सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय – Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay

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नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय (Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay) देखने जा रहें है। जो लोग हिंदी साहित्य से जुड़े हैं, उन्हें सुमित्रानंदन पंत का नाम जरूर मालूम होगा। लेकिन इस युवा पीढ़ी के लिए यह नाम अनसुना होगा। इसी नाम और उनके हिंदी साहित्य में दिए योगदान को उजागर करने हेतु हमने यह लेख आपके लिए प्रस्तुत किया है।

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय । Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay

छायावादी युग के चार स्तंभ महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और सुमित्रानंदन पंत हैं। 20वीं शताब्दी में हिंदी साहित्य को विश्व में अलग पहचान देने का काम पंत ने किया। बता दें कि 15 सितंबर 1959 को भारत में टेलीविजन की शुरुआत हुई थी और इसका भारतीय नामकरण ‘दूरदर्शन’ सुमित्रानंदन पंत द्वारा किया गया था। इस लेख में हम उनके जन्म से लेकर हिंदी साहित्य में उनके योगदान, साहित्यिक उपलब्धियों और उनके देहांत तक का पूरा परिचय देने वाले हैं।

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जन्म और परिवार

प्रकृति के सुकुमार कवि के नाम से जाने जाने वाले सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 में उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की गरुड़ तहसील के कौसानी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगादत्त पंत और माता का नाम सरस्वती देवी पंत था। सुमित्रानंदन अपने माता-पिता की आठवीं संतान थे। अपने सात भाई-बहनों में सबसे छोटे सुमित्रानंदन थे। उनके जन्म के कुछ समय बाद उनकी माता का देहांत हो गया। पंत का बचपन उनकी दादी ने संभाला। बता दें कि उनका बचपन का नाम गुसाई दत्त था। सुमित्रानंदन पंत यह नाम उन्हें हाईस्कूल में रखा गया था।

विवरणजानकारी
जन्म के समय नामगुसाई दत्त
नया नाम (हाईस्कूल में)सुमित्रानंदन पंत
जन्म तारीख20 मई 1900
जन्म स्थानकौसानी, गरुड़ तहसील, बागेश्वर जिला, उत्तराखंड
पिता का नामगंगादत्त पंत
माता का नामसरस्वती देवी पंत
भाई-बहनों की संख्यासात
माता का देहांतजन्म के कुछ समय बाद

शिक्षा

सुमित्रानंदन पंत की प्राथमिक शिक्षा उनके जन्मगांव कौसानी में हुई। इसके बाद, आगे की पढ़ाई के लिए वे वाराणसी चले गए। वहाँ जय नारायण हाईस्कूल में उन्होंने दाखिला लिया और उनकी आगे की शिक्षा शुरू हुई। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद, साल 1918 में पंत इलाहाबाद (अब प्रयागराज) आ गए। वहाँ म्योर सेंट्रल कॉलेज में इंटरमीडिएट (12वीं कक्षा) में प्रवेश लिया। इस कॉलेज में उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की।

कॉलेज में उनका नाट्य और साहित्यिक सम्मेलनों में सहभाग था। साल 1921 में उन्होंने इंटरमीडिएट (12वीं कक्षा) सफलता पूर्वक उत्तीर्ण की और उसी कॉलेज से बीए का अध्ययन शुरू किया, लेकिन बीए की पढ़ाई उन्हें बीच में ही छोड़नी पड़ी क्योंकि उस समय उनकी बड़ी बहन का देहांत हो गया था।

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स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागिता

उस दौर में भारत देश ब्रिटिश सरकार के अधीन था। साल 1920 के अंत में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई थी। वर्ष 1921 आते-आते यह आंदोलन पूरे देश में हवा की तरह फैल गया था। उस समय के नौजवान देश को आजादी दिलाने के लिए इस आंदोलन में अपना सक्रिय सहभाग ले रहे थे।

सुमित्रानंदन पंत तब इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में म्योर सेंट्रल कॉलेज में पढ़ रहे थे। वे भी असहयोग आंदोलन से प्रभावित हो गए और बाकी नौजवानों की तरह उन्होंने इस आंदोलन में अपना सक्रिय भाग लिया। असहयोग आंदोलन से प्रेरणा लेकर उन्होंने राष्ट्रप्रेम पर आधारित कविताएँ और गीत लिखे। उन पर गांधीजी के विचारों का गहरा प्रभाव था। कॉलेज छोड़ने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन देश प्रेम और साहित्य के प्रति समर्पित किया।

सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक यात्रा

सुमित्रानंदन पंत ने अपनी साहित्यिक यात्रा का प्रारंभ बहुत ही कम उम्र में किया था। जब वे 18 साल के थे, तब उन्होंने साहित्यिक जगत में अपना कदम रखा और आगे चलकर साहित्य जगत में अपना नाम रोशन किया। आज उनका नाम छायावाद के प्रमुख चार स्तंभों में लिया जाता है। उनकी कविताएँ विभिन्न विषयों पर आधारित थीं, जिनमें मुख्य रूप से प्रकृति, प्रेम, दर्शन, राष्ट्रवाद और अन्य सामाजिक मुद्दे शामिल थे।

उन्होंने 6 दशकों से अधिक समय हिंदी साहित्य के लिए समर्पित किया। इस लंबे कार्यकाल में उन्होंने अनेक कृतियाँ रचीं। उनकी काव्य यात्रा में तीन चरण देखे जाते हैं:

  1. पहला चरण: छायावाद – इसमें प्रकृति, सौंदर्य, कल्पना और भावनाओं पर आधारित काव्य।
  2. दूसरा चरण: प्रगतिवाद – इसमें सामाजिक मुद्दे और समाज परिवर्तन के मुद्दे पर आधारित काव्य।
  3. तीसरा चरण: अध्यात्मवाद – इसमें आध्यात्मिक जीवन और जीवन के अर्थ पर आधारित काव्य।

बता दें कि ये चरण स्पष्ट रूप से विभाजित नहीं हैं, लेकिन उनकी काव्य रचनाओं में इन चरणों की विशेषताएँ आपको देखने को मिलेंगी।

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सुमित्रानंदन पंत की काव्य-रचनाएं

हिंदी साहित्य के महान कवि में से सुमित्रानंदन पंत एक थे। उन्होंने उनके साहित्यिक जीवन के दौरान अनेक कविताएं लिखीं, जिन्हें लिखने के उनके विभिन्न चरण थे। उनमें छायावाद काल, प्रगतिवाद काल और अध्यात्मवाद काल शामिल था। तीनों चरणों में उन्होंने बहुत सारी कविताएं लिखीं। उनके कुछ काव्य संग्रहों के नाम हमने नीचे दिए हैं।

छायावाद काल (1918-1936)

  • वीणा
  • पल्लव
  • ग्राम्या
  • इंद्रजाल

प्रगतिवाद काल (1936-1950)

  • गुंजन
  • स्वर्णकिरण
  • युगांत
  • लोकायतन

अध्यात्मवाद काल (1950-1977)

  • चिदंबरा
  • कला और बूढ़ा चाँद
  • सत्यकाम
  • आँसू और फूल

अन्य उल्लेखनीय रचनाएं

  • पतझड़ के पत्ते
  • कला और जीवन
  • गीतांजलि

सुमित्रानंदन पंत की रचनाओं की भाषा शैली बेहद सुंदर है। आप उनके किसी भी काव्य संग्रह को पढ़ोगे तो आपको ध्यान में आएगा कि उनकी कल्पना अद्भुत थी। हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में उनका जो योगदान है, उसे कभी भी नकारा नहीं जा सकता।

सुमित्रानंदन पंत और कहानी-संग्रह

बता दूं कि सुमित्रानंदन पंत की मुख्य पहचान एक कवि के रूप में है। लेकिन उनके साहित्यिक जीवन में उन्होंने कुछ कहानियां भी लिखी हैं। उसमें से कुछ महत्वपूर्ण कहानियों का नाम हमने नीचे दिया है:

  • ताजमहल
  • सोने की चिड़िया
  • विक्रमादित्य की बेताल
  • अतिथि

सुमित्रानंदन पंत की कहानियों में भाषा की मिठास और उनकी व्यापक कल्पना इसके सिवाय, भावनाओं को उन्होंने अपनी कथाओं में अच्छी तरह से घोल दिया है, ताकि पढ़ने वालों को यह कथा नहीं तो हकीकत लगे।

सुमित्रानंदन पंत की नाट्य-कृतियाँ

सुमित्रानंदन पंत कवि के अलावा एक नाट्य लेखक भी थे। उनकी कुछ प्रमुख नाट्य-कृतियाँ नीचे हमने दि है।

  • कंचन
  • रत्नावली
  • अभिज्ञानशाकुन्तलम्
  • सिद्धार्थ
  • प्रलय

उनके नाटक के विषय सामाजिक मुद्दों और मानवीय मूल्यों पर आधारित थे। उनकी कल्पना और भाषा सौंदर्य बेहद ही सुंदर थे।

