Kolhapur Mahalaxmi: महाराष्ट्र में देवी-देवताओं के हजारों मंदिर हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा मंदिर यहाँ विशेष महत्व रखते हैं. इन मंदिरों की प्रसिद्धि सुनकर देश-विदेश से श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं. महाराष्ट्र राज्य में देवी-देवताओं के कुल साढ़े तीन शक्तिपीठ हैं. इन्हीं प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है कोल्हापुर के करवीर निवासी महालक्ष्मी.
यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर जिले के कोल्हापुर शहर में स्थित है. कोल्हापुर का नाम आते ही महालक्ष्मी या अंबाबाई का नाम स्वतः ही जुबान पर आ जाता है. इस मंदिर और कोल्हापुर का एक अनोखा रिश्ता है.
आज इस लेख में हम कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर (Kolhapur Mahalaxmi Temple) का इतिहास (Mahalaxmi Mandir Kolhapur History), संरचना (Kolhapur Mahalaxmi Temple Structure) और विशेषताओं (Mahalaxmi Kolhapur Temple Highlights) के बारे में जानने जा रहे हैं. आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़कर इस मंदिर के बारे में दी हुई जानकारी को जरूर पसंद करेंगे.
कोल्हापूर महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास (History Of Kolhapur Mahalaxmi Temple)
पौराणिक इतिहास के अनुसार, भगवान ब्रह्मा के कथित पुत्र कोल्हासुर और उनके पुत्र करवीर बहुत शक्तिशाली और हिंसक हो गए और बिना किसी कारण के उन्होंने गरीब लोगों को पीड़ा देना शुरू कर दिया था.
उसके बाद सभी लोग दौड़े-दौड़े भगवान शंकर जी के पास पहुंचे और उनसे इस पिता-पुत्र से छुटकारा पाने के लिए उनसे अनुरोध किया. सबके अनुरोध का सम्मान करते हुए शंकर ने करवीर का वध कर दिया. करवीरा की मृत्यु के बाद उनके पिता कोल्हासुर क्रोधित हो गए और फिर उन्होंने लोगों पर अत्याचार करना शूर.
उनके इस अत्याचार से तंग आकर लोगों ने जगदम्बा देवी से प्रार्थना की. उनकी प्रार्थना सुनकर जगदम्बा माँ ने प्रगट होकर लोगों को कोल्हासुर के अत्याचारों से बचाने के लिए उनका वध किया, लेकिन अपनी मृत्यु के समय कोल्हासुर ने जगदम्बा देवी से वरदान मांगा कि कलियुग में हमारे पिता-पुत्र का नाम तुम्हारे नाम के साथ जोड़ा जाए, ताकि जब तक इस ब्रह्मांड में चाँद और सूरज हैं, तब तक आपका नाम लेते समय हमारे नाम का भी उच्चारण हो.
उनकी बात सुनकर जगदम्बा देवी ने तुरंत ही तथास्तु कहा, और तब से इस देवी को करवीर निवासिनी, कोल्हापुर वासिनी, महालक्ष्मी के नाम से जाना जाने लगा.
कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर (Kolhapur Mahalaxmi Temple) बहुत ही प्राचीन है. इस मंदिर का निर्माण कब हुआ था, यह सिर्फ मिले हुए साक्ष्यों से ही पता लगाया जा सकता है.
महालक्ष्मी देवस्थान समिति ने प्राप्त समकालीन साक्ष्यों के आधार पर कहा है कि इस मंदिर के गर्भगृह का निर्माण 624 ईसा पूर्व के आसपास कर्णदेव नामक राजा ने करवाया था. उसके बाद शिलाहार राजा मारसिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और उसी काल में शिलाहार गंडरादित्य राजा ने मंदिर का शिखर बनवाया.
लेकिन इसका भी जिक्र किया गया है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार शिलाहार राजा के पूर्व करहाटक याने आब के कऱ्हाड के राजा सिद्धवंशी ने किया था. कहा जाता है कि संकेश्वर मटाधीपती शंकराचार्य ने अपने खर्च पर मंदिर के कलश भाग का जीर्णोद्धार कराया है.
चौदहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी तक भारत पर मुस्लिम शासकों का शासन रहा था, और उन्होंने तब कई हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया था. इसलिए देवी की मूर्ति को उस स्थान से हटाकर सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया ताकि देवी की मूर्ति को कोई खतरा न हो.
उसके बाद स्वराज्य के दूसरे छत्रपति संभाजी राजे भोसले ने इस मूर्ति का जीर्णोद्धार कराया. इस प्रतिस्थापन के बाद मां अंबाबाई ने राहत की सांस ली थी.
