगर आपको जानकारी अच्छी लगी हो, तो कृपया इस लेख को अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ जरूर शेयर करें। हमारी वेबसाइट पर आपको इस तरह के विभिन्न लेख देखने को मिलेंगे। अगर आप हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। धन्यवाद।

FAQ’s

  • गुरु रविदास जी के गुरु कौन थे?

    संत रविदास जी के गुरु के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है। कुछ विद्वान मानते हैं कि उन्हें सीधे ईश्वर से ज्ञान प्राप्त हुआ था, जबकि अन्य का मानना है कि उनके गुरु संत कबीर थे।

  • रविदास जी का गांव कौन सा है?

    संत रविदास जी का गांव गोवर्धनपुर है, जो उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी के पास स्थित है।

  • रविदास के आराध्य देव कौन थे?

    संत रविदास जी के आराध्य देव राम और कृष्ण थे। उनकी रचनाओं में राम, कृष्ण और निर्गुण ईश्वर के प्रति भक्ति का उल्लेख मिलता है।

  • मीरा बाई किसकी शिष्या थी?

    मीरा बाई संत रविदास जी की शिष्या थीं। उन्होंने संत रविदास जी से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया और उनके उपदेशों से प्रभावित होकर भक्ति मार्ग पर चल पड़ीं।

  • संत रविदास के गुरु भाई कौन थे?

    संत रविदास जी के गुरु भाई संत कबीर जी थे। दोनों ने एक ही समय में निर्गुण भक्ति की परंपरा को आगे बढ़ाया और सामाजिक सुधार एवं आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने का कार्य किया।

  • रविदास जी की जाति क्या थी?

    संत रविदास जी की जाति चमार थी। वे एक मोची परिवार में जन्मे थे और उनके परिवार का पारंपरिक व्यवसाय जूते बनाना और उनकी मरम्मत करना था।

Share Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *