मीरा बाई का जीवन परिचय – Mirabai Ka Jivan Parichay

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“कृष्ण मुरारी बंसिवाले, मन में बसी है तेरी सूरत प्यारी, प्रेम में डूबी मीरा दीवानी, चरणों में तेरे है झुकी सिरजरी” – मीरा मीरा बाई इस नाम से आप सभी लोग परिचित हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित किया था। इस लेख में हमने भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और प्यार में डूबने वाली एक असाधारण कृष्णभक्त और कवि मीरा बाई का जीवन परिचय दिया है। उनकी जीवनी के बारे में जानने के लिए यह लेख पूरा जरूर पढ़ें।

मीरा बाई का जीवन परिचय

मीराबाई का जन्म लगभग 1498 ई. के आसपास राजस्थान में स्थित पाली जिले के कुड़की नामक गाँव में हुआ था। मीराबाई के पिता का नाम रतन सिंह राठौड़ था, जो मेड़ता के राजा थे। उनके बचपन में ही उनकी माँ का देहांत हो गया था, जिसके बाद वे अपने दादाजी के पास रहने लगीं थी।

मीरा की प्रारंभिक शिक्षा उनके दादाजी के पास ही हुई थी। दादाजी की धार्मिक और उदार प्रवृत्ति का प्रभाव मीरा पर पड़ने लगा था। मीरा बचपन से ही भगवान श्री कृष्ण की दीवानी थीं। कृष्ण भक्ति का रंग उस पर बचपन से ऐसा चढ़ा था कि 8 साल की उम्र में उन्होंने श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था।

प्रमुख जानकारीविवरण
जन्मलगभग 1498 ई. के आसपास, राजस्थान के पाली जिले के कुड़की गाँव में
पिता का नामरतन सिंह राठौड़, मेड़ता के राजा
माँ का देहांतउनके बचपन में ही हुआ, जिसके बाद वे अपने दादाजी के पास रहने लगीं
प्रारंभिक शिक्षाउनके दादाजी के पास ही हुई
धार्मिक प्रवृत्तिउनके दादाजी की धार्मिक और उदार प्रवृत्ति का प्रभाव
भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेमबचपन से ही उन्होंने श्री कृष्ण के प्रति अपना अद्भुत प्रेम दिखाया

मीरा बाई का वैवाहिक जीवन

चित्तौड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र और उत्तराधिकारी भोजराज के साथ उनका विवाह संपन्न हुआ। 1518 के दौरान विभिन्न स्थानीय राजाओं का शासन था। एक युद्ध में मीरा के पति भोजराज घायल हो गए। घाव गहरा था। इस घटना के दो साल बाद 1521 में पति भोजराज का देहांत हो गया। उस वक्त सती प्रथा थी लेकिन मीरा ने पति के साथ सती जाने के लिए साफ इनकार कर दिया। इसके बावजूद उनकी कृष्ण भक्ति में कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि दिन-ब-दिन उनकी भक्ति बढ़ती गई।

वे कृष्ण भक्ति में इतनी तल्लीन हो जातीं कि श्री कृष्ण के भजन गाते-गाते उनकी मूर्ति के सामने नाचने लगतीं। उन्होंने लोकलाज छोड़कर अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में व्यतीत किया। वे कृष्ण को ही अपना सखा मानती थीं। मीरा की इन हरकतों की वजह से ससुराल वाले तंग आ गए थे। उन्होंने मीरा को कई बार मारने की कोशिश की लेकिन मीरा उसमें से बच जातीं।

मीरा की कुछ कहानियों में ऐसा बताया गया है कि मीरा को मारने के लिए उनके ससुराल के लोग विष का प्याला भेजते थे, लेकिन वह विष अमृत हो जाता था। मारने को साँप छोड़ा तो वह आभूषण हो जाता था।

मीरा बाई के गुरु

मीराबाई के आध्यात्मिक गुरु संत रविदास थे, जिन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता था। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्त थीं और वे भगवान श्री कृष्ण के अलावा किसी और भगवान को नहीं मानती थीं। मीराबाई ने संत रविदास से दीक्षा ली और उन्हें अपने गुरु का स्थान दिया। संत रविदास ने मीराबाई को भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

मीरा बाई की भाषा शैली

मीरा के काव्य उनके अंदर के कृष्ण प्रेम को उनके शब्दों से प्रकट करते हैं। उनकी अधिकांश रचनाएँ ब्रज भाषा में थीं, लेकिन उन पर राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती और पश्चिम हिंदी का भी प्रभाव था। उनकी काव्य की भाषा में बहुत ही मधुरता थी। लेकिन दिखावा करना उनका उद्देश्य नहीं था, बल्कि अपने हृदय से निकले शब्दों को उन्होंने अपनी रचनाओं में सहेजा था।

मीरा बाई के काव्य रचनाएँ

मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्त होने के कारण उन्होंने सभी रचनाएँ कृष्ण भक्ति पर आधारित बनाईं। कृष्ण प्रेम से ओत-प्रोत भरी ये मधुर रचनाएँ पढ़ने के बाद उनकी अंदर की मिठास समझ आती है। अधिकांश रचनाएँ आज भी पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हैं। उनकी कई रचनाएँ आज भी गाई जाती हैं। उसमें से कुछ रचनाएँ हमने नीचे दी हैं।

  • मेरो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
  • पद बंदनी
  • मैं तो प्रेम डीठ गोविंद की
  • चार बागी हैं मेरा माईं
  • उड़ जाऊं रे बुंदेली

मीरा बाई के भजन

मीरा बाई के यह भजन और पद उनकी कृष्ण भक्ति, प्रेम और भक्ति के रंग को प्रस्तुत करते है। उनके कुछ प्रमुख भजन के नाम हमने नीचे दिये है।

  • बरसों बाद बावरी बालमा
  • सावरे मोहन गिरधरी
  • मीरा बढ़ायो राधा प्यारी
  • बालम नन्ही छेड़ा जाई
  • म्हारी आतमा तुम बिना आधारो नहीं जात
  • थारो रंगीलो रूप मोहे श्याम रंग दे
  • पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
  • मीरा के प्रभु गिरधर नागरी
  • बिनती सुनो मेरी मीरा नाथ दासी
  • चलो री चलो री सावरिया

मीराबाई के कुछ प्रसिद्ध भजनों में से एक भजन हमने नीचे दिया है। आपको उनके और भजन देखने हो तो आप उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर देख सकते हैं।

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो,
वस्तु अमोलक दी मेरी सतगुरू बिना नहीं मिलायो।

राम रतन धन पायो,
वस्तु अमोलक दी मेरी सतगुरू बिना नहीं मिलायो॥

कहे मीरा बापूरो,
एकलिंग जानत है सभी बात।

राम रतन धन पायो,
वस्तु अमोलक दी मेरी सतगुरू बिना नहीं मिलायो॥

मीरा बाई की जीवन मे हुये चमत्कार

मीरा बाई के भक्तिमय जीवन में बहुत से चमत्कार हुए, जो उनकी सच्ची भक्ति को प्रकट करते हैं। इसमें से कुछ चमत्कार नीचे दिए गए हैं:

  • कृष्ण मूर्ति में विलीन: किसी कथानक के अनुसार, मीरा बाई की मृत्यु के समय उन्होंने वृंदावन या द्वारका में रहा था। उनका कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के समय वे भगवान कृष्ण मूर्ति में विलीन हो गईं।
  • पशुपोषणी मंदिर: कुछ कथाओं में लिखा है कि भगवान ने मीरा को पशुपोषणी मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दी थी और वहां उन्हें अपने अंतिम क्षण तक रहने का आशीर्वाद दिया था।
  • कांचन मणि का आशीर्वाद: एक कथा के अनुसार, मीरा ने भगवान से कांचन मणि की मांग की और यह दुर्लभ मणि भगवान ने उन्हें आशीर्वाद रूप में प्रदान की थी।
  • वाणी की आशीर्वाद: मीरा की काव्य वाणी इतनी मधुर थी कि लोग मानते थे कि उनकी वाणी में भगवान ही उनके मुख से गा रहे हैं।

मृत्यु

अंत में ससुराल वालों से परेशान होकर मीरा ने श्री कृष्ण के वृंदावन जाने का फैसला किया। वहां कुछ साल रहने के बाद उन्होंने अपना अंतिम समय द्वारका में बिताया। सन् 1546 ई. के दौरान उनका निधन हुआ। ऐसा कहा जाता है कि मीरा का निधन काफी चमत्कारिक था। निधन के समय वह कृष्ण मूर्ति में विलीन हो गईं। लेकिन यह सिर्फ किवदंती है जो लोगों द्वारा बताई जाती है।

सारांश

इस लेख में हमने मीरा बाई का जीवन परिचय विस्तार से बताने की कोशिश की है। आशा है कि यह लेख आपको जरूर पसंद आया होगा। इस लेख को अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ शेयर करना न भूलें। यदि इस लेख में कोई त्रुटि हो, तो आप हमें मेल के माध्यम से बता सकते हैं। हम इसमें सुधार लाने का प्रयास करेंगे। यदि आप इस तरह के अन्य लेख देखना चाहते हैं और हमसे जुड़ना चाहते हैं, तो आप हमसे व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं।

FAQ’s

  • मीराबाई की शादी हुई थी क्या?

    उनका विवाह 1516 में राणा भोजराज से हुआ था, जो चित्तौड़ के राणा सांगा के पुत्र थे।

  • मीराबाई की जाति क्या थी?

    मीराबाई की जाति राजपूत थी। वे मेवाड़ के राठौड़ वंश की थीं ।

  • मीरा वृंदावन क्यों गई?

    वह अपने ससुराल में कई समस्याओं का सामना कर रही थी, मीराबाई ने वृंदावन जाने का निर्णय अपने जीवन के अंतिम वर्षों में किया। उन्होंने अपने जीवन को भगवान श्री कृष्ण के समर्पित कर दिया था और वृंदावन में उन्हें अपने प्रिय कृष्ण के समीप रहने की इच्छा थी

  • भोजराज का विवाह मीराबाई से कब हुआ?

    मीराबाई और भोजराज का विवाह 1516 में हुआ था।

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