कोल्हापूर महालक्ष्मी मंदिर की संरचना (Kolhapur Mahalaxmi Mandir Structure)
मंदिर परिसर में प्रवेश करने के बाद, मुख्य मंदिर के सामने, आपको एक मंडप दिखाई देगा जिसे गरुड़ मंडप के नाम से जाना जाता है.
उस मंडप के दोनों ओर के कोनों पर श्री राम के भाई भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की हुई दिखाई देती हैं. मंडप से आगे बढ़ें तो एक और मंडप है, और उस मंडप को मणिमंडप के नाम से जाना जाता है. इस मंडप की दीवार पर दो द्वारपालों, जय और विजय की एक सुंदर नक्काशीदार तस्वीर देखी जा सकती है.
उस मणिमंडप से सीधे उस स्थान पर जा सकते हैं जहां महालक्ष्मी निवास करती हैं, यानी लक्ष्मी का गर्भगृह. मंदिर के बाहरी क्षेत्र में अद्भुत नक्काशी काम किया गया है. इस पर आपको विभिन्न संगीतकारों और अप्सराओं की पत्थर पर नक्काशीदार मूर्तियाँ देखने मिल जाती हैं.
इसके अलावा, मंदिर क्षेत्र में आपको विट्ठल, दत्तात्रेय, भगवान शंकर, राम, राधा कृष्ण, शनि, तुलजाभवानी आदि छोटे-बड़े मंदिर भी देखने को मिलेंगे.
महालक्ष्मी मंदिर में प्रवेश के लिए चार प्रवेश द्वार तैयार किए गए हैं. मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम में है और नगारखाना उस पर स्थित है, उत्तर में दो तीर्थस्थान हैं – काशी और मणिकर्णिका मंदिर क्षेत्र में एक दीपक है और पानी के फव्वारे भी हैं. इस दीपक को जलाने के बाद इसकी रोशनी मंदिर परिसर को सुशोभित करती है.
उत्तरी प्रवेश द्वार पर एक बड़ी घंटी लगाई गई है. इस घंटी की ध्वनि पूरे आकाश में गूंजती ह. ऐसा कहा जाता है कि जब यह घंटी बजाई जाती है, तो उसकी आवाज दूर-दूर तक पहुंचती है.
कोल्हापूर महालक्ष्मी मंदिर विशेषताएँ (Mahalaxmi Kolhapur Temple Highlights)
- नवरात्रि उत्सव के दौरान महालक्ष्मी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त जुटते हैं. इस अवसर पर भजन-कीर्तन, उपदेश, पुस्तक पाठ, और कई अन्य कार्यक्रम होते हैं.
- इस स्थान की खास बात यह है कि पौष माह में इस मंदिर में सूर्यकिरणोत्सव मनाया जाता है, और यह त्योहार तीन दिनों तक चलता है.
- सूर्यकिरणोत्सव के दौरान शाम को एक निश्चित समय पर सूर्य की किरणें मंदिर में प्रवेश करती हैं, और महालक्ष्मी के मुख पर पड़ती हैं, फिर कुछ ही क्षणों में गायब हो जाती हैं.
- खास बात यह है कि मुख्य मंदिर के सामने गरुड़ मंडप, सभा मंडप, और कई निर्माण हैं, और डूबते सूर्य की दिशा में मंदिर के बाहर कई घर और इमारतें हैं. अन्य दिनों को छोड़कर केवल इन तीन दिनों में ही सूर्य की किरणें देवी के मुख को छूती हैं. वैज्ञानिक भी इसके पीछे का रहस्य नहीं ढूंढ पाए हैं.
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सारांश
आज के लेख में हमने महाराष्ट्र राज्य के साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक महालक्ष्मी देवी मंदिर (Kolhapur Mahalaxmi Temple) के बारे में जाना, साथ ही इस मंदिर के इतिहास (Kolhapur Mahalaxmi Temple history), संरचना (Kolhapur Mahalaxmi Temple Structure) और विशेषताओं (Mahalaxmi Kolhapur Temple Highlights) के बारे में भी जाना.
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FAQ’s
महालक्ष्मी मंदिर कहां है?
महालक्ष्मी मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के कोल्हापुर शहर में स्थित है.
महालक्ष्मी मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
महालक्ष्मी मंदिर प्राचीनता, ऐतिहासिक महत्व, आस्था, और धार्मिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है. इसे महाराष्ट्र के तीन मुख्य शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए. इसकी सुंदर वास्तुकला, सांस्कृतिक महत्व और विभिन्न धार्मिक उत्सवों की वजह से भी यह प्रसिद्ध है.
कोल्हापुर में कौन सी देवी का मंदिर है?
कोल्हापुर में महालक्ष्मी देवी का मंदिर है.