पुरस्कार एवं सन्मान

सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के कवि थे। छायावाद के चार स्तंभों में से एक नाम उनका आता है। उन्होंने 6 दशकों से ज्यादा समय तक हिंदी साहित्य के लिए अपना योगदान दिया। उनके इस योगदान के लिए सुमित्रानंदन पंत को विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें मिले कुछ पुरस्कार नीचे दिए गए हैं

  • उन्होंने कला, सौंदर्य, और जीवन के मोह के बारे में लिखा। उनकी कृति “कला और बूढ़ा चाँद” के लिए उन्हें साल 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो हिंदी साहित्य का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है।
  • साल 1961 में उन्हें भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके साहित्यिक योगदान के लिए दिया गया था।
  • साल 1968 में उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें “चिदंबरा” नामक काव्य संग्रह के लिए दिया गया, जो आध्यात्मिकता और जीवन के अर्थ पर आधारित था।
  • सुमित्रानंदन पंत का नाम इतना बड़ा था कि भारत सरकार ने उनके सम्मान में साल 1978 में एक डाक टिकट भी जारी किया।

छायावाद के एक स्तंभ का अंत

सुमित्रानंदन पंत ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य की साधना में समर्पित किया था। उन्होंने लगभग 6 दशकों से अधिक समय तक हिंदी साहित्य की सेवा की। उन्होंने कई विषयों पर काव्य रचनाएँ कीं। 28 दिसंबर 1977 को उनका देहांत हो गया। मृत्यु के समय उनकी आयु 77 वर्ष थी। उनके जाने से हिंदी साहित्य का बड़ा नुकसान हुआ और छायावाद के एक स्तंभ का अंत हुआ।

उनकी मृत्यु के बाद उनके गांव कौसानी में उनका घर एक संग्रहालय में बदल दिया गया और इस संग्रहालय को नाम दिया गया “सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका”। इस संग्रहालय में पंत जी की एक मूर्ति स्थापित की गई है। उनकी व्यक्तिगत चीजें और उन्हें मिले सम्मान इस संग्रहालय में सुरक्षित रखे गए हैं।

सुमित्रानंदन पंत की अनसुनी बाते

सुमित्रानंदन पंत के व्यक्तित्व के कुछ अनसुने पहलू जो कि बहुत ही कम लोगों को पता हैं, हमने नीचे दिए हैं।

  • पंत जी कवि, नाट्य लेखक, साहित्यकार होने के बावजूद एक उत्तम चित्रकार भी थे।
  • उन्हें फोटोग्राफी करना बेहद पसंद था। अक्सर वे प्रकृति और आसपास के फोटो निकालते थे।
  • उस समय सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में उनका सक्रिय सहभाग था।
  • उन्हें जानवरों से खूब लगाव था, और थोड़ा बहुत समय वे जानवरों के साथ गुजारते थे।
  • वे कला प्रेमी थे, यह तो सभी को पता है, लेकिन उन्हें संगीत सुनना भी पसंद था।

सारांश

इस लेख में हमने सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय (Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay) विस्तार से प्रस्तुत करने की कोशिश की है। हमें आशा है कि यह लेख आपको जरूर पसंद आया होगा। अगर जानकारी अच्छी लगी हो तो इस लेख को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। यदि इस लेख में कोई त्रुटि हो तो आप हमें मेल कर सकते हैं। हम इस लेख में सुधार करने का प्रयास करेंगे। इस तरह के और लेखों को देखने के लिए आप हमसे व्हाट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं। धन्यवाद।

FAQ’s

सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौन से गांव में हुआ था?

सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखण्ड के कौसानी गाँव में हुआ था।

सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम क्या था?

सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गुसाई दत्त था।

सुमित्रानंदन पंत का साहित्य में क्या स्थान है?

सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के छायावादी कवि के रूप में महत्वपूर्ण हैं। उनकी कविताओं में प्रकृति, प्रेम, दर्शन, राष्ट्रवाद और अन्य सामाजिक मुद्दे उनकी मुख्य पहचान हैं।

सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार क्यों कहा जाता है?

सुमित्रानंदन पंत को “प्रकृति का सुकुमार” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी कविताओं में प्रकृति की सुंदरता, उसकी शांति और उसके साथी भावनाओं का अद्वितीय वर्णन होता है। उन्होंने प्रकृति के साथ अपनी गहरी और संवेदनशील जुड़ाव को अपनी कविताओं में उतारा है, जिससे उन्हें यह संबोधन मिला है।

कला और बूढ़ा चाँद के रचयिता कौन है?

“कला और बूढ़ा चाँद” रचना का रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